लेख

बसपा की भाजपा से फिर शुरू हुई गलबहियाँ

उमाकांत श्रीवास्तव

बहन जी,अब आप चाहकर भी इस सच को झुठला नहीं सकतीं कि आपने राज्यसभा की एक सीट के बहाने भाजपा से खुलेआम गलबाहियाँ की हैं। आंकड़े इस बात की गवाही खुद दे रहे हैं, इस बार यू०पी० से राज्यसभा सांसद की 10 सीट्स के लिए चुनाव होना था और दलगत विधायकों की स्थिति के अनुसार (बीजेपी 305, सपा 47, अपना दल सोनेलाल 09, सुहेलदेव 04, रा०लो०द० 1, निर्दल 03, निषाद पार्टी 01, कांग्रेस 07, बसपा 18 टोटल 395 और 08 सीट रिक्त टोटल 403।) एक सीट के लिए 36 विधायकों के वोट की दरकार थी। इस सीधी सी गणित के अनुसार बीजेपी अपने बलबूते राज्यसभा की 8 सीट सपा 1 सीट जीत सकती थी और बीजेपी अलायन्स 18+ 09+04 यानी कुल 31 वोट बच रहे थे और वो अपनी पुरानी तिकडमी राजनीति के अनुसार 5 वोट आसानी से जुगाड़ करके अपना 1 कैंडिडेट और जिता सकती थी, किन्तु बीजेपी ने जानबूझकर केवल 8 कैंडिडेट्स ही खड़े किए और 1 सीट अपनी गुप्त डील के तहत बसपा के लिए छोड़ दी और बहन जी ने भी बीजेपी के साथ गुप्त रूप से डील करते हुए अपना 1 कैंडिडेट खड़ा कर दिया जो कि बिना बीजेपी के सपोर्ट के किसी भी हालत में नहीं जीत सकता था। क़्योंकि बसपा के पास 18 वोट थे जिनमें 2 वोट एक मुख्तार अंसारी का और दूसरा नीतिन अग्रवाल का कम हो गया तो बचे 16 वोट। वहीं बीजेपी एलायन्स के 31 वोट इस तरह भाजपा के सपोर्ट से बसपा की 1 सीट पर जीत पक्की हो गई थी और अंततः बसपा ने बीजेपी की गुप्त डील के सहारे 1 राज्य सभा सीट जीत भी ली। इससे 2022 और 2024 से पहले ही बीजेपी और बसपा के बीच की गुप्त डील खुल गयी।कांशीराम जी की मृत्यु के बाद स्वयं पूरी पार्टी पर कब्जा कर बहन जी दलितों की स्वयंभू नेता बन बैठी, लेकिन दलितों के लिए कभी कुछ नहीं किया बल्कि स्वयं मुख्यमंत्री बनने के लिए दलितों और मुस्लिमों को छोड़कर बीजेपी के साथ डील करके तीन बार सरकार बनाई। वैसे तो बसपा वैचारिक रूप से 1995 में ही मर गयी थी जब भाजपा से गठबंधन कर, “सर्वजन” का विचार आया था।अब तो बची-खुची पार्टी अपनी अंतिम साँसे गिन रही है।किन्तु ये सब आपने इतनी चालाकी और होशियारी के साथ किया कि किसी को जरा भी आभास नहीं हुआ।और दलितों के हितों की लड़ाई के लिए सपा, कांग्रेस, और बीजेपी की विरोधी पार्टी के रूप में दलितों की सबसे बड़ी हितैषी पार्टी के रूप में बसपा को प्रस्तुत किया और खुद उसकी सुप्रीमो बन बैठी किन्तु हित आपने हमेशा अपना और अपने परिजनों का साधा। आपकी फिलॉसफी है, “बनाये रहो सत्ता,भाड़ में जाये जनता” और,” लगाओ अपनी जीत की गणित, ऐसी तैसी में जाए मुस्लिम दलित” वैसे ये फिलॉसफी तो लगभग सभी सत्ताधारी राजनीतिक पार्टियों और उनके दिग्गज राजनेताओं की भी है। बस जनता इस बात को समय पर समझ नहीं पाती है, किन्तु अभी जो राजनीति का खेल आपने खेला है, उससे दूध का दूध और पानी का पानी हो गया।आपका ये दलितों को धोखा देकर अपना उल्लू सीधा करने का खेल, जो अंदर-अंदर चुपचाप चल रहा था और किसी को कानो-कान खबर तक नहीं हो रही थी अचानक उसका पर्दाफ़ाश हो गया। पार्टी के वफादार विधायकों को जब अपनी ही पार्टी की अध्य्क्ष बहन जी द्वारा ठगे जाने की बात समझ मेंआई तो विधायको ने,पार्टी के विरुद्ध जाकर मात्र राज्यसभा की एक सीट के लिए बहन जी द्वारा बीजेपी के साथ की गई चुपचाप डील से नाराज़ होकर प्रस्तावक से अपना नाम वापस ले लिया, जिससे बहन जी का असली चेहरा सबके सामने आ गया और पोल खुल जाने पर बहन जी अपने गुस्से को कंट्रोल नही कर पाई और ग़ुस्से मे उनके मुंह से मन की असली बात सबके सामने निकल गई कि वो सपा को हराने के लिए बीजेपी को किसी भी हद तक जाकर सपोर्ट करेंगी। आने वाले विधान परिषद चुनाव में सपा को हराने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है बीजेपी के साथ भी गठबंधन कर सकती है. किन्तु जैसे ही बहन जी को अपनी गलती का एहसास हुआ तो तुरंत नुकसान की भरपाई के लिए यू टर्न लेते हुए बयान दे डाला कि राजनीति से सन्यास ले लूंगी किन्तु बीजेपी के साथ गठबंधन नही करूंगी। बीजेपी को किसी भी कीमत पर सपोर्ट नहीं करूँगी लेकिन बहन जी अब कोई फायदा नहीं, तीर कमान से निकल गया है और जनता सब समझ गयी है मुख्य रूप से आपका परम्परागत वोट बैंक आपसे नाराज़ है। आपका वोटर और देश की जनता इसके लिए आपको कभी माफ नहीं करेगी।
उमाकांत श्रीवास्तव
प्रदेश उपाध्यक्ष
आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट

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