लखनऊ: उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनावों के दौरान काफी संख्या में चुनाव ड्यूटी में तैनात लोगों की मौत हो गयी, जिनमें शिक्षकों की तादाद ज़्यादा है. इस पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार और राज्य चुनाव आयोग से इन मृतक पोलिंग ऑफिसर्स के परिवारों को कम से कम 1 करोड़ रुपये का मुआवजा देने पर विचार करने को कहा है.

30 लाख मुआवज़ा बहुत कम
जस्टिस सिद्धार्थ वर्मा और जस्टिस अजीत कुमार की दो जजों की बेंच ने राज्य में कोरोना महामारी के संक्रमण और क्वारंटीन केंद्रों की स्थिति पर दाखिल एक पीआईएल पर सुनवाई के दौरान ये बात कही. दो जजों की बेंच ने पीआईएल पर सुनवाई के दौरान कहा कि राज्य और राज्य चुनाव आयोग ने बिना आरटी-पीसीआर सपोर्ट के चुनाव कर्मियों को ड्यूटी करने के लिए बाध्य किया. इस वजह से कोरोना के चलते इनकी मौत होने की स्थिति में इन्हें कम से कम 1 करोड़ रुपये का मुआवजा मिलना चाहिए. बेंच ने उम्मीद जताई है कि राज्य सरकार और राज्य चुनाव आयोग मुआवजे की राशि पर दोबारा विचार करके अगली तारीख में इसके बारे में जानकारी देंगे. कोर्ट ने 30 लाख रुपये के मौजूदा मुआवजे को बेहद कम बताया है.

मेरठ में 20 मरीजों की मौतें भी कोरोना में गिनी जांय
मेरठ के एक अस्पताल में 20 मरीजों की मौत पर कोर्ट ने कहा कि अगर यह कोरोना का संभावित मामला है तो भी इन्हें कोरोना के चलते हुई मौत में गिना जाना चाहिए. किसी भी अस्पताल द्वारा सिर्फ कोरोना के चलते हुई मौत की संख्या घटाने के लिए इन्हें नॉन-कोविड डेथ केसेज के तौर पर दर्ज नहीं किया जा सकता. अदालत ने मेरठ के मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल को कोविड टेस्टिंग औऱ SpO2 स्टेटस की सटीक रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है जो उनके अस्पताल में भर्ती होने के दौरान रिकॉर्ड किया गया था.

प्रिंसिपल ने कहा सिर्फ तीन को कोविड था
प्रिंसिपल ने कोर्ट को सूचित किया कि मौत से पहले ये 20 लोग अस्पताल में भर्ती किए गए थे, जिनमें तीन की कोविड पॉजिटिव रिपोर्ट है, जबकि बाकी मरीजों का एंटीजन टेस्ट किया गया था, जिसकी रिपोर्ट निगेटिव आई थी. प्रिंसिपल के मुताबिक वे कोरोना के संभावित मामले थे, इसलिए उन्हें कोविड से हुई मौत नहीं कहा जा सकता है.