उत्तर प्रदेश में 2017 के चुनाव में भाजपा को प्रचंड बहुमत से जिताने में अमित शाह की सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूले ने प्रमुख भूमिका निभायी थी, इस फॉर्मूले में OBC समुदाय को काफी प्रमुखता दी गयी थी जिसने भाजपा को इतनी बड़े बहुमत वाली सरकार बनाने में मदद की. यही वजह है कि इसबार भी भाजपा अपने उसी हथियार को आज़माने जा रही है लेकिन नई धार के साथ और यह धार है बिहार के नितीश कुमार का लव-कुश मॉडल।

इसी रणनीति के तहत बीजेपी यूपी में डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह को आगे कर ओबीसी समुदाय को जोड़ने की मुहिम चलाने जा रही है. बीजेपी की नजर यूपी के गैर-यादव ओबीसी मतदाताओं पर है.

बीजेपी ने 2022 के यूपी चुनाव में 350 प्लस सीटों पर जीत दर्ज करने और 50 फीसदी से अधिक वोट बैंक पर काबिज होने का लक्ष्य रखा है. बीजेपी अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए पिछड़ा और अति पिछड़ा वोट बैंक को साधने की रणनीति बनाई है, जिसके लिए 31 अगस्त को मेरठ से ओबीसी सम्मेलन शुरू कर रही है. इसकी जिम्मेदारी बीजेपी के ओबीसी मोर्चा को दी गई है.

ओबीसी सम्मेलन में उत्तर प्रदेश की योगी सरकार से लेकर केंद्र की मोदी सरकार और बीजेपी संगठन में पिछड़े वर्ग को मिली भागीदारी के साथ सरकार की उपलब्धियां बताएगी. उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह की अगुवाई में होने वाले पिछड़े वर्ग के सम्मेलन की योजना बनाई गई है. इसके अलावा योगी-मोदी कैबिनेट में शामिल ओबीसी मंत्रियों को बुलाया जाएगा.

बता दें कि उत्तर प्रदेश के 2017 विधानसभा चुनाव के बाद 2019 लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने 2018 में करीब 1 से डेढ़ महीने तक पिछड़ी जनजाति, पिछड़ी जातियों के सम्मेलन किए थे, जिनमें मौर्य, कुशवाहा ,कुर्मी ,यादव ,निषाद समेत कई पिछड़ी जातियों को शामिल कर यह सम्मेलन लगभग डेढ़ महीने तक लगातार कराए गए थे. बीजेपी को इसका सियासी फायदा भी चुनाव में मिला था. इसी फॉर्मूले को एक बार फिर से 2022 विधानसभा चुनाव में बीजेपी प्रयोग करने के मूड में हैं.

बीजेपी का ओबीसी सम्मेलन के कार्यक्रम विधानसभाओं और जिलों में पिछड़े वर्ग की जातियों को ध्यान में रख करने की रूपरेखा बनाई है. केंद्र सरकार द्वारा ओबीसी के हक में लिए गए फैसलों के बारे में बताया जाएगा. इनमें खासकर नीट में 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण और राज्यों को ओबीसी जातियों की सूची का अधिकार देने वाले कानून के बारे में बताया जाएगा. इसके अलावा यूपी सरकार के भी ओबीसी समुदाय के हित में लिए गए फैसलों की जानकारी दी जाएगी.

मेरठ, मथुरा, काशी और अयोधा में ओबीसी के बड़े सम्मेलन किए जाएंगे. 18 सितंबर को अयोध्या में ओबीसी मोर्चा की एक बड़ी कार्यसमिति कराने की तैयारी की गई है, जिसमें यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ, स्वतंत्रदेव सिंह, भूपेन्द्र यादव समेत केंद्र के तमाम ओबीसी मंत्री शामिल होगें. गृहमंत्री अमित शाह को भी न्योता भेजा जाएगा.

बीजेपी यूपी में ओबीसी सम्मेलन कराने की योजना बनाई है. पिछड़े और अति पिछड़े वर्ग की प्रमुख जातियों के अलग-अलग सम्मेलन आयोजित किए जाएंगे, जिन्हें केशव मौर्य और स्वतंत्रदेव सिंह संबोधित करेंगे. यूपी बीजेपी में ये दोनों ओबीसी समुदाय के बड़े नेता माने जाते हैं. स्वतंत्रदेव सिंह कुर्मी समुदाय से आते हैं जबकि केशव मोर्य कुशवाहा समुदाय से आते हैं. सूबे में इन दोनों समुदाय की बड़ी भागेदारी है.

कोइरी समाज खुद को भगवान राम के पुत्र कुश के वंशज होने का दावा करते हैं जबकि कुर्मी समुदाय खुद को कुश के भाई लव से अपने वंश होने का दावा करते हैं. बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आरजेडी चीफ लालू प्रसाद यादव के एम-वाई (मुस्लिम-यादव) समीकरण के जवाब में कुर्मी-कोइरी (लव-कुश) का जातीय फॉर्मूला बनाया था, जो राजनीतिक तौर पर काफी सफल रहा. इसी समीकरण को बीजेपी ने यूपी में अपनाकर 15 साल के सत्ता के वनवास को खत्म करने में कामयाब रही थी और अब फिर से उसी रणनीति पर काम शुरू कर दिया है.

उत्तर प्रदेश की सियासत में तीन दशकों से ओबीसी समुदाय अहम भूमिका में है. बीजेपी गैर-यादव ओबीसी वोटरों को हर हाल में साधकर रखना चाहती है. गैर-यादव ओबीसी वोट बैंक की बात करें तो कुर्मी और कुशवाहा वोट काफी निर्णायक है, जिसके लिए बीजेपी ने कुर्मी समुदाय से ही स्वतंत्र देव सिंह को प्रदेश अध्यक्ष बना रखा है तो मौर्या व कुशवाहा समाज के लिए डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य से लेकर स्वामी प्रसाद मोर्य तक बीजेपी के साथ खड़े हैं. यूपी में कुर्मी और मौर्या समाज करीब 13 फीसदी हैं. कुर्मी और मौर्य समुदाय को साधकर बीजेपी ने 2017 का चुनाव जीता था.

जातिगत आधार पर देखें तो यूपी के पूर्वांचल से लेकर रुहेलखंड और अवध के 16 जिलों में कुर्मी और पटेल वोट बैंक छह से 12 फीसदी तक है. इनमें मिर्जापुर, सोनभद्र, बरेली, उन्नाव, जालौन, फतेहपुर, प्रतापगढ़, कौशांबी, इलाहाबाद, सीतापुर, बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, सिद्धार्थनगर और बस्ती जिले प्रमुख हैं. वहीं, ओबीसी की मौर्या जाति का तेरह जिलों का वोट बैंक सात से 10 फीसदी है. इन जिलों में फिरोजाबाद, एटा, मैनपुरी, हरदोई, फर्रुखाबाद, इटावा, औरैया, कन्नौज, कानपुर देहात, जालौन, झांसी, ललितपुर और हमीरपुर हैं. इसीलिए बीजेपी ने केशव मौर्य और स्वतंत्रदेव के जरिए ओबीसी वोटरों को जोड़ने की रणनीति बनाई है.