पेरिस: फ्रांस में हुई टीचरकी सिर काट कर हत्या के मामले में राष्ट्रपति (Emmanuel Macron) के बयान को लेकर कई इस्लामिक देश एक जुट हो गए हैं। मुस्लिम देशों ने फ्रांस के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है और फ्रांस की उत्पादों के बहिष्कार (boycot) की मांग जोर पकड़ती जा रही है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, सऊदी अरब , कुवैत , जॉर्डन और कतर में कई दुकानों से फ्रांस निर्मित सामान को हटा दिया गया है। पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी फ्रांस के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुए हैं।

दरअसल, मैक्रों ने अपने एक बयान में कट्टरपंथी इस्लाम की आलोचना की थी और शिक्षक की हत्या को ‘इस्लामिक आतंकवादी हमला’ (islamic trrorism) कहा था। जिसके बाद सोमवार को तुर्की के आह्वान पर कई खाड़ी देशों ने फ्रांस के उत्पादों के बहिष्कार का ऐलान किया। खबर है कि, कुवैत में रिटेल चेन चलाने वाले समूह ने अपनी दुकानों से फ्रांस की कंपनियों का सामान हटा लिए है। वहीं, रियाद में भी फ्रांस में बने प्रोडक्ट्स का बॉयकाट हुआ।

बता दें कि, 16 अक्टूबर को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का पाठ पढ़ाते हुए क्लास में टीचर सैमुअल पैटी ने छात्रों को पैगंबर मोहम्मद साहब (prophet) का विवादित कार्टून दिखाया था। इसके बाद टीचर का गला काट कर एक शख्स ने हत्या कर दी थी। फ्रांस में घटना के विरोध में जगह-जगह प्रदर्शन हुए थे और कई लोगों ने अपने-अपने तरीके से घटना की निंदा की थी। वहीं इमैनुएल मैक्रों ने टीचर को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए इसे इस्लामिक आतंकवाद करार दिया था।

इस बीच, पाकिस्तान ने भी अपना तीखा विरोध दर्ज किया है। सोमवार को फ्रांसीसी राजदूत (Mark Bareti) को तलब किया गया था। वहीं देश की संसद ने सरकार से पेरिस से अपना दूत वापस बुलाने की मांग भी की है। विदेश कार्यालय ने एक बयान में कहा कि यह रेखांकित किया गया कि इस तरह के गैरकानूनी और इस्लाम विरोधी कृत्य पाकिस्तान सहित दुनिया भर में मुसलमानों की भावनाओं को आहत करते हैं और इस तरह के कदम को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर उचित नहीं ठहराया जा सकता है।

इससे पहले, तुर्की ने सोमवार को सभी देशों से अपील की थी कि वे फ्रांस निर्मित सामान का बहिष्कार करें। तुर्की का कहना है कि फ्रांस के राष्ट्रपति ने इस्लाम का अपमान किया है। जिसके बाद से लगातार सोशल मीडिया पर भी फ्रांस के खिलाफ ‘हैशटैग कैंपेन’ चलाए जा रहे हैं। वैसे फ्रांस के प्रोडक्ट्स की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर काफी डिमांड है। जानकारों का मानना है कि इस अभियान से फ्रांस की कई कंपनियों को बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है।