बाराबंकी। सत्ता की भूख ने मुल्कों को बंटवारा किया। महात्मा गांधी, बादशाह खान और डॉ लोहिया नहीं चाहते थे कि हिन्दुस्तान का बंटवारा हो। लेकिन तत्कालीन राजनैतिक परिस्थितियों वश दोनों मुल्कों का बंटवारा हुआ। जब दोनों मुल्कों में कत्ल-ए-आम हो रहा तब भी सेनाओं का बंटवारा नहीं हुआ। यदि सेनाएं बंट जाती तो शायद लाखों लोगों की जानें नहीं जाती। इस बंटवारे में दूरदर्शिता नहीं थी। जिस कारण भारत और पाकिस्तान आज भी साम्प्रदायिक तनाव से मुक्त नहीं हो पाए है। यह बात अगस्त क्रान्ति सप्ताह के पांचवें दिन गांधी भवन में आयोजित भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश का महासंघ बनाओ सम्मेलन के मुख्य अतिथि वरिष्ठ समाजवादी चिन्तक शाहनवाज क़ादरी ने कही।
श्री क़ादरी ने कहा कि सियासत ने ही भारत का विभाजन कराया। सियासत ही नहीं चाहती कि हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के बीच मैत्री सम्बंध कायम हो। सीमाओं पर जंग मुसलसल जारी है। इस जंग का नुकसान कौन सहता है। दोनों मुल्कों की आवाम। दुनिया में समझौता ही एकमात्र रास्ता है। लड़ाई से दुनिया की कोई जंग नहीं जीती जा सकती है। हम आज आज़ाद है, तो सिर्फ हम अपने आन्दोलन की लड़ाई से, ना कि हथियारों की लड़ाई से आजाद है। इससे पहले मुख्य अतिथि शाहनवाज कादरी, उमेर किदवई, राजनाथ शर्मा ने महात्मा गांधी और डॉ राममनोहर लोहिया कों पुष्पांजलि अर्पित कर श्रद्धांजलि दी।
संयोजक राजनाथ शर्मा ने कहा कि भारत विभाजन से न केवल हिन्दुस्तान बल्कि पाकिस्तान को भी इसका खामियाज़ा भुगतना पड़ रहा है। आज ज़रूरत डा. लोहिया के विचारों को सोचने की है और उसे अमल में लाने की है। हमें इस महासंघ को बनाने के लिये संघर्ष करना पड़ेगा तभी हम मिलकर इन तीनों देेशों से गरीबी, अशिक्षा, भूख, बेरोजगारी, बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था को दूर कर सकेंगे।
सम्मेलन की अध्यक्षता कर रहे सेवा सोसाइटी के अध्यक्ष हाजी मो. उमेर किदवई ने कहा कि महात्मा गांधी की कभी ख्वाहिश नहीं थी कि मुल्कों का बंटवारा हो। जिन सियासी लोगों ने दोनों मुल्कों का बंटवारा किया वह आज भी हिन्दू और मुसलमान की एकता को खत्म करने का कोशिश कर रहे है। भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश का महासंघ बनाओ मुहिम इस बात तस्दीक है कि दिलों में नफरत पैदा करने वाले लोगों पर दिलों को जोड़ने वाले लोग हावी है।
जिला बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष बृजेश दीक्षित ने कहा कि 1965 से समाजवादी नेता राजनाथ शर्मा लगातार सम्मेलन आयोजित करके जनजागरण का काम कर रहे है। उनका मनोबल दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। उनके इस भागीरथी प्रयास से तीनों राष्ट्रों के बीच आपसी सौहार्द का कोई न कोई रास्ता अवश्य निकलेगा। तभी हमारी आजादी की सार्थकता साबित होगी।
सम्मेलन को समाजसेवी अनवर महबूब किदवई, हुमायूं नईम खान, उमानाथ यादव, मृत्युंजय शर्मा, समाजसेवी अशोक शुक्ला आदि ने भी सम्मबोधित किया। सभा का संचालन पाटेश्वरी प्रसाद ने किया। इस मौके पर प्रमुख रूप से हाजी सलाउद्दीन किदवई, मौसूफ अहमद खान, इफ्तिखार हुसैन नन्हें, अंजुम किदवई, विनय कुमार सिंह, सत्यवान वर्मा, असद उल्ला किदवई, नदीम वारसी, विजय कुमार सिंह, मोहम्मद अनस, मनीष सिंह, मो. अदीब इकबाल, राजेश यादव, अनुपम सिंह राठौर, साकेत मौर्या, भगीरथ गौतम आदि लोग मौजूद रहे।
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