लखनऊ
भाकपा (माले) ने महंगा आयातित कोयला न खरीदने वाले राज्यों में बिजली घरों को घरेलू कोयले की आपूर्ति में 30 से 40 प्रतिशत तक की कटौती करने के केंद्र सरकार के आदेश को तानाशाहीपूर्ण बताते हुए इसे वापस लेने की मांग की है।

राज्य सचिव सुधाकर यादव ने बुधवार को जारी बयान में कहा कि सरकार का अडानी प्रेम जनहित पर भारी है। आयातित कोयले का टेंडर अडानी को मिला है। घरेलू कोयले की तुलना में कई गुना महंगे आयातित कोयले के उपभोग से बिजली महंगी होगी। इसका सीधा असर पहले से ही महंगाई की मार झेल रही जनता पर पड़ेगा। इसकी खरीद के लिए राज्यों पर दबाव बनाकर सरकार अर्थव्यवस्था का अडानीकरण तेज कर रही है।

माले नेता ने कहा कि एक तरफ केंद्र सरकार का कोयला मंत्रालय हाल ही में कह चुका है कि देश में घरेलू कोयले की कोई कमी नहीं है और बिजली घरों के कोयला स्टॉक में आई कमी के अन्य कारण हैं। तब फिर महंगे कोयले का आयात क्यों किया जा रहा है और इसे ऊंची कीमत पर लेने के लिए राज्यों पर जबरन दबाव क्यों बनाया जा रहा है।

कामरेड सुधाकर ने कहा कि इसका कारण केंद्र सरकार का अडानी प्रेम है। मोदी सरकार ने अपने प्रभाव का उपयोग कर अडानी को पहले ऑस्ट्रेलिया में कोल ब्लॉक और खनन का अधिकार दिलाया। इसके लिए देश के सरकारी बैंक से भारी-भरकम कर्ज भी अडानी की कंपनी को दिलाया गया। आयातित कोयले के टेंडर का अवार्ड एनटीपीसी द्वारा अडानी को किया गया है। अब इस कोयले को राज्यों में स्थित बिजली घरों को बेचने के लिए केंद्र सरकार के माध्यम से राज्यों पर दबाव बनाया जा रहा है।

माले राज्य सचिव ने कहा कि केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय द्वारा राज्यों पर आयातित कोयला खरीदने की शर्त थोपने से स्पष्ट है कि भाजपा सरकार को कारपोरेट की फिक्र है न कि जनता की। कारपोरेट घराने एक ओर निजीकरण के रास्ते सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों और प्राकृतिक संपदाओं को हड़प रहे हैं, वहीं दूसरी ओर सीधे शासकीय आदेशों के जरिये भी जनता को लूटने की जुगत कर रहे हैं।

कामरेड सुधाकर ने कहा कि किसानों ने कृषि का कारपोरेटीकरण करने वाले तीन कृषि कानूनों को लड़कर वापस कराया। अर्थव्यवस्था के कारपोरेटीकरण के खिलाफ देश को बचाने के लिए सबको मिलकर लड़ना होगा।