आरिफ़ नगरामी

उर्दू सहाफत के एक अहम और रौशन बाब का एख्तेताम 25 फरवरी 2020 को उस वक्त हो गया जब हिन्दुस्तान के मारूफ और काबिले सद एहतराम बुजुर्ग सहाफी हुसैन अमीना का एक तवील अलालत के बाद लखनऊ में इन्तेकाल हो गया हुसैन अमनी के इन्तेकाल ने पूरे शहर लखनऊ को सोगवार कर दिया। हुसैन अमीन साहब मरहूम सिर्फ एक मामूर और मशहूर सहाफी ही नही बल्कि एक शानदार बेहद नफीस और अजीम इन्सान भी थे। उन्होने उर्दू सहाफत की जा नाकाबिले फरामोश और मिसाली खिदमत की वह एक मिसाल है।


हुसैन अमीन मरहूम की पैदाईश 8, अगस्त 1937 में लखनऊ में हुई थी। हालांकि उनका आबाई वतन जिला राय बरेली का मशहूर कस्बा का भवानीपुर गांव जहां उनके वालिद मोहतरम मुजाहिदे जंग आजादी अलहाज अमीन सलोनवी साहब मरहूम एक बड़े जमीनदार थे अमीन सलोनवी साहब ने भी शहर निगारां लखनऊ को अपना वनत सानी बना लियां हुसैन अमीन साहब ने अपनी इब्तेदाई तालीम और इन्टर मीडियट लखनऊ के मशहूर और कदीम इस्लामिया कालेज से किया फिर उन्होने लखनऊ यूनिवर्सिटी से ग्रेजुवेशन किया। हुसैन अमीन साहब के वालिद बुजुर्ग अमीन सलोनवी साहब सहाफत के पेशे से वाबिस्ता थे उन्होने अपनी एक न्यूज एजेन्सी इन्डीपेंडेन्ट न्यूज एजेन्सी के नाम से शुरू की थी हुसैन अमीन साहब भी सहाफत के पेशे से वाबस्ता हो गये।
उन्होने अपनी सहाफती जिन्दगी का आगाज लखनऊ से शाया होने वाले एक हफ्तेवार अखबार से शुरू की थी उन्होने जिस दौर में सहाफत शुरू की उस वक्त पेशा वाराना नही थी। सहात एक मिश्न था, जज्बा था, जबकि आज की सहाफत दरबारी हो गयी है उसका कोई मेयार नही बचा है।

सहाफत की दुनिया में ऐसे बहुत कम लोग होगें जिन्होने सहाफत की कदरों को कायम रखते हुए मुसलमानों की तहरीकात और मिल्ली कयादत की भरपूर हिमायत कीं। मरहूम हुसैन अमीन साहब मौलाना हसरत मोहानी, मौलाना अबुल कलाम आजाद, मौलाना मोहम्मद अली जौहर और मौलाना जफर अली खान के तारीखी सिलिसले की आखरी कड़ी थें जो 25 फरवरी 2020 को टूट गयी। हुसैन अमीन साहब के इन्तेकाल के साथ ही हिन्दतान की आजादी में उूर्द सहाफत के बुनियादी किरदार की वह ताबनाक निशानी भी मौत के अंधेरे में मअजूम हो गयी। छोटे अखबारात में काम करने के बाद हुसैन अमीन साहब ने कौमी आवाज में काम करना शुरू कर दिया उसका सिलसिला उसवक्त तक जारी रहा जब तक कि कौमी आवाज शाया होना बंद न हो गया।


हुसैन अमीन साहब मरहूम ने कौमी आवाज में बेहतरीन मजामीन, खासकर इस्लामियात पर, मिल्ली मसाएल पर उनके तबसिरों ने उनको पूरे मुल्क में बहैसियत एक बेहतरीन, इमानदार सहाफी के मुतआरूफ कर दिया।


उनकी तहरीरों में जबर्दस्त अदबी चाशनी होती थी। मगर साही ही उनकी तहरीरें इतनी आम जबान में होती थी कि उनकों पढ़ने का लुत्फ भी कुछ और होता था। हुसैन अमीन साहब ने कई गैर मुल्की दौरे भी किये वह अपने छोटे भाई डाक्टर इरफान अमीन के पास नुवयार्क भी गये और हज की सआदत हासिल करने के लिए मक्का मुकर्रमा भी गये और इराक भी गये वापसी पर उन्होने सफर नामें तसनीफ के जो पढ़ने के काबिल भी और न काफी पसंद किये गये। हुसैन अमीन साहब का शुमार शहरे निगारा लखनऊ की मारूफ तरीन, शानदार और मोहज्जब और नफीस तरीन शख्सियतों में किया जाता था। उनके तालुकात हर तब्का, हर मसलक, और हर मजहब के अफराद से था दारूल उलूम नदवतुल उलमा के शोबाए सहाफत में वह उस्ताद थे। दारूल उलूम नदवतुल उलमा के तलबा और असातजह हुसैन अमीन साहब की बड़ी इज्जत और ताजीम करते थे।

