तौक़ीर सिद्दीकी

वैसे तो चुनाव पांच राज्यों में हो रहे हैं मगर पूरे देश की निगाहें सिर्फ पश्चिम बंगाल पर केंद्रित हैं । मुकाबला बड़ा दिलचस्प और कांटे का है क्योंकि यहां भाजपा और TMC का मुकाबला नहीं बल्कि अमित शाह-नरेंद्र मोदी और ममता बनर्जी का मुकाबला है। इसलिए भाजपा कैसे भी इस मुकाबले को जीतना चाहती है और इसी मानसिकता के साथ चुनावी प्रचार में उतर भी चुकी है. बेहद आक्रामक अंदाज़ में. जन मुद्दों से अलग अपने परंपरागत विभाजनकारी अंदाज़ में. अपने चुनावी एजेंडे के अनुरूप भाजपा ने पश्चिम बंगाल में भी तमाम ऐसे नेताओं को चुनाव प्रचार में उतार दिया है जिनका ‘विभाजनकारी राजनीति’ पर पूरा भरोसा है । उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत भाजपा के तमाम बड़े नेता पश्चिम बंगाल का दौरा कर रहे हैं। विष वमन का खेल शुरू हो चूका है।

बंगाल में ममता बनर्जी उतनी ही लोकप्रिय नेता हैं जितनी की देश में मोदी जी की लोकप्रियता है, बंगाल की सत्ता हासिल करना भाजपा का पुराना ख्वाब है और इसकी तैयारी 2014 के बाद से ही शुरू हो गयी थी. यही वजह है कि भाजपा इसबार बंगाल को पाने के लिए एड़ी चोटी का ज़ोर लगाए हुए है. भाजपा द्वारा पार्टी के ऐसे नेताओं की फ़ौज को बंगाल फतह करने के लिए भेजा गया है जिनकी पहचान विष वमन करने वाले नेताओं के तौर पर है, जिनके बयानात हमेशा समाज को बांटने का प्रयास होते हैं. उम्मीद के मुताबिक़ यूपी के मुख्यमंत्री ने बंगाल पहुंचते ही उन मुद्दों को उठाया जिनसे दो समाजों में नफरत का भाव पैदा हो सके, वह बंगाल में जब महिलाओं की सुरक्षा का सवाल उठाते हैं तब शायद उन्हें हाथरस की घटना याद नहीं रहती, जब वह बंगाल में अराजकता और खराब कानून व्यवस्था की बात करते हैं तो वह विकास दुबे का एनकाउंटर शायद भूल जाते हैं जिसे सच साबित करने के लिए पुलिस को क्या क्या जतन करने पड़े. वह बंगाल में हर उस मुद्दे पर सवाल उठाते हैं जिनका वह यहाँ जवाब देना पसंद नहीं करते। या ऐसा भी कह सकते हैं कि उनसे सवाल करने की किसी में हिम्मत नहीं है और अगर किसी ने हिम्मत की तो उसके साथ क्या क्या हो सकता है यह बात भी सभी जानते हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी आक्रामक अंदाज़ में कोलकाता के ब्रिगेड ग्राउंड पर चुनावी बिगुल फूंक चुके हैं. उन्होंने अपने भाषण में बड़े बड़े वादे किये और बंगाल के लिए 25 साल का ख़ाका पेश किया। उनके मुताबिक जब देश अपना 100वां स्वतंत्रता दिवस मनाएगा तो पश्चिम बंगाल देश का नेतृत्व करेगा। सुनने में कितना अच्छा लगता है, जब मुझे इतना अच्छा लग रहा है तो सोचिये बांगला भाषियों को कितना अच्छा लग रहा होगा। प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में वह सारी बातें कहीं जो वह हर राज्य में जाकर कहते हैं. हमेशा की तरह उनका सारा ज़ोर 70 साल की नाकामियों को बताने पर रहता है, वह कभी मौजूदा समस्याओं पर बात नहीं करते फिर वह चाहे मंहगाई हो, बेरोज़गारी हो, आर्थिक बेहाली हो या फिर ज्वलंत किसानों का मुद्दा, और अगर कभी बात भी करते हैं तो सवाल विपक्ष से पूछते हैं। आज बंगाल में वह सोनार बांग्ला की बात कर रहे हैं लेकिन कल अगर सत्ता मिलने पर वह सोनार बांगला का सपना न पूरा कर सके (15 लाख की तरह) तो यक़ीनन इसका पूरा ठीकरा ममता बनर्जी पर फूटेगा ।

बहरहाल बंगाल में चुनावी शोर अभी शुरू हुआ है आगे यह और कानफाडू बनेगा यह तो तय है. नए नए दांव खेले जायेंगे, नए नए पैंतरे फेके जायेगें। कहीं जय श्रीराम का नारा लगेगा तो बदले में किसी और नारे की सदा बुलंद होगी। सारी नैतिकता किनारे धरी नज़र आएगी और व्यक्तिगत हमलों की बाढ़ आएगी। मुकाबला काफी दिलचस्प होगा। भले ही भाजपा के पास संसाधनों की भरमार है (संसाधन का मतलब पाठक अपने अनुसार निकाल सकते हैं) लेकिन ममता के पास भी ज़मीनी लड़ाई का बहुत तजुर्बा है और अभी तक ममता ने भाजपा के हर दांव को बड़ी कामयाबी से काटा है. देखने वाली बात यही होगी कि बीजेपी ममता के हौसलों के आगे पस्त होगी या उसे बंगाल फतह करने के लिए अभी और इंतज़ार करना पड़ेगा।

इस बीच बंगाल चुनाव को लेकर दो तीन ओपिनयन पोल भी आ चुके हैं. वही ओपिनियन पोल जिसमें लोगों से उनकी राय जानी जाती है, यह अलग बात कि मुझसे आज तक कोई भी ओपिनियन या एग्जिट पोल वाला नहीं टकराया और शायद आप से भी कभी मुलाक़ात नहीं हुई होगी। बहरहाल इन जनमत संग्रहों के हिसाब से बंगाल में ममता बनर्जी की सरकार बन रही है मगर याद रखिये अभी बहुत समय है अपना मत बदलने का. शायद इसीलिए चुनाव आयोग ने भी एक महीने तक इस उत्सव को मनाने की घोषणा की ताकि जब चाहे अपना मन और मत बदल सकें। खैर छोड़िये, जाने दीजिए जनमत को क्योंकि असली मत तो EVM से निकलता है और चुनाव आयोग के अनुसार EVM पूरी तरह से सुरक्षित है हालाँकि बंगाल में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी सवाल उठा चुके हैं कि EVM को झटका विपक्ष को ही क्यों लगता है? अब आप ही बताइये, अरे भाई! झटका तो हारने वाले को ही लगेगा न. EVM का यहाँ ज़िक्र इसलिए क्योंकि उसका सीधा सम्बन्ध चुनाव से है. अब बंगाल में उसके पेट से कैसे नतीजे निकलेंगे यह तो आने वाला समय ही बतायेगा, फिलहाल आप दांव पर दांव का मज़ा लीजिये।