रिफ़त शाहीन

‘दोस्ती’ फ़ारसी ज़ुबान का लफ़्ज़ है । जो दो अल्फ़ाज़ की संधि से मुकम्मल होता है ।

दो+सद =दोस्त सद कहते हैं सीने या छाती को । यानि जब दो सीनों के दरमियां कोई दूरी न रहे तब दोस्त का जन्म होता है ।

इसे यूँ समझें कि, मह्ब्बत इस क़दर हो कि आपके दिल की बात सामने वाला बिना कहे समझ ले, आपके दुख दर्द को बिना कहे महसूस कर ले और आपको गले लगा कर आपके साथ होने का एहसास कराए यानि आपके सीने के राज़ को उसका सीना जान ले तब होती है दोस्ती की अस्ल परिभाषा।और ये भी ज़रूरी नहीं कि , दोस्त कोई मर्द या औरत ही हो।

दोस्त हर उस मुक़द्दस रिश्ते को कहते हैं जो आपका हमदर्द ओ ग़मगुसार हो । माँ, बाप,भाई, बहन ,शौहर सबके पैकर में एक दोस्त होता है । और एक दोस्त में ये सारे रिश्ते पेवस्त होते हैं । यानी दोस्त की शरह बड़ी वसीअ है । इस पर लिखा जाए तो पूरा बाब तैयार हो जाये ।

अगर ऐसा कोई शख़्स आपकी जिंदगी में है तो आप खुशनसीब हैं । नहीं है तब भी आप खुशनसीब हैं ।

कैसे….?

वो ऐसे कि, एक तो आप झूटे रिश्तों के फ़रेब से महफ़ूज़ हैं, दूसरे आपका दोस्त ख़ुदा है । क्योंकि उससे बढ़ कर सीनों के राज़ जानने वाला कौन है ! उससे बढ़ कर मेहरबान कौन है!

मैं भी खुशनसीब हूँ क्योंकि मेरे पास मेरे ख़ुदा की मेहरबानियां भी हैं और उसका अता किया हुआ एक बेहतरीन दोस्त भी । जो बिना कहे मेरे सीने के राज़ को जान लेता है। जो एहसास का पैकर है । जो इंसानियत का देवता है । जो मेरा ग़ुरूर है । जो मेरी ज़िंदगी की बहार है । जो इस यौम ए रफ़ाक़त का अस्ल हकदार भी है और रवादार भी ।

उसे बस उसे मुबारक हो ये यौम ए रफ़ाक़त…