(व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)

लीजिए, दिसंबर का आखिरी हफ्ता लगा नहीं कि फिर ससुर पैगासस आ गया। महीनों पहले एप्पल वालों ने कई नेताओं, पत्रकारों वगैरह को चेतावनी दी थी कि सरकारनुमा कोई चीज उनके आईफोन हैक करने की कोशिश कर रही थी। तब सरकार ने भी कड़ी कार्रवाई करते हुए एप्पल को ही हडक़ाकर जैसे-तैसे उसका मुंह बंद कराया था कि उसकी हिम्मत कैसे हुई, भारतीयों को कोई चेतावनी देने की! पर साल के आखिर तक आते-आते आईफोनों की विदेशी जांच में पैगासस पकड़ा गया। उसमें भी अडानी एंगल ऊपर से। खैर! ये एंटीनेशनल कितने ही इंटरनेशनल षडयंत्र कर लें, साल के छोर पर जाकर जासूसी-जासूसी का चाहे कितना ही शोर मचा लें, 2024 को आने से रोक नहीं सकते। आएगा तो 2024 ही!

फिर सिर्फ पैगासस की ही बात थोड़े ही है। विरोधियों ने 2024 का रास्ता रोकने के लिए, गुजरे साल में क्या-क्या नहीं किया था? नयी पार्लियामेंट का सगुन बिगाड़ने के लिए हल्ला मचा दिया कि नये संसद भवन पर लगे शेर, अशोक वाले शेर ही नहीं हैं। ये तो फाड़ खाने को आते भूखे शेर हैं! अशोक वाले शांत शेर, क्या मजाक है! फिर सेंगोल को तो फर्जीवाड़ा ही बता दिया। उससे काम नहीं चला, तो राष्ट्रपति-उपराष्ट्रपति के न्यौते का झगड़ा खड़ा कर दिया। वो बेचारे नहीं चाहिए, न्यौता-व्यौता नहीं चाहिए, करते ही रह गए। नयी संसद का सगुन कुछ-न-कुछ तो बिगड़ ही गया। महुआ मोइत्रा को निकाल दिया, बाद में पूरे के पूरे विपक्ष को ही हंकाल दिया, वहां तक तो सेंगोल ने ठीक ही सख्ती से काम किया। पर रमेश बिधूड़ी के गालीकांड में नरमी — सेंगोल जी को ये क्या हुआ? और इधर संसद में सेंगोल जी आए और उधर सड़कों पर पहलवान, किसानों वाला दांव दोहराने पर उतर आए। और आखिरकार, किसानों की तरह अपनी कुछ-न-कुछ सुनवा कर ही माने। दबदबा भगवान ने दिया था, फिर भी दबदबे वालों का दबदबा, जमुना में सिरा के ही माने।

जब कुछ नहीं चली, तो विरोधी झुंड बनाकर आ गए। एक अकेले शेर को भी अपना झुंड दोबारा जुटाना पड़ गया। अब तो वे उंगली पकड़कर रामलला को भी ले आए हैं। 2023 अब कुछ भी कर ले, आएगा तो 2024 ही। मोदी जी की उंगली पकडक़र आएगा — पर आएगा तो 2024 ही!

(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।)