दिल्ली:
मोदी सरकार ने गजट नोटिफिकेशन के जरिए ऐलान कर दिया है कि इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने की नई विंडो (2018 से अब तक 29वीं) 6 नवंबर को खुल रही है। यह विंडो 20 नवंबर तक खुली रहेगी और इस दौरान स्टेट बैंक की विभिन्न शहरों में स्थित 29 शाखाएं इलेक्टोरल बॉन्ड बेचेंगी।

सिर्फ जानकारी के लिए बता देना जरूरी है कि पिछली विंडो (28वीं) अभी पिछले महीने ही खुली थी, जिसमें 4 से 13 अक्टूबर तक इलेक्टोरल बॉन्ड बेचे गए थे। वह 10 दिन की विंडो थी, लेकिन इस बार इसे बढ़ाकर 15 दिन कर दिया गया है।

इस नई अधिसूचना से संकेत मिलते हैं कि प्रभावी तौर पर इलेक्टोरल बॉन्ड को बेचने की विंडो को अक्टूब 2023 से मई 2024 के बीच 75 दिनों के लिए खोला जा सकता है। अगले साल ही लोकसभा चुनाव होने वाले हैं। 2018 में लागू हुई इलेक्टोरल बॉन्ड योजना में कहा गया था कि इसे बेचने की विंडो हर साल चार बार 10 दिनों के लिए खोली जाएगी। इसमें जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर के महीने होंगे। इसके अलावा लोकसभा चुनाव वाले वर्ष में 30 दिन की एक और विंडो होगी।

लेकिन, पिछले साल सरकार ने इसकी अवधि बढ़ा कर खुद को अधिकार दे दिया कि वह अतिरिक्त पखवाड़े के लिए बॉन्ड बिक्री की विंडो खोल सकती है, तब जबकि राज्यों या केंद्र शासित प्रदेशों में चुनाव हो रहा हो। इस अधिकार का इस्तेमाल सरकार ने पहले गुजरात और फिर हिमाचल प्रदेश में पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव के दौरान किया था।

बता दें कि इस समय पांच राज्यों में चुनाव हो रहा है। मिजोरम, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में चुनाव 17 नवंबर को पूरा हो जाएगा, जबकि राजस्थान और तेलंगाना में चुनावी प्रक्रिया 20 नवंबर के बाद पूरी होगी।

जानकारी के मुताबिक पिछले बिक्री विंडो (28 अक्टूबर वाली) के दौरान स्टेट बैंक की 14 शाखाओं से 1,148 करोड़ रुपए के इलेक्टोरल बॉन्ड बिके थे। इनमें से 1095 करोड़ रूपए के बॉन्ड एक करोड़ रुपए मूल्य वाले थे। सिर्फ 53 बॉन्ड ही कम मूल्य वाले बिके थे।

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इलेक्टोरल बॉन्ड एक हजार रुपए, 10 हजार रुपए, एक लाख रुपए, 10 लाख रुपए और एक करोड़ रुपए मूल्य में उपलब्ध होते हैं। अक्टूबर 2023 में बिके कुल बॉन्ड में सिर्फ 57 बॉन्ड ऐसे थे जिनका मूल्य एक हजार से 10 हजार रुपए के बीच था।

इलेक्टोरल बॉन्ड की व्यवस्था होने से राजनीतिक दलों को बड़े उद्योग घरानों, कार्पोरेट और यहां तक कि विदेशों से भी चंदा लेने की संस्थागत अनुमति मिल गई है। चंदा देने वाले और उनकी पसंद की राजनीतिक पार्टी की पहचान गुप्त रखी जाती है। सिर्फ स्टेट बैंक, सरकार और केंद्र सरकार की एजेंसियों को ही दानदाताओं के बारे में पता होता है।