डॉ॰ मुहम्मद नजीब क़ासमी संभली

सूरह अलहुमज़ा का तर्जुमा: बड़ी खराबी है उस शख़्स की जो पीठ पीछे दूसरों पर ऐब लगाने वाला, (और) मुँह पर ताने देने का आदी हो, जिसने माल इकट्ठा किया हो और उसे गिनता रहता हो। वह समझता है कि उसका माल उसे हमेशा ज़िन्दा रखेगा। हरगिज़ नहीं! उस को तो ऐसी जगह में फेंका जायेगा जो चूरा चूरा करने वाली हैऔर तुम्हें क्या मालूम वह चूरा चूरा करने वाली चीज़ है? अल्लाह की सुलगाई हुई आगजो दिलों तक जा चढ़ेगी। यक़ीन जानो वह उन पर बंद कर दी जायेगीजबकि वह (आग के) लम्बे चैड़े सुतूनों में (घिरे हुए) होंगे।
वैलुन के माअना बर्बादी, बड़ी खराबी और अज़ाब के हैं, नीज़ जहन्नम की वादी का नाम भी वैल है, यानि जो हज़रात तीन गुनाहों (ग़ीबत, ताना देना और नाहक़ माल जमा करना) में मुब्तला हैं उन्हें जहन्नम की वैल नामी वादी में डाला जायेगा। सूरह अलमाऊन में मज़कूर है कि नमाज़ों में कोताही करने वालों को भी जहन्नम की इसी वादी में डाला जायेगा। अल्लाह तआला हम सबकी हिफ़ाजत फ़रमाये। हुमज़ह और लुमज़ह: मुबालगे के सीग़े हैं, हम्जु़न के मअना इशारा बाज़ी करने के और लम्ज़ुन के मअना ऐब लगाने या ताना देने के हैं। किसी शख़्स का मज़ाक उड़ाना, किसी का ऐब निकालना, किसी की पीठ पीछे बुराई करना यानि ग़ीबत, इसी तरह किसी को ताने देना, किसी को ज़लील करना और बुरा भला कहना यह सारी शक्लें इस आयत के तहत दाख़िल हैं और यह सब गुनाहे कबीरा हैंजिनसे बचना हर शख़्स के लिए ज़रूरी है। इन गुनाहों में मुबतला होने वाले अश्ख़ास को जहन्नम में सख़्त अज़ाब दिया जायेगा अगर मौत से क़ब्ल हक़ीक़ी तौबा नहीं की। ग़र्ज़ कि अल्लाह के बन्दों में बदतरीन लोग वह हैं जो चुग़लखोरी करते हैं और दोस्तों व रिश्तेदारों के दरमियान झगड़ा कराते हैं, शरीफों की पग़ड़ियाँ उछालते हैं और बेगुनाहों के ऐब तलाश करते रहते हैं। अल्लाह तआला सूरह अल हुजुरात आयत 11 में इरशाद फ़रमाता है कि ना मर्द दूसरे मर्दों का मज़ाक उड़ायें, हो सकता है कि वह जिनका मज़ाक उड़ा रहे हैं ख़ुद उनसे बेहतर होंऔर ना औरतें दूसरी औरतों का मज़ाक उडायें, हो सकता है कि वह जिन का मज़ाक उड़ा रही हैं ख़ुद उनसे बेहतर होंऔर तुम एक दूसरे के ताना न दिया करोऔर ना एक दूसरे को बुरे अलक़ाब से पुकारो। ईमान लाने के बाद गुनाह करना बहुत बुरी बात है। और जो लोग इन बातों से बाज़ ना आयें तो वह ज़ालिम लोग हैं।
इस आयत में हमें ग़ीबत करने से मना किया गया है। सबसे पहले इरशादे नबवी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की रोशनी में समझें कि ग़ीबत क्या चीज़ है? रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सहाबाए किराम से फ़रमाया: क्या तुम्हें मालूम है कि ग़ीबत क्या है? सहाबाए किराम ने जवाब दिया: अल्लाह और उसके रसूल ज़्यादा बेहतर जानते हैं। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया: अपने भाई की उस चीज़ का ज़िक्र करना जिसे वह नापसंद करता हो। कहा गया अगर वह चीज़ें उसके में मौजूद हों तो? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि अगर वह चीज़ उसके अन्दर हो तो तुम ने ग़ीबत की और अगर ना हो तो वह बोहतान होगा। (मुस्लिम) हुजूरे अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के इस इरशाद से मालूम हुआ कि ग़ीबत का मतलब यह है कि दूसरे लोगों के सामने किसी की बुराइयों और कोताहियों का ज़िक्र किया जाये जिसे वह बुरा समझे और अगर उसकी तरफ़ ऐसी बातें मन्सूब की जायें जो उसके अन्दर मौजूद ही नहीं हैं तो वह बोहतान है। किसी मुसलमान भाई की किसी के सामने बुराई बयान करना यानि ग़ीबत करना ऐसा ही जैसे मुर्दार भाई का गोश्त खाना। भला कौन ऐसा होगा जो अपने मुर्दार भाई का गोश्त खाना पसंद करेगा। अल्लाह तआला ने ग़ीबत से बचने का हुक्म दिया है और उससे नफ़रत दिलायी है, इरशादे बारी है: तुम में से कोई किसी की ग़ीबत ना करे, क्या तुम में से कोई भी अपने मुर्दा भाई का गोश्त खाना पसंद करता है? तुम को उससे घिन आयेगी। (सूरह अलहुजुरात 12)
मेअराज के सफ़र के दौरान हुजूरे अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को जन्नत व दोज़ख के मुशाहिदे के साथ मुख़्तिलफ़ गुनाहगारों के अहवाल भी दिखाये गये जिनमें से एक गुनाहगार के अहवाल पेश करता हूँ ताकि इस गुनाह (ग़ीबत) से हम ख़ुद भी बचें और दूसरों को भी बचने की तरग़ीब दें। हज़रत अनस रज़िअल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया कि जिस रात मुझे मेअराज कराई गयी, मैं ऐसे लोगों पर गुज़रा जिनके नाखून तांबे के थे और वह अपने चेहरों और सीनों को छील रहे थे। मैंने जिब्राइल (अलैहिस्सलाम) से दरयाफ़्त किया कि यह कौन लोग हैं? उन्होंने जवाब दिया कि वह लोग हैं जो लोगों के गोश्त खाते हैं (यानि उनकी ग़ीबत करते हैं) और उनकी बेआबरूई करने में पड़े रहते हैं। (अबू दाऊद)
अल्लज़ी जमआ मालऊँ वअद्ददह: जो ना हक़ तरीक़े से माल हासिल करके गिनगिन कर रखता हो। दीगर आयाते क़ुरआनियाह व अहादीसे नबवियