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5.8 प्रतिशत तक पहुंच सकता भारत का राजकोषीय घाटा: रिपोर्ट

मुंबई: बैंक आफ अमेरिका की एक रपट में कहा गया है कि 2020- 21 में भारत सरकार का राजकोषीय घाटा बढ़कर 5.8 प्रतिशत तक पहुंच सकता है।बजट में इसके 3.5 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है।

यह रपट ऐसे समय आयी है जबकि सरकार ने सरकार ने चालू वित्त वर्ष के दौरान बाजार से धन उधार लेने का लक्ष्य बजट से 4.2 लाख करोड़ रुपये बढ़ाने का फैसला किया है। बैंक आफ अमेरिका के विश्लेषकों ने सोमवार को जारी इस रिपोर्ट में भारत की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के वृद्धि दर के अनुमान को भी संशोधित कर 0.5 प्रतिशत कर दिया है।

इससे पहले इस ब्रोकरेज फर्म ने आर्थिक वृद्धि 1.5 प्रतिशत रहने का अनुमान व्यक्त किया था। उसे लगता है कि लॉकडाउन मई से भी आगे बढ़ाया जा सकता है। कोविड- 19 महामारी के प्रभाव को कम करने के लिये सरकार को चालू वित्त वर्ष के दौरान बजट में तय अनुमान से अधिक खर्च करना पड़ रहा है। सरकार ने पिछले वित्त वर्ष में आर्थिक वृद्धि पांच प्रतिशत रहने का अनुमान व्यक्त किया है।

आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक 2019-20 में आर्थिक वृद्धि पांच प्रतिशत रहने का अनुमान है जो कि पिछले एक दशक का सबसे निम्न स्तर होगा। कई विशेषज्ञों ने सरकार के अतरिक्त खर्च को समर्थन दिया है लेकिन यह भी माना जा रहा है कि राजकोषीय घाटा बढ़ने से वृहद आर्थिक स्थायित्व को लेकर चिंता बढ़ सकती है। विश्लेषकों ने रिपोर्ट में कहा है, ‘‘हम अब केन्द्र सरकार का राजकोषीय घाटा जीडीपी का 5.8 प्रतिशत रहने का अनुमान व्यक्ति करते हैं जबकि इससे पहले इसके 4.8 प्रतिशत रहने का अनुमान व्यक्त किया गया था।

वहीं 2020-21 के बजट में इसके 3.5 प्रतिशत रहने का अनुमान रखा गया है। लॉकडाउन मई से भी आगे बढ़ने की स्थिति के चलते आर्थिक वृद्धि के घटकर 0.5 प्रतिशत रह जाने का अनुमान है। इससे पहले यह 1.5 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया था।’’ ब्रोकरेज कंपनी ने कहा है कि चालू वित्त वर्ष के दौरान राज्यों का राजकोषीय घाटा उनके बजट लक्ष्य के मुकाबले 0.50 से लेकर एक प्रतिशत अंक तक बढ़ सकता है। राजकोषीय घाटे को पूरा करने के लिये वित्तीय उपायों के बारे में रिपोर्ट में कहा गया है कि इसमें नीति निर्माताओं के समक्ष एक यह विकल्प हो सकता है कि रिजर्व बैंक सीधे खुले बाजार में प्रतिभूति जारी कर धन जुटाये। हालांकि, इसके लिये गवर्नर शक्तिकांत दास को बाजार की बेहतरी को ध्यान में रखते हुये नया उधारी कैलेंडर जारी करना होगा। या फिर रिजर्व बैंक सीधे सरकारी रिणपत्रों को खरीद ले अथवा फिर बैंकों को अपनी अधिशेष राशि मुद्रा बाजारों में रखने के लिये प्रोत्साहन दिया जाये।

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