लखनऊ
इमामबाड़ा गुफ़रान मआब में मुहर्रम की नवीं मजलिस को ख़िताब करते हुए मौलाना कल्बे जवाद नक़वी ने क़ुरान और हदीसों की रौशनी में वसीले की अज़मत और ज़रूरत को बयान किया।

मौलाना ने वसीले की तौज़ीह और तशरीह करते हुए कहा कि वसीले से मुराद ईमान, अमले सालेह और नमाज़ नहीं हैं क्योकि क़ुरान मजीद ने कहा है की ऐ साहिबाने ईमान वसीला तलाश करो, वसीला तलाश करने का तक़ाज़ा साहिबाने ईमान से हो रहा हैं। बग़ैर नमाज़ और अमले सालेह के इंसान मोमिन नहीं हो सकता। इसका मतलब ये हुआ कि वसीले से मुराद कुछ और हैं जिस पर मुसलमानों ने ग़ौर नहीं किया। मौलाना ने आयाते क़ुरान, हदीसों और बुज़ुर्ग मुहद्देसीन के अक़वाल से साबित किया कि वसीले से मुराद मुहम्मद व आले मुहम्मद अ.स है जिन से मुहब्बत और तमस्सुक के बग़ैर ईमान मुकम्मल नहीं हो सकता।

मौलाना ने दौराने मजलिस अफ़ग़ानिस्तान में शियों के जारी नरसंहार और तकफ़ीरी आतंकवाद की कड़े शब्दों में निंदा की। मौलाना ने कहा कि औपनिवेशिक शक्तियों ने तकफ़ीरी फतवों के ज़रिये पूरी दुनिया में आतंकवाद को बढ़ावा दिया। आज भी तकफ़ीरी मुल्ला आतंकवाद के ख़िलाफ़ कोई बयान नहीं देते जिससे आतंकवाद को बढ़ावा मिला हैं। अफ़ग़ानिस्तान में आये दिन शियों की मस्जिदों और इमामबाड़ों में धमाके हो रहे हैं जिससे अफ़ग़ानी मिल्लत को काफी नुक़सान पहुंचा हैं। मौलाना ने कहा कि शिया सिर्फ़ ईरान और हिंदुस्तान में महफूज़ हैं वरना हर मुल्क में शियो को मारा जा रहा हैं। ये कोई सियासी बयान नहीं बल्कि हक़ीक़त हैं।

मजलिस के आख़िर में मौलाना ने इमाम हुसैन अ.स के 6 महीने के बेटे हज़रत अली असग़र अ.स की शहादत को तफ़सील के साथ बयान किया जिसे सुनकर मोमनीन ने बेहद गिरया किया। मजलिस के बाद हज़रत अली असग़र अ.स के झूले की शबीह की ज़ियारत कराई गयी।