नए कृषि कानून और किसानों के आंदोलन के मुद्दे पर केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के रवैये से नाराज होकर शनिवार को राजस्थान में बीजेपी की सहयोगी रही राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन छोड़ दिया है. RLP के अध्यक्ष हनुमान प्रसाद बेनीवाल ने खुद इसका एलान किया. पिछले चार महीनों में एनडीए छोड़ने वाली यह चौथी पार्टी है. इससे पहले सितंबर में किसानों के मुद्दे पर ही बीजेपी के सबसे पुराने साथी शिरोमणि अकाली दल ने एनडीए छोड़ दी थी. मोदी सरकार में मंत्री रहीं हरसिमरत कौर ने किसानों के मुद्दे पर इस्तीफा दे दिया था.

इसके बाद अक्टूबर में पी सी थॉमस की अगुवाई वाली केरल कांग्रेस ने भी NDA का साथ छोड़ दिया. दिसंबर आते-आते असम में बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट ने भी एनडीए का साथ छोड़ दिया. 2014 के मुकाबले अब एनडीए में मात्र 16 दल रह गए हैं. हालांकि, कुछ दल ऐसे हैं जो हालिया में एनडीए में शामिल हुए हैं. ऐसे दलों में बिहार में जीतन राम मांझी की हम, मुकेश साहनी की वीआईपी शामिल है. इसी तरह असम में प्रमोद बोरो की पार्टी यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी ने हाल ही में बीटीसी चुनावों के बाद बीजेपी के साथ गठबंधन किया है.

2014 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने वृहतर एनडीए गठबंधन बनाते हुए आम चुनावों में बड़ी जीत दर्ज की थी लेकिन धीरे-धीरे उसके सहयोगी दल उससे छिटकते चले गए. सबसे पहले बीजेपी का साथ हरियाणा जनहित कांग्रेस ने छोड़ा था. कुलदीप विश्नोई ने लोकसभा चुनाव के कुछ महीने बाद ही एनडीए को अलविदा कह दिया था. 2014 में ही तमिलनाडु की MDMK ने भी बीजेपी पर तमिलों के खिलाफ काम करने का आरोप लगा एनडीए छोड़ दी थी. इसके बाद तमिलनाडु चुनाव से पहले 2016 में वहां की दो अन्य पार्टियों (DMDK, रामदौस की PMK) ने भी बीजेपी का साथ छोड़ दिया था.

आंध्र प्रदेश में अभिनेता पवन कल्याण की पार्टी जन सेना ने भी 2014 में ही बीजेपी का साथ छोड़ दिया. बाद में 2016 में केरल की रिवॉल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी ने भी बीजेपी का साथ छोड़ा. 2017 में महाराष्ट्र में स्वाभिमान पक्ष नाम की पार्टी मोदी सरकार पर किसान विरोध होने का आरोप लगाकर एनडीए से अलग हो गई. नागालैंड में नगा पीपुल्स फ्रंट , बिहार में जीतनराम मांझी की हम ने भी गठबंधन छोड़ दिया. हालांकि, 2020 के बिहार विधान सभा चुनाव से पहले मांझी और साहनी फिर से एनडीए कुनबे में लौट आए हैं.

मार्च 2018 में एनडीए को तब बड़ा झटका लगा था, जब उसकी बड़ी सहयोगी पार्टी तेलगु देशम ने साथ छोड़ दिया. इस पार्टी के मुखिया चंद्रबाबू नायडू ने मोदी सरकार पर आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा नहीं देने पर वादाखिलाफी का आरोप लगाया था. इसके बाद उसी साल पश्चिम बंगाल में बीजेपी की सहयोगी रही गोरखा जनमुक्ति मोर्चा ने भी एनडीए से नाता तोड़ लिया. इसी साल कर्नाटक प्रज्ञानवथा पार्टी ने भी एनडीए से अलग राह पकड़ ली. 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले मोदी सरकार में मंत्री उपेंद्र कुशवाहा (RLSP) ने भी एनडीए को छोड़ दिया. उत्तर प्रदेश में ओमप्रकाश राजभर की पार्टी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी ने भी लोकसभा चुनाव से पहले एनडीए और योगी मंत्रिमंडल छोड़ दी थी.

साल 2018 में ही जम्मू-कश्मीर में महबूबा मुफ्ती की साझा सरकार से खुद बीजेपी अलग हो गई. इस तरह पीडीपी भी एनडीए से अलग हो गई. 2019 में महाराष्ट्र विधान सभा चुनाव के बाद मुख्यमंत्री के मुद्दे पर बीजेपी की 30 साल से पुरानी सहयोगी पार्टी रही शिव सेना ने एनडीए गठबंधन को छोड़ दिया और घोर विरोधी कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर सरकार बना ली.