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देश की आजादी में उलमाओं के बलिदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता

डॉक्टर मोहम्मद नजीब कासमी सम्भली भारत में विभिन्न रंगों के, विभिन्न भाषा बोलने वाले और विभिन्न धर्मों के मानने वाले लोग लम्बे समय से रहते चले आ रहे हैं। मक्का मुकर्रमा में
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देश की आजादी के लिए जाम-ए-शहादत पीने वाले ओलेमा

हर साल की तरह इस साल भी जश्न-ए-आजादी के मौके पर पूरे भारत में सभी रियासती सरकारें चाहे वह दांए बाजू की पार्टी हों या बाऐं बाजू की हों, या नाम निहाद
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ज़मीन हिलती थी और आसमान रोता था

ज़मीन हिलती थी और आसमान रोता था,ज़मीने गर्म पे सिब्ते नबी का लाशा था। आज की तारीख़ इसलाम की सरबुलंदी और यज़ीदी मुसलमानों की पस्ती की है। इमाम हुसैन तीन दिन के
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यौमे आशूरह का पैग़ाम उम्मते मुस्लिमा के नाम

मोहम्मद आरिफ नगरामी आज यौमे आशूरह है। आज का दिन जमाने कदीम से काफी अहमियत का हामिल रहा है। बाज रवायात के मुताबिक उसी दिन हजरत आदम अ. को दुनिया मं उतार
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इमाम हुसैन किसी मिल्लत, मज़हब या मुल्क की जागीर नहीं

हुसैन से मिली इंसानियत को ऐसी हयात,यज़ीद आते रहे पर उसे मिटा न सके। आज मुहर्रम की सातवीं तारीख़ है। आज ही के दिन से रसूल ख़ुदा मोहम्मद मुस्ताफ़ा (स) के निवासे
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ख़ूने अबूतालिब की क्या शान निराली है

ख़ूने अबूतालिब की क्या शान निराली है,इस्लाम बचाने को यह काम सदा आया। आज मुहर्रम की छठवीं तारीख़ हैं। जैसे जैसे दिन गुज़र रहे हैं करबला का वह ख़ूनी मंज़र दिलो दिमाग
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लखनऊ का मुहर्रम और अज़ादारी सारी दुनिया मेें मशहूर है

मोहम्मद आरिफ नगरामी माहे मुहर्रम कमरी कलेण्डर का पहला महीना है और इस महीने की दसवीं तारीख को करबला के मैदान में नवासये रसूल सल0 हजरत हुसैन रजि0 मय अपने 72 अइज्जा
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केवल सत्य का निर्वचन हिन्दू दर्शन का उद्देश्य नहीं

ह्रदय नारायण दीक्षित भारतीय राष्ट्रजीवन में आनंदमय जीवन की अभिलाषा है। इस अभिलाषा को पूरा करने की आचार संहिता भी है। यह संहिता हिन्दू धर्म है। इस आचार संहिता में हिंसा का
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इमाम हुसैन ने अपने ख़ून से जो लकीर खींची उसे आज तक कोई न मिटा सका

जहां चुनी गई फिर से हरम की बुनियादें,फ़क़त वो करबोबला की ज़मीन दिखती है। आज मुहर्रम की पांचवीं तारीख़ है, इमाम हुसैन अलैहिस्लाम को कर्बला आये तीन दिन गुज़र चुके हैं। इमाम
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इस्लाम तख़्ते शाम के नीचे दबा था जब…

इस्लाम तख़्ते शाम के नीचे दबा था जब,सर दे के तब हुसैन ने गोदी में ले लिया। आज मोहर्रम की चौथी तारीख़ है। इमाम हुसैन को करबला में आये हुए दो दिन