विश्व टीबी (दिवस 24 मार्च) पर विशेष

हमीरपुर
क्षय रोग (टीबी) अब लाइलाज बीमारी नहीं है। इसका सबूत है जनपदवासी 25 वर्षीय नौजवान और 12 वर्ष के किशोर की सेहत। इन दोनों को क्रमश: एक्सटेनसिवली ड्रग रेजिस्टेंस (एक्सडीआर) और मल्टी ड्रग रेजिसटेन्स (एमडीआर) संक्रमण था। नियमित इलाज और पौष्टिक खानपान से अब दोनों ही पूरी तरह स्वस्थ हैं। हालांकि ये मामले बानगी भर हैं। जनपद में ऐसे कई मामले हैं जो क्षय रोग के भीषण संक्रमण से शिकार होने के बावजूद आज पूरी तरह स्वस्थ हैं।
पांच वर्षों से टीबी से जूझ रहा 25 वर्षीय युवक मूलरूप से सुमेरपुर का निवासी है और एक फैक्ट्री में जॉब करते समय टीबी की चपेट में आया था। युवक ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि उसको 20 वर्ष की उम्र में टीबी हुई थी। लखनऊ में कुछ समय तक उपचार चला। आराम नहीं मिला तो मप्र के नौगांव छानी चला गया। वहां की भी दवाएं खाई, लेकिन कोई खास आराम नहीं मिला तो दवाएं छोड़ दी। सरकारी अस्पताल में जांच कराई तो पता चला कि टीबी बिगड़कर एमडीआर हो गई है। इसकी दवाएं भी अस्पताल से मिली, मगर एक बार फिर वो नादानी कर बैठा और इलाज अधूरा छोड़ दिया। जिसकी वजह से एमडीआर टीबी बिगड़कर एक्सडीआर में तब्दील हो गई।

युवक बताता है कि ठीक ढाई साल पहले उसे पता चला कि उसकी टीबी पहले से ज्यादा खतरनाक हो गई है और उपचार लगकर नहीं कराया तो जान भी जा सकती है, इसके बाद उसने दृढ़ संकल्प लिया और लगकर टीबी अस्पताल से मिलने वाली दवाएं और डॉक्टरों के परामर्श पर अमल किया। आज वो एक्सडीआर टीबी को पूरी तरह से मात दे चुका है। स्वस्थ है और अपनी ड्यूटी भी कर रहा है। युवक ने टीबी से जूझने वाले मरीजों को संदेश देते हुए कहा कि टीबी की पुष्टि होते ही डॉक्टर के परामर्श पर दवा लेना शुरू कर दें। एक भी दिन का नागा न करें, तभी टीबी को हराया जा सकता है।

इसी तरह हमीरपुर के एक मोहल्ले की 12 साल की किशोरी भी टीबी के शुरुआती इलाज में ढिलाई बरतने की वजह से एमडीआर की शिकार हो गई थी। लेकिन लगातार उपचार कराने और डॉट्स की दवाएं खाने से ठीक हो चुकी है।

मरीज भटके नहीं, सरकारी अस्पतालों में कराएं उपचार
जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ.महेशचंद्रा ने बताया कि टीबी अस्पताल में टीबी का बेहतर इलाज और दवाएं उपलब्ध हैं। मरीजों को यहां-वहां भटकने की आवश्यकता नहीं है। जनपद में 13 स्थानों पर टीबी की जांच की जाती है। टीबी अस्पताल में सीबी नॉट मशीन से जांच की जाती है। जबकि राठ-मौदहा सीएचसी में ट्रूनेट मशीन से जांच होती है। समय-समय पर अभियान चलाकर टीबी मरीजों को चिन्हित किया जाता है। सरकारी इलाज का नतीजा है कि एक्सडीआर टीबी के मरीज भी ठीक हो रहे हैं।

टीबी के आंकड़ों पर एक नजर
वर्ष 2020 में जनपद में शुरुआती टीबी के 1825, एमडीआर के 66 और एक्सडीआर के 6 मरीज मिले। 2021 में शुरुआती टीबी के 2037, एमडीआर 37 और एक्सडीआर के 7 मरीज मिले। वर्ष 2022 में अब तक शुरुआती टीबी के 196 और एमडीआर के 3 मरीज मिल चुके हैं।

एमडीआर के 74 मरीज उपचाराधीन
जिला डॉट्स प्लस ट्रीटमेंट कोआर्डिनेटर (डीपीटीसी) वरुण पाण्डेय ने बताया कि जनपद में इस वक्त एमडीआर टीबी से ग्रसित 74 मरीज उपचाराधीन हैं। आधा दर्जन से अधिक एमडीआर टीबी से ग्रसित मरीज पूरी तरह से ठीक हो चुके हैं और एक्सडीआर टीबी से ग्रसित एक युवक नियमित उपचार और देखभाल से ठीक होकर सामान्य जीवन व्यतीत कर रहा है।

ड्रग रेजिस्टेंस टीबी
0 मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस टीबी (एमडीआर)- इस प्रकार की ड्रग रेजिस्टेंस टीबी में फर्स्ट लाइन ड्रग का टीबी के जीवाणु (माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस) पर कोई असर नहीं होता है। अगर टीबी का मरीज नियमित रूप से टीबी की दवाई नहीं लेता है या मरीज द्वारा जब गलत तरीके से टीबी की दवा ली जाती है या मरीज को गलत तरीके से दवा दी जाती है और या फिर टीबी का रोगी बीच में ही टीबी के कोर्स को छोड़ देता है (टीबी के मामले में अगर एक दिन भी दवा खानी छूट जाती है तब भी खतरा होता है) तो रोगी को मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस टीबी हो सकती है।
0 एक्सटेनसिवली ड्रग रेजिस्टेंस टीबी (एक्सडीआर)- इस प्रकार की टीबी मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस टीबी से ज्यादा घातक होती है। एक्सटेनसिवली ड्रग रेजीस्टेंट टीबी में मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस टीबी के उपचार के लिए प्रयोग होने वाली सेकंड लाइन ड्रग्स का टीबी का जीवाणु प्रतिरोध करता है। इस प्रकार की टीबी में एक्सटेंसिव थर्ड लाइन ड्रग्स द्वारा दो वर्ष से अधिक तक उपचार किया जाता है।