तीनों कृषि क़ानूनों को लेकर सरकार और किसानों के बीच बैठकों का दौर जारी है और आगे भी जारी रहेगा क्योंकि किन्ही मजबूरियों के चलते सरकार का रुख अड़ियल है तो अपने भविष्य की चिंता किसान भी कड़ियल (कड़ा रुख) है और इसी वजह से आंदोलन के 40 दिन बाद भी नतीजा ढाक के तीन पात ही नज़र आ रहा है| आज भी सरकार से किसानों की बातचीत हुई और आंदोलनकारी किसानों ने सरकार को दो टूक कहा कि जब तक सरकार तीनों काले कानून वापस नहीं लेती और न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था को कानून में तब्दील नहीं करती तब तक सरकार के साथ कोई समझता नहीं होगा।

सरकार का अड़ियल रुख
बैठक के बाद लोकमत से बातचीत करते हुए किसान नेता, राकेश टिकैत ने साफ़ किया कि सरकार अपने अड़ियल रुख पर कायम है, में उन्ही बातों को दोहरा रही है जिसमें क़ानूनों में संशोधन करने और न्यूनतम समर्थन मूल्य का आश्वासन देने की बात कही गयी है। लेकिन किसानों को यह मंज़ूर नहीं है।

किसानों की दो टूक
आज घंटों चली बैठक में, जब कोई नतीजा नहीं निकला तब, आंदोलनकारी किसानों ने साफ़ कर दिया , “जब तक कानून वापस नहीं , तब तक कोई समझौता नहीं ” . एक दूसरे किसान नेता, रविंद्र चीमा ने जो स्वयं बैठक में मौजूद नहीं थे लेकिन वे लगातार बैठक में मौजूद किसानों के संपर्क में थे, उनका मानना था कि सरकार यदि अपनी हठधर्मी छोड़ कर सही फैसला करे तो समस्या का हल निकल सकता है।

बारिश -सर्दी में डटे हुए हैं किसान
मूसलाधार बारिश, घने कोहरे के बीच सर्द हवाओं को झेलते किसान सीमाओं पर अभी भी डटे बैठे हैं। उनके टेंट भीग चुके हैं लेकिन उनके हौसले बुलंद हैं। 13 जनवरी को किसानों ने कृषि क़ानूनों की प्रतियों को जलाने का फैसला किया है साथ ही 6 जनवरी को ट्रेक्टर मार्च और 26 जनवरी को सीमाओं से दिल्ली में घुस कर ट्रैक्टरों पर सवार हो कर रैली की शक्ल में गणतंत्र दिवस मनाने की योजना है। किसानों से हुई बातचीत में यह साफ़ नज़र आ रहा था कि वे अब आंदोलन को तेज़ करेंगे।