टीम इंस्टेंटखबर
देश में इन दिनों ब्लैक आउट की बातें चल रही हैं, पावर प्लांट बंद होने की कगार पर हैं, कहा जा रहा कि देश में शायद काली दिवाली मनाई जाय. इन सबके बीच सरकार कह रही कि इन बातों में कोई दम नहीं और न ही देश में कोयले की कोई कमी है पर जो ख़बरें हैं कि देश के 135 पर प्लांटों में 110 में कोयला लगभग ख़त्म हो गया है.

सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी की 7 अक्टूबर की रिपोर्ट के मुताबिक देश के 135 में से 110 प्लांट कोयले के संकट का सामना कर रहे हैं और क्रिटिकल स्थिति में पहुंच गए हैं. 16 प्लांट के पास एक भी दिन का कोयला स्टॉक में नहीं है. तो 30 प्लांट के पास केवल 1 दिन का कोयला बचा है. इसी तरह 18 प्लांट के पास केवल 2 दिन का कोयला बचा है. यानी स्थिति बेहद गंभीर हैं.

इसमें हरियाणा और महाराष्ट्र के 3 प्लांट ऐसे हैं, जहां स्टॉक में एक भी दिन का कोयला नहीं है. इसी तरह पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, बिहार में एक-एक प्लांट ऐसे हैं, जहां एक दिन का स्टॉक बचा हुआ है. वहीं, पश्चिम बंगाल के 2 प्लांट में ऐसी स्थिति है. केरल और महाराष्ट्र ने तो नागरिकों से अपील की है कि वह बिजली को सावधानी के साथ खर्च करें.

कोयले की कमी से यूपी में बिजली का संकट बढ़ा है. ग्रामीण इलाकों से लेकर शहरों में बिजली की कटौती हो रही है. कागजों में तो 4 से 5 घंटे की कटौती हो रही है, लेकिन असल में कटौती कहीं ज्यादा है. बता दें कि यूपी में मौजूदा मांग के मुकाबले बिजली की आपूर्ति में 3000 से 4000 हजार मेगावॉट बिजली की कमी आई है.

मध्य प्रदेश भी बिजली संकट का सामना कर रहा है. शिवराज कैबिनेट के ऊर्जा मंत्री प्रधुमन सिंह तोमर ने चिंता जाहिर की है. ऊर्जा मंत्री से जब बिजली समस्या के बारे में पूछा गया तो, उन्होंने जवाब देते हुए कहा कि चीन में भी कोयला नहीं है. वह भी बिजली संकट से जूझ रहा है. ऐसे ही हालात राजस्थान के भी हैं.

देश में बिजली उत्पादन उद्योग कोयले पर बहुत ज्यादा निर्भर है. कुल 388 गीगावॉट बिजली उत्पादन की क्षमता वाले संयंत्र हैं. जिनमें 208.8 गीगावॉट बिजली कोयला आधारित संयंत्रों से पैदा होती है. पिछले वर्ष देश में कोयले से 1,125.2 टेरावॉट-घंटे बिजली का उत्पादन हुआ था. अक्टूबर महीने में यूं भी हर साल बिजली की मांग बढ़ जाती है, लेकिन इस वर्ष मामला कुछ अलग है.

पिछले दो महीनों में देश की अर्थव्यवस्था लगभग पूरी तरह खुल गई है जो पिछले 18 महीनों से कोविड की पाबंदियों के कारण ठप पड़ी थी. अगस्त-सितंबर के दो महीनों में बिजली खपत 124.2 अरब यूनिट प्रति माह तक पहुंच गई जो 2019 के इन्हीं दोनों महीनों में 106.6 अरब यूनिट प्रति महीने रही थी.

कहना ग़लत न होगा कि सरकार के दावों और असलियत में ज़मीन आसमान का अंतर है. जिस तरह के हालात हैं वह सरकार की चिंता बढ़ाने वाले हैं, ज़रुरत झूठे दावों की नहीं ग्रौं लेवल पर काम करने की है. सरकार की लापरवाई के चलते अगर लोगों की दीवाली काली चली गयी तो सरकार को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। विधानसभा चुनाव सर पर हैं.