बिहार: पहले चरण की 121 सीटों पर औसतन 64.46 प्रतिशत मतदान
पटना: बिहार विधानसभा चुनाव में पहले चरण के लिए 121 सीटों पर हुए मतदान का प्रतिशत ने इस बार न केवल चुनाव आयोग को चौंकाया बल्कि इससे राजनीतिक दलों में खलबली मच गई है। चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक पहले चरण की 121 सीटों पर औसतन 64.46 प्रतिशत मतदान हुआ। मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी विनोद गुंजियाल ने बताया कि मतदान का प्रतिशत अभी और बढ़ सकता है, कारण शाम 7.30 तक 400 मतदान केन्द्रों पर मतदान जारी था। बेगूसराय में तो यह आंकड़ा 67 प्रतिशत पार कर गया है। पिछले 25 सालों में यह बिहार के किसी भी चुनाव में सबसे अधिक मतदान है और 2020 के चुनाव के 57.29 प्रतिशत से भी काफी ज्यादा है।
पहले चरण के मतदान के बीच लखीसराय, छपरा, सीवान और दरभंगा में छिटपुट हिंसा भी देखी गई। हालांकि अन्य जगहों पर मतदान अमूमन शांतिपूर्ण रहा। पहले चरण में 18 जिलों में हुए मतदान में ग्रामीण इलाकों में अत्यधिक उत्साह देखा गया, जबकि राजधानी पटना जैसे शहरी इलाकों में मतदान औसत से कम रहा।
बेगूसराय में 67.32 प्रतिशत, समस्तीपुर में 66.65 प्रतिशत, मधेपुरा में 65.74 प्रतिशत, मुजफ्फरपुर में 64.63 प्रतिशत, गोपालगंज में 64.96 प्रतिशत, लखीसराय में 62.7, पटना में 55.026 प्रतिशत, शेखपुरा में 52.36 प्रतिशत सबसे कम मतदान वाले जिलों में से एक। सीवान, वैशाली, मुंगेर, पटना, भोजपुर, बक्सर और दरभंगा में मतदान का आंकड़ा 60 प्रतिशत को पार नहीं कर पाया। सीवान में 57.41 प्रतिशत, वैशाली में 59.45 प्रतिशत, मुंगेर में 54.90 प्रतिशत, नालंदा में 57.58 प्रतिशत, पटना में 55.02 प्रतिशत, भोजपुर में 53.24 प्रतिशत, बक्सर में 57.06 प्रतिशत और दरभंगा में 58.38 प्रतिशत वोटिंग ही हो पाई है। सहरसा 62.65 प्रतिशत, समस्तीपुर 66.65 प्रतिशत, सारण 60.90 प्रतिशत, शेखपुरा 52.36 प्रतिशत, सीवान 57.41 प्रतिशत , वैशाली 59.45 प्रतिशत, लखीसराय 62.76 प्रतिशत, मधेपुरा 65.74 प्रतिशत, मुंगेर 54.90 प्रतिशत, मुजफ्फरपुर 65.23 प्रतिशत, नालंदा 57.58 प्रतिशत, पटना 55.02 प्रतिशत, बेगूसराय 67.32 प्रतिशत, भोजपुर 53.24 प्रतिशत, बक्सर 57.06 प्रतिशत, दरभंगा 58.38 प्रतिशत, गोपालगंज 64.96 प्रतिशत और खगड़िया 60.65 प्रतिशत मतदान हुआ।
इस बार की रिकॉर्ड तोड़ वोटिंग के पीछे ‘साइलेंट वोटर्स’ का बड़ा योगदान माना जा रहा है, जिसमें महिलाएं और युवा प्रमुख हैं। जमीनी रिपोर्टों और तस्वीरों से यह साफ है कि मतदान केंद्रों पर महिलाओं की कतारें पुरुषों से अधिक लंबी थीं। बिहार में अक्सर महिला मतदाताओं का टर्नआउट पुरुषों से अधिक रहता है। यह वर्ग पारंपरिक रूप से नीतीश कुमार और पीएम मोदी की योजनाओं जैसे ‘जीविका दीदी’, शराबबंदी और लाभार्थी योजनाओं का लाभ लेती हैं। अगर महिलाएं एकजुट होकर वोट करती हैं, तो यह एनडीए के लिए ‘मास्टर स्ट्रोक’ होगा।
वहीं, युवाओं ने भी इस बार बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। युवाओं के लिए रोजगार और बदलाव सबसे बड़े मुद्दे हैं। तेजस्वी यादव की 10 लाख नौकरियों की गारंटी और प्रशांत किशोर की ‘जन सुराज’ की पहल ने इस वर्ग को प्रभावित किया है। राजनीतिक विश्लेषक रिकॉर्ड मतदान को लेकर अलग-अलग राय रखते हैं।
राज्य के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी सहित एनडीए के नेताओं ने दावा किया है कि बंपर मतदान का फायदा सीधे तौर पर एनडीए को मिल रहा है, क्योंकि सरकारी योजनाओं के लाभार्थी 50 प्रतिशत से अधिक महिलाएं बड़ी संख्या में मतदान के लिए निकली हैं। उनका मानना है कि सत्ता के पक्ष में एक शांत लहर थी। वहीं, महागठबंधन का दावा है कि यह बदलाव की लहर है।
लालू यादव ने कहा कि जैसे ‘तवे पर रोटी पलटना जरूरी होता है, वैसे ही शासन में परिवर्तन आवश्यक है। कुल मिलाकर बिहार चुनाव में रिकॉर्ड वोटिंग ने चुनावी गणित को अत्यधिक अस्थिर कर दिया है। ऐसे में किसकी लंका लगी और किसका माहौल बना, यह 14 नवंबर को मतगणना के दिन ही स्पष्ट होगा। दूसरे फेज में भी अगर इसी तरह वोटिंग होगा तो चुनावी पंडितों को और सोचने के लिए विवश कर देगा कि इस बार बिहार में क्या होने वाला है?










