राजेश सचान

अभी भी एक बड़ी चर्चा पिछड़ावाद और आरक्षण को लेकर है। जहां तक सवाल पिछड़ावाद का है, यह सभी प्रयोग भाजपा के विरुद्ध लड़ाई में हो चुके हैं और इन प्रयोगों से लोग अच्छी तरह वाकिफ हैं, मंडल के जमाने से ही इस तरह के प्रयोग भाजपा को रोकने में कामयाब नहीं रहे हैं। ऐसे में जहां तक आरक्षण का सवाल है, अगर इसे रोजगार की मांग के बगैर जोरशोर से उठाया जाता है तो आज के दौर में बेमतलब है। प्राथमिक शिक्षक भर्ती की चयन प्रक्रिया में जो मौजूदा आरक्षण संबंधी अंतर्विरोध उभरा है दरअसल योगी सरकार में उसी की पुनरावृत्ति है जो कि अखिलेश सरकार में पद्धति अख्तियार किया गया था। इस परिप्रेक्ष्य में शिक्षक भर्ती व अन्य भर्तियों में आरक्षण संबंधी प्रक्रिया के कुछ तथ्य प्रस्तुत हैं। हम सभी जानते हैं कि योगी सरकार में मनमाने ढंग से कामकाज का तरीका रहा है, भर्तियों की चयन प्रक्रिया में भी इसी तरह की कार्यशैली दिखाई देती है। इसी की वजह से आरक्षण, भ्रष्टाचार से लेकर ढेरों विवाद पैदा हुए हैं जोकि अनगिनत मामले न्यायालय में लंबित हैं। 69000 शिक्षक भर्ती में आरक्षण विवाद/घोटाला जो इस वक्त चर्चा में है, इसके परिप्रेक्ष्य में यह देखने की जरूरत है कि आरक्षण को लागू करने में आज जो समस्त चयन प्रक्रिया में ही विसंगतियां हैं उसकी मूल वजह क्या है ? आरक्षण संबंधी विसंगतियों के सवाल पर पिछली सरकारों खासतौर अखिलेश सरकार की क्या भूमिका रही है इसे भी देखने की जरूरत है।

फिलहाल 69000 शिक्षक भर्ती में आरक्षण विवाद के मूल बिंदुओं को समझने का प्रयास करते हैं। 69000 शिक्षक भर्ती में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा 5844 पिछड़े वर्ग की सीटों में अनारक्षित उम्मीदवारों आवंटित करने की रिपोर्ट के बाद युवाओं द्वारा लखनऊ में करीब 6 महीने तक आंदोलन चला। सरकार लगातार यह दावा करती रही कि आरक्षण का अनुपालन किया गया है। इस मामले में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने अपनी रिपोर्ट में दर्ज किया है कि चयन प्रक्रिया में आरक्षण जिला स्तर पर निर्धारित होगा अथवा राज्य स्तर पर , इसे लेकर राज्य सरकार के अधिकारी स्पष्ट नहीं कर सकें। फिलहाल जो चयन प्रक्रिया है उसमें चयन का आधार/यूनिट जनपद है। लेकिन परीक्षा राज्य स्तर पर आयोजित होती है और राज्य स्तर पर परीक्षा परिणाम तैयार किया जाता है। इसके बाद जिला स्तर पर सीटों का आवंटन किया जाता है। इस प्रकार की चयन प्रक्रिया में राज्य स्तर पर अनारक्षित श्रेणी में ओवरलैपिंग करने वाले तमाम आरक्षित श्रेणी के अभ्यर्थी जिला स्तर पर काउंसलिंग में अनारक्षित श्रेणी के बजाय आरक्षित श्रेणी में ही जिला आवंटन होता है। यह एक बड़ी वजह है जोकि आरक्षित श्रेणी के अभ्यर्थी अनारक्षित श्रेणी में होने के बावजूद उसे अनारक्षित वर्ग में ओवरलैप नहीं कराया जाता। लेकिन यह नियम योगी सरकार ने नहीं लागू किया है। इसके पहले से लागू है। इस मामले में दूसरी जो वजह आरक्षण प्रावधानों के उल्लंघन की है वह है योगी सरकार ने मनमाने ढंग से एक ही भर्ती परीक्षा को दो भागों में विभाजित करने से पैदा हुआ है। जिससे अनारक्षित श्रेणी के अभ्यर्थी आरक्षित श्रेणी की सीटें लेने में कामयाब हो गए। इन दोनों वजहें ही मौजूदा विवाद का आधार है। 68500 शिक्षक भर्ती में शेष बची 22 हजार सीटों को भरने में आरक्षण संबंधी विवाद फिर पैदा होगा। इसकी वजह मनमाने ढंग से अपनायी गई चयन प्रक्रिया है।

आरक्षण की विसंगति सिर्फ बेसिक शिक्षक भर्ती तक नहीं है बल्कि इसके अलावा जो अन्य भर्तियां हैं जिसमें 2-3 चरण होते हैं। उसमें प्रारंभिक व मुख्य परीक्षा में आरक्षित श्रेणी के अभ्यर्थी को आरक्षण नहीं देने का प्रावधान किया गया है। लेकिन त्रिस्तरीय आरक्षण को अखिलेश सरकार द्वारा वापस लेने के बाद प्रारंभिक व द्वितीय चरण में आरक्षण का लाभ नहीं देने की गलत व्याख्या करते हुए उसे अपनी कैटेगरी की रिजर्व सीटें के सापेक्ष क्वालीफाई कराया जाने लगा। इस प्रक्रिया में आरक्षित श्रेणी के अभ्यर्थियों की मेरिट अनारक्षित श्रेणी की मेरिट से ऊपर चली जाती है खासतौर पर अन्य पिछड़ा वर्ग के मामले में, जोकि न तो तर्कसंगत है और न ही विधि सम्मत है। इसके पहले भी परीक्षा के हर चरण में आरक्षण का प्रावधान नहीं था लेकिन इसे इस तरह से लागू किया गया था कि परीक्षा के किसी भी चरण में आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवार की मेरिट अनारक्षित श्रेणी से ऊपर कतई न हो, ज्यादा से ज्यादा दोनों की मेरिट बराबर हो सकती थी। इससे बड़े पैमाने पर आरक्षित श्रेणी के अभ्यर्थी प्रथम व द्वितीय चरण में चयन से वंचित हो जाते हैं जबकि अनारक्षित श्रेणी की मेरिट के अनुसार उसका चयन हो जाता।

जनपद स्तर पर सीटों के सृजन और आरक्षण की इसी तरह की प्रक्रिया से प्रस्तावित आंगनबाड़ी भर्ती में एसटी का आरक्षण राज्य स्तर पर 2% के सापेक्ष महज 0.2 % से भी कम लागू होगा।

आज भाजपा के विरुद्ध माहौल है खासतौर पर युवाओं की नाराजगी सबसे ज्यादा है। लेकिन जो शिक्षा-स्वास्थ्य और रोजगार जैसे बुनियादी मुद्दे हैं, अखिलेश यादव स्पष्ट नहीं हैं। ऐसे में भाजपा के विरुद्ध माहौल होते हुए भी स्वतः स्फूर्ति ढ़ंग से लोग अखिलेश यादव के पक्ष में नहीं चलें जायेंगे। उन्हें इन बुनियादी मुद्दों पर ठोस बात करनी होगी, युवाओं के मुद्दों के हल करने के लिए बोलना होगा, जबकि इसका पूरी तौर अभाव दिखता है।

राजेश सचान, संयोजक युवा मंच
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