लखनऊ:
उत्तर प्रदेश कांग्रेस ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया को पत्र लिखकर आयकर अधिनियम की धारा 37(1) के तहत चिकित्सकों को मुफ्त उपहार पर छूट न दिए जाने की मांग किया है। प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता विकास श्रीवास्तव ने आरोप लगाते हुए कहा कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय एवं केन्द्र सरकार ने अपने चहेती दवा कंपनियों को करोना महामारी के दौरान जबरदस्त लूट करने का अवसर दिया।

कांग्रेस प्रवक्ता ने बताया कि इसका ताजा प्रमाण यह है, कि विगत 6 जुलाई 2022 को आयकर विभाग द्वारा बेंगलुरू स्थित डोलो 650 टैबलेट के निर्माता “माइक्रो लैब्स लिमिटेड ” पर डाले गए छापे के दौरान दवा कंपनियों की लूट और केन्द्र सरकार की घोर लापरवाही उजागर हुई। इस पूरे आर्थिक भ्रष्टाचार में दवाइयों के मूल्य निर्धारण प्रक्रिया में स्वास्थ्य मंत्रालय की लचर नीति उजागर हुई। दवा कंपनियों की मुनाफाखोरी का भी खुलासा हुआ है। उन्होंने बताया कि फेडरेशन ऑफ मेडिकल एंड सेल्स रिप्रेजेंटेटिव एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने भी “डोलो कंपनी” की इस हरकत को लेकर जनहित याचिका दायर की है। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मुद्दे को गंभीर मानते हुए केंद्र सरकार से 10 दिन में जवाब मांगा हैं।

प्रवक्ता विकास श्रीवास्तव ने बताया कि यूपी कांग्रेस ने अक्टूबर 2020 में ही तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन से पत्र भेजा और जानकारी मांगी थी कि भारत में आवश्यक “दवाइयां और रेमडेसिवीर” अमेरिका से भी 72 गुना अधिक मूल्य पर क्यों उपलब्ध कराई जा रही है? तब तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन ने मामले को बिना संज्ञान में लिए ,अपनी चहेती दवा कंपनियों को लूट का पूरा अवसर दिया। उन्होंने बताया कि कांग्रेस की जन व्यथा निस्तारण समिति ने अब केंद्रीय स्वास्थ्य परिवार कल्याण मंत्री मनसुख मांडविया को दोबारा पत्र भेजा है । कांग्रेस ने मांग किया कि “माइक्रो लैब्स लिमिटेड” पर मुनाफाखोरी का खुलासा हो जाने के बाद इस संदर्भ में उपर्युक्त यह होगा कि सरकार देश में दवा उत्पादन कंपनियों को आयकर अधिनियम की धारा 37 (1)के अंतर्गत मुक्त उपहार पर छूट न दिए जाने पर भी विचार करें । इसके साथ ही इस अधिनियम की धारा 132 के अंतर्गत संबंधित उन फार्मा कंपनियों ,अस्पतालों के प्रबंध तंत्र व डॉक्टरों पर भी कार्रवाई किए जाने की आवश्यकता है,जिन्होंने कोविड काल में अनियमितता पूर्ण मानक को आधार बनाकर आवश्यक दवाओं और रेमेडी सेवर इंजेक्शन में भारी बेहिसाब मुनाफे में हिस्सा कमाया। Dolo-650 के निर्माताओं ने सेल्स और प्रमोशन के नाम पर डॉक्टरों को लगभग 1000 करोड़ रुपए के मूल्य के मुफ्त उपहार बांटे थे। जांच में यह भी स्पष्ट हुआ है कि वित्तीय अनियमितता की आरोपी दवा कंपनी ने अपने खातों में छूट के योग्य खर्च नहीं।( Unallowable expenses) और यात्रा में खर्च के तौर पर दिखाया गया, इसका भी खुलासा आयकर की छापामारी के दौरान हुआ है ।

कांग्रेस प्रवक्ता ने बताया कि स्वास्थ्य मंत्री से मांग किया गया है कि चिकित्सा विशेषज्ञों से मिली जानकारी के मुताबिक 500 मि.ग्रा.पेरासिटामोल के लिए “ड्रग प्राइसिंग अथॉरिटी” कीमत तय करती है । लेकिन जैसे ही डोज को बढ़ाकर 650 मि.ग्रा. किया जाता है । यह नियंत्रित कीमत के दायरे से बाहर हो जाता है। मूल्य निर्धारण की इसी खामी का लाभ उठाकर दवा कंपनियां अपने प्रोडक्ट का खुद ही मनमाना मूल्य निर्धारित करने का अधिकार पा जाती हैं।क्योंकि सरकार का इस पर कोई हस्तक्षेप नहीं रहता है। सारी भ्रष्टाचार की जड़ मूल्य निर्धारण की यही लचर नीति है। इसी कारण कोविड़ काल में चिकित्सकों द्वारा Dolo 650 मिग्रा की दवाओं को इतना बढ़ावा दिया जाने लगा । वर्ष 2013 तक भारत पर दवाओं के दाम लागत और मुनाफा जोड़ कर होता था। लेकिन मौजूदा सरकार का दवा के दाम, उसकी लागत से कोई लेना-देना नहीं रहा है। इसलिए जो दवाएं “ड्रग्स प्राइस कंट्रोल ऑर्डर”के तहत नहीं आती है । उनका दाम निर्माता कंपनी खुद तय कर लेती है। जिसके कारण ₹10 में बनने वाली दवा का दाम ₹100 या हजार रुपए जैसी उच्च दर पर भी रखा जा रहा है।

श्री श्रीवास्तव ने कहा कि कांग्रेस का मानना है कि केंद्र सरकार देश की अन्य बहु प्रचारित जांच एजेंसियां भी इस विषय की जांच करके कार्रवाई करें । क्योंकि इस मुनाफे और मुफ्त उपहारों की रकम निश्चय ही अरबों रुपए में होगी । जो जनता की गाढ़ी कमाई की लूट है और जिसमें देश के राजस्व को भी लंबा चूना लगाया गया है। आम नागरिक डॉक्टर पर विश्वास करता है।महामारी के दौरान जीवन मृत्यु के बीच झूल रही जनता को डॉक्टर Dolo 650 दवा लिख रहे थे और बीमार लोग बड़े पैमाने पर इसका सेवन कर रहे थे। कोरोना के दौरान राम डिसिवर इंजेक्शन की बिक्री में भी मूल्य निर्धारण की सारी सीमाओं को तोड़ दिया गया। सरकार लाचार रही और भयंकर कालाबाजारी के बीच लोग 20 से 30 हजार ₹ प्रति इंजेक्शन तक भुगतान करने को मजबूर रहे। कांग्रेस मांग करती है कि केंद्र सरकार को दवा मूल्य निर्धारण नीति में व्यापक सुधार करना चाहिए। पर्चे में ब्रांड का नाम ना लिखकर केवल दवाई का नाम ही लिखा जाना चाहिए ,इस निर्देश पर भी कभी अमल नहीं हुआ। सरकारी अस्पतालों में मुफ्त दवाएं उपलब्ध होने के बावजूद डॉक्टर बाजार की महंगी दवाएं कैसे लिख रहे हैं ? बाजार में कई एंटीबायोटिक्स है, जिनकी आवश्यकता नहीं होने के बाद भी डॉक्टरों से खाने की सलाह मरीजों को दे देते हैं ।भारत में दवा का बाजार लगभग 50 अरब डॉलर मूल्य का है।इसीलिए देसी विदेशी कंपनी को इतने बड़े बाजार में लाभ कमाने की लालसा रहती है।