ब्यूरो चीफ फहीम सिद्दीकी

बाराबंकी।लोकसभा चुनाव के मद्देनजर भारतीय जनता पार्टी ने एक बार फिर बाराबंकी 53 लोकसभा सीट (सु.) से सांसद उपेंद्र सिंह रावत पर अपना भरोसा कायम रखा। इस बार भी उन्होंने कई दिग्गजों की फौज को पीछे छोड़ते हुए दोबारा लोकसभा का टिकट हासिल किया। ये राजनीति में दुर्लभ हैं लेकिन उपेंद्र सिंह रावत ने अपनी क्षमताओं और संगठन में मजबूत पकड़ के बूते ये हासिल किया है।

उपेंद्र सिंह रावत का जिले से लगातार दूसरी बार लोकसभा का प्रत्याशी बनाया जाना भाजपा की दूसरी पीढ़ी के सभी नेताओं के लिए बड़ा सदमा है, लेकिन पारख महासंघ के संयोजक एवं केंद्रीय मंत्री कौशल किशोर के इस मृदुभाषी चेले ने दिल्ली दरबार में अपनी मजबूत पकड़ के लिए पहचाने जाने वाले नेताओं को पटखनी देकर यह साबित कर दिया है कि उनको कमजोर नेता समझना विरोधियों की भारी भूल है।

उपेंद्र सिंह रावत का दोबारा टिकट मिलना कई मायनों में चौंकाने वाला है। दिल्ली दरबार के करीबी होने का दावा करने वाले प्रदेश भाजपा के कुछ बड़े नेता इस घटनाक्रम से बेहद हत्‌प्रभ बताए जा रहे हैं। दरअसल, भाजपा के कुछ नेताओं ने खुद को दिल्ली दरबार में प्रबल दावेदार के रूप में प्रोजेक्ट किया लेकिन आलाकमान ने उपेंद्र सिंह रावत पर ही भरोसा जताया। उपेंद्र सिंह रावत अभी काफी युवा हैं और उनमें पार्टी को आगे बढ़ाने की पूरी क्षमताएँ हैं। इसी के साथ भाजपा के तमाम दिग्गजों को भी हाईकमान ने साफ संदेश दिया है है कि नेतृत्व के पास अपना आकलन करने का एक अलग सा तरीका है।

विगत एक दशक से तमाम चुनौतियों को देखते हुए एक व्यक्ति ने जिले की सियासत में सभी का ध्यान अपनी ओर खींचा है वो नाम है युवा तुर्क उपेंद्र सिंह रावत। भाजपा की सियासत में साधारण कार्यकर्ता से जैदपुर विधानसभा से विधायक और एक बार भाजपा से संसद सदस्य का सफर तय करना इतना आसान नहीं है। जिन्होंने बताया कि राजनीति का मतलब इस दौर में जनसेवा और हर संकट का समाधान खोजना है। उनका हंसमुख, सरलता और सौम्यता से भरा व्यक्तित्व हर आम इंसान को अपनी तरफ खींच लेता है। विचारों में आधुनिक, किंतु भारतीयता की जड़ों से गहरे जुड़े उपेंद्र सिंह रावत भाजपा परिवार के उन सामान्य समर्पित कार्यकर्ताओं में से एक हैं, जिनमें सेवाभाव बचपन से ही भरा हुआ है।

दो बार जनप्रतिनिधि के तौर पर मिली ज़िम्मेदारी को सहजता से निभाने वाले उपेंद्र सिंह रावत देखते ही देखते राजनीति के मैदान में रम गए। उपेंद्र सिंह रावत के रुतबे और उनकी कार्यशैली को समझने के लिए हमें यह जानना जरूरी है वो किस तरह अपने काम को शालीनता के साथ अंजाम तक पहुंचाते हैं। आज अगर उपेंद्र को भाजपा प्रत्याशी बनाने पर जिला मुख्यालय से लेकर गाँव के अंतिम छोर तक जश्न है तो इसका कारण उनका समाज के हर व्यक्ति के बीच समर्पण है।

राजनीति में उपेंद्र होना इतना आसान नहीं है इसके लिए प्रतिभा, जुनून और समर्पण होना चाहिए। वो इस मामले में बहुमुखी प्रतिभा के धनी रहे हैं। 2017 में जैदपुर जीतने के बाद से ही उन्होंने राजनीति में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और फिर 2019 में देश के सर्वोच्च सदन लोकसभा में शानदार ढंग से एक सामान्य कार्यकर्ता के तौर पर अपनी मेहनत के बूते पहुंचे हैं। इसका लोहा इनके विपक्षी और धुर विरोधी भी मानते रहे हैं। किसी ने ठीक ही कहा है समय से बड़ा बलवान कोई नहीं। इसीलिए वे अपनी संसदीय क्षेत्र में विकास के काम में सबको साथ लेकर चलना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि विकास धारा में सब साथ हों, भले ही विचारधाराओं का अंतर क्यों न हो।

आज भी जब आम आदमी उनको देखता है तो उसे सहसा विश्वास नहीं होता ये वही उपेंद्र रावत है जो कभी सामाजिक संस्था ‘परिजात’ से जुड़कर राजनीति के शिखर तक पहुंचे हैं। विधायक और सांसद रहते हुए जिले के कई पिछड़े इलाके में जो विकास की गंगा अपने दो बार के कार्यकाल में बहाई है उसकी मिसाल देखने को नहीं मिलती। उपेंद्र सिंह रावत को खाली समय में जब भी मौका मिलता है तो युवाओं से सीधा संवाद करने में वो पीछे नहीं रहते हैं। उनकी समस्याओं को मौके पर ही निपटाने का प्रयास करते हैं। वे परंपरा के पथ पर आज भी आधुनिक ढंग से सोचते हैं। चुनावी बरस में उपेंद्र रावत की सबसे बड़ी चुनौती अब लोकसभा चुनाव में ऐतिहासिक जीत दर्ज कर लगातार तीसरी बार नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने की है।