दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को सोशल एक्टिविस्ट तीस्ता सीतलवाड़ को बड़ी राहत दी है। सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें उन्हें गुजरात दंगों के मामले में सरेंडर करने के लिए कहा गया था। एक जुलाई को गुजरात हाईकोर्ट ने तीस्ता की जमानत याचिका खारिज कर दी थी। इसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

शीर्ष अदालत ने कहा कि सीतलवाड़ के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया गया था। इसके बाद हिरासत में पूछताछ की आवश्यकता खत्म हो गई है। कोर्ट ने तीस्ता सीतलवाड़ को चेतावनी भी दी है। कहा कि तीस्ता गवाहों को प्रभावित करने की कोशिश नहीं करेंगी और उनसे दूरी बनाकर रखेंगी। तीस्ता पर गुजरात दंगों के संबंध में कथित तौर पर साक्ष्य गढ़ने का आरोप है।

सुनवाई के दौरान जस्टिस बीआर गवई ने सीतलवाड़ की गिरफ्तारी के मंशा और टाइमिंग पर सवाल उठाया। कहा कि 2022 तक क्या कर रहे थे? आपने 24 जून और 25 जून के बीच क्या जांच की है कि आपने फैसला किया कि उसने इतना घृणित काम किया है कि उसकी गिरफ्तारी जरूरी हो गई है।

जस्टिस गवई ने कहा कि अगर अधिकारियों के तर्क को स्वीकार कर लिया गया तो साक्ष्य अधिनियम की परिभाषा को कूड़ेदान में फेंकना होगा। हम आपको केवल सतर्क कर रहे हैं कि यदि आप इसमें और गहराई से जाएंगे, तो हमें टिप्पणियां करनी होंगी।

जस्टिस गवई की बातों पर सहमति जताते हुए जस्टिस दीपांकर दत्ता ने फैसला सुनाए जाने तक किसी को हिरासत में रखने की धारणा की आलोचना की। उन्होंने कहा कि शुरुआत में हमें लग रहा था कि धारा 194 के तहत मामला है। अब हमें लगता है कि धारा 194 के तहत मामला संदिग्ध है। और आप चाहते हैं कि फैसला आने तक कोई विचाराधीन कैदी और हिरासत में रहे।