• बिजली संकट की आड़ में कारपोरेट बिजली कंपनियों ने की अरबों की लूट

आज देश में पैदा हुआ कोयला-बिजली का ऊर्जा संकट मोदी सरकार के कुप्रबंधन और कारपोरेट लाभ की नीतियों की देन है। कोरोना काल में ही कोल ब्लॉक के नीलामी प्रक्रिया शुरू करने पर कोयला कर्मचारियों ने भविष्य में इसके खतरे की ओर आगाह किया था लेकिन प्रधानमंत्री मोदी व भाजपा द्वारा कोल-पावर सेक्टर के निजीकरण की प्रक्रिया को ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिए बेहद जरूरी बताने का तर्क देकर इसे जायज व देशहित में बताया था।

आज मोदी सरकार द्वारा देशहित व ऊर्जा जरुरतों को पूरा करने के नाम पर शुरू किये गए आर्थिक सुधार यानी अंधाधुंध निजीकरण का दुष्परिणाम देश में पहली बार पैदा हुए अभूतपूर्व बिजली संकट के बतौर सामने आया है। यह बातें वर्कर्स फ्रंट के अध्यक्ष दिनकर कपूर ने अपने प्रेस को दिए बयान में कहीं।

उन्होंने कहा कि आज इस संकट में कारपोरेट कम्पनियां महंगी बिजली बेच कर अरबों रूपए का मुनाफा कमा रही है। कारपोरेट कंपनियों से 6-7 रूपए प्रति यूनिट खरीदी जाने वाली बिजली को 15-20 रूपए तक का भुगतान किया जा रहा है। जबकि यह तथ्य है कि एनटीपीसी, अनपरा आदि सरकारी बिजली घरों में औसतन बिजली लागत 2-3 रूपए प्रति यूनिट आ रही है। कारपोरेट कम्पनियों से महंगी दर पर खरीदी जा रही बिजली का बोझ बिजली के दाम बढाकर आम जनता पर डाला जायेगा।

उन्होंने कहा कि मोदी सरकार द्वारा किए सुधारों से ऊर्जा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र में सरकारी कंपनियों का एकाधिकार व नियंत्रण खत्म होने से यह बाजार के हवाले होना तय है और कारपोरेट कंपनियों की मुनाफाखोरी-लूट में खुली छूट होगी। मोदी सरकार का यह तर्क बेबुनियाद है कि मौजूदा संकट बिजली की खपत में अप्रत्याशित बढ़ोतरी और इस सत्र में भारी बरसात होने से खदानों में पानी भर जाने से कोल खनन के प्रभावित होने से है।

वित्तीय वर्ष 2019-20 के सापेक्ष वित्तीय वर्ष 2021-22 में औसतन 16 प्रतिशत की बिजली खपत में बढ़ोतरी में अप्रत्याशित कुछ भी नहीं है बल्कि अरसे से इस रफ्तार से बिजली खपत में बढ़ोत्तरी होती रही है, इसी तरह देश में इस सत्र में अतिरिक्त बरसात भी दर्ज नहीं की गई है। सामान्य रूप से होने वाली बरसात से निपटने के लिए कोयला खदानों के पास समुचित इंतजाम रहता है लेकिन जो रिपोर्ट्स आ रही हैं उसमें प्रमुख बात यह है कि बरसात के पानी की निकासी के मामले में वक्त रहते पर्याप्त उपाय नहीं किया गया।

दरअसल सार्वजनिक क्षेत्र में बर्बाद करने और कारपोरेट कंपनियों के हवाले करने के मकसद से सरकार काम कर रही है। इसके खिलाफ वर्कर्स फ्रंट अन्य संगठनों के साथ मिलकर अभियान चलायेगा और मोदी सरकार की सार्वजनिक क्षेत्र को तबाह करने वाली नीतियों के बारे में जनता को सचेत करेगा।