ऐसे समय में जब हिंडेनबर्ग की रिपोर्ट के बाद अडानी ग्रुप के सभी शेयर रसातल में जा रहे है इस ग्रुप के लिए एक और बुरी खबर है. जानकारी के मुताबिक हाल ही में बिकवाली शुरू होने से पहले से ही विदेशी संस्थागत निवेशक समूह की फर्मों में अपनी हिस्सेदारी घटा रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि जब पिछले 7 क्वार्टरों से FIIs अडानी की कंपनियों से पैसा निकाल रहे थे तो पैसा लगा कौन रहा था जिसकी वजह अडानी ग्रुप के सारे शेयर राकेट बन गए थे।

विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) ने लगातार सात तिमाहियों के लिए अडानी एंटरप्राइजेज में अपनी हिस्सेदारी घटाई है, मार्च 2021 की तिमाही में 20.51 प्रतिशत से दिसंबर 2022 को समाप्त तीन महीनों में 15.39 प्रतिशत। इसी तरह, एफआईआई ने लगातार आठ बार अडानी ग्रीन एनर्जी में अपनी हिस्सेदारी कम की तिमाहियों, 2020 की तीसरी तिमाही में 22.78 प्रतिशत से 15.14 प्रतिशत।

अडानी पोर्ट्स एंड स्पेशल इकोनॉमिक जोन और अडानी पावर में लगातार दूसरी तिमाही में एफआईआई की हिस्सेदारी में गिरावट देखी गई। अडानी टोटल गैस और अडानी ट्रांसमिशन ने लगातार पांच तिमाहियों में एफआईआई हिस्सेदारी में कमी देखी, जो कि क्यू3 2022 में 17.25 प्रतिशत और 19.32 प्रतिशत थी, जो क्रमशः क्यू2 2021 में 18.89 प्रतिशत और 21.05 प्रतिशत थी। नई लिस्टेड अडानी विल्मर में एफआईआई की हिस्सेदारी भी लगातार दूसरी तिमाही में गिरी है।

बीएसई के शेयरहोल्डिंग डेटा के मुताबिक, एपीएमएस इंवेस्टमेंट फंड और एलटीएस इनवेस्टमेंट फंड के नाम क्रमशः अडानी एंटरप्राइजेज और अदानी टोटल गैस के प्रमुख शेयरधारकों की सूची से गायब हैं।