गुजरात सरकार ने बिलकिस बानो गैंग रेप और हत्या मामले में 11 दोषियों को छूट देने के अपने फैसले का बचाव करते हुए सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दाखिल किया था. इस हलफनामे में कहा गया कि क्योंकि दोषियों ने जेल में अपनी सजा के 14 साल पूरे कर लिए थे और उनका व्यवहार अच्छा पाया गया था इसलिए दोषियों को छूट दी गई. सुप्रीम कोर्ट ने आज इस मामले की सुनवाई करते हुए गुजरात सरकार खिंचाई की है. सुनवाई कर रही बेंच ने असंतोष जताते हुए कहा कि कल एक भारी भरभरकम हलफनामा रात में दाखिल किया और आज सुबह के अख़बारों में उसकी रिपोर्ट हमें पढ़ने को मिली।
जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच यहीं पर नहीं रुकी। बेंच ने हलफनामे पर सवाल उठाते हुए कहा कि इसमें इतने फैसलों का उल्लेख करने की क्या ज़रूरत थी, बेंच ने कहा कि हलफनामे में तथ्यात्मक पहलुओं का अभाव है. बेंच ने कहा कि हमारे पढ़ने से पहले हलफनामा मीडिया में छप गया. बेंच ने अब दोषियों की रिहाई के खिलाफ अपील दायर करने वालों को हलफनामे का जवाब दाखिल करने को कहा है, याचिकाकर्ताओं के वकील कपिल सिब्बल ने इसके लिए कोर्ट से समय की मांग की है. मामले की सुनवाई अब 29 नवंबर को होगी।
गुजरात सरकार की तरफ से पेश सॉलिसिटर जनरल SG तुषार मेहता ने याचिका का विरोध पुरज़ोर विरोध किया। उन्होंने अदालत से कहा कि आपराधिक मामलों में अजनबी अदालत नहीं जा सकते. इस मामले से याचिकाकर्ताओं का कोई लेना-देना नहीं है. बता दें कि गैंग रेप के दोषियों की समय से पहले रिहाई के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गयी है. इस मामले में दोषी ठहराए गए 11 लोगों को 15 अगस्त 2022 को गोधरा उप-जेल से रिहा कर दिया गया था. गुजरात की भाजपा सरकार ने 28 जून को इन दोषियों की रिहाई के लिए केंद्र की मंजूरी मांगी थी. हालाँकि सीबीआई को इस फैसले पर कड़ा ऐतराज़ था लेकिन केंद्र सरकार ने इसके बावजूद 11 दोषियों की रिहाई पर सहमति दे दी थी. इस फैसले के खिलाफ पूरे देश में काफी विरोध हुआ था, मामला शीर्ष अदालत तक पहुंचा और वहां पर गुजरात सरकार ने हलफनामा दाखिल कर दोषियों की रिहाई का बचाव किया है.
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