नदवतुल उलमा के नाजिम मौलाना राहब हसनी नदवी साहब और उनके अजीमुल मरतबत खानवादे से उनको अकीदत के साथ साथ बेइन्तेहा मोहब्बत थी वह मौलाना राबे हसनी नदवी को ‘‘मिया’’ कहा करते थें मुझे याद है कि रमजानुल मुबारक में जब हजरत मौलाना राबे हसनी नदवी साहब अपने आबाई वतन राय बरेली के तकिया कलां में कयाम पजीर हुआ करते थें तो हम हुसैन भाई और डा0 अब्दुल कुद्दूस हाशमी साहब का यह दस्तूर था कि मौलाना की खिदमत में हाजिर होकर उनसे दुआए लिया करते थे। हुसैन अमीन साहब की सुसराल भी राय बरेली में है तो अकसर मौलाना से मुलाकत के बाद उनकी सुसराल की जियारत कर लिया करते थे। हुसैन अमीन साहब को हम अपना उस्ताद और मोहसिन भी मानते है। क्योंकि जब हम सऊदी अरब से वापस लखनऊ आये तो उन्होने ही लखनऊ के एक मशहूर रोज नामें में काम करने की सिफारिश की थी। अकसर वह हमकों सहाफत के नशेब व फराज के बारे में बताया करते थे। हुसैन अमीन साहब ने ही हमको जमीअत उलमा जिला लखनऊ की मजलिस आमला में शामिल कराया था। जिसके वह एक अर्से से जनरल सेक्रेटरी के ओहदे पर फायज थे। इरम एजूकेशनल सोसायटी इन्दरानगर में मुनअकिद होने वाली सह माही अदबी व शेअरी नशिस्तों और जश्न आम व गालिब और बेसनी रोटी में वह खुसूसी तौर पर शिरकत फरमाते थे। इरम सोसायटी के बानी व मैनेजर मरहूम डा0 ख्वाजा यूनुस साहब बहुत ही एहतेमाम के साथ हुसैन अमीन साहब को मदऊ किया करते थे। और मजकूरा बाला तकरीबों की अखबारी रिपोर्ट सिर्फ और सिर्फ हुसैन अमीन साहब मरहूम से लिखवाना पसंद करते थे। हुसैन अमीन साहब हमारे बहुत ही करीबी रिश्तेदारों में से थे। जिसका हमेशा वह लेहाज किया करते थे। अकसर वह फोन करके हमारी खैरियत भी दरयाफ्त किया करते थें अकसर उनसे मुलाकात हुआ करती थी मिल कर वह बेहद खुशी और मुसर्रत का इजहार किया करते थे। और बहुत से मशविरों से भी नवाजते थे।


मरहूम हुसैन अमीन साहब के यौमे जम्हूरिया और यौमे आजादी के मुबारक मौके पर मुनअकिद होने वाले मुशायरे और कवि सम्मेलन के कनवीनर भी थे। आजादी के बाद मुनअकिद हेाने वाले मुशायरो के कनवीनर उनके वालिद माजिद मोहतरम अमीन सलोनवी मरहूम हुआ करते थे उनके इन्तेकाल के बाद हुसैन अमीन साहब यह जिम्मेदारी बहुत ही खुश उसलूबी के साथ निभाई।
हुसैन अमीन साहब ने अपनी सहाफती जिन्दगी में कभी किसी एवार्ड या इनाम या ओहदे की हुसूल की कोशिश नही की हालांकि वह बड़े बड़े एवार्ड और इनामात के हकदार थे बड़े बड़े लोगों से उनके तालुकात थे बड़ी-बड़ी शख्सियतों में उन्होने मजामीन तहरीर किये मगर उसके बदले में कभी भी कुछ नही चाहा आज के दौर में इस तरह के लोग अब नापैद है अल्लाह हुसैन भाई को जन्नतुल फिरदौस में आला दर्जता अता फरमायें (आमीन)