लखनऊ:
आज आल इंडिया पीपुल्स फ्रन्ट की राष्ट्रीय कार्य समिति ने प्रस्ताव पारित कर चुनावी बांड योजना-2018 पर रोक लगाने और रेडिकल चुनाव सुधार किए जाने की मांग की है। प्रस्ताव में हाल में चुनाव बांड की बिक्री की तिथि को गलत तरीके से बढ़ाने तथा चुनावी बांड स्कीम को रद्द करने वाली रिट याचिकाओं की सुप्रीम कोर्ट द्वारा 6 दिसंबर को सुनवाई करने का स्वागत किया गया है। इसमें आगे कहा गया है कि चुनावी बांड स्कीम लाने के पीछे भाजपा का मंशा कारपोरेट कंपनियों तथा अन्य निजी कंपनियों से अपने लिए काला धन प्राप्त करना ही रहा है। एक तो चुनावी बांड संबंधी कानून मनी बिल के रूप में गलत ढंग से पास कराया गया था जबकि यह मनी बिल की श्रेणी में आता ही नहीं है। यह भाजपा की तानाशाही का प्रतीक है। दूसरे इस में राजनीतिक पार्टियों को चुनावी बांड के रूप में फंडिंग करने वाली कंपनियों के नाम गुप्त रखने से पारदर्शिता बिल्कुल खतम हो गई है। इसी प्रकार मोदी सरकार ने एफसीआरए एकट में संशोधन करके कार्पोरेट्स/कंपनियों द्वारा काले धन को अपनी विदेशी कंपनियों के माध्यम से चुनावी बांड के रूप में राजनीतिक पार्टियों की फंडिंग करने का रास्ता खोल दिया है। यह पाया गया है कि इस योजना के 2018 से लागू होने से लेकर अब तक 19 पार्टियों ने 2019-20 तक 6,201 करोड़ की फंडिंग प्राप्त की थी जिसमें से 68% अर्थात 4,251.89 करोड़ अकेली भाजपा की झोली में गिरे थे। कांग्रेस को केवल 706.12 करोड़ अर्थात 11.3 करोड़ मिले थे। हाल में गुजरात से बीजेपी को चुनावी बांड के रूप में 163 करोड़ अर्थात कुल फंडिंग का 94% प्राप्त हुआ है।

आइपीएफ के प्रस्ताव में आगे कहा गया है कि अब तक चुनावी बांड के माध्यम से सबसे अधिक फंडिंग भाजपा की ही हुई है। यही कारण है कि भाजपा की सारी नीतियाँ कार्पोरेट्स तथा निजी कंपनियों को लाभ पहुँचने वाली ही रही हैं।

अतः आइपीएफ चुनावी बांड योजना पर रोक लगाने और रेडिकल चुनाव सुधार किए जाने की मांग करता है ताकि काले धन के माध्यम से चुनाव को प्रभावित करने के एक पार्टी के एकाधिकार को समाप्त किया जा सके और चुनावी फंडिंग पारदर्शी बन सके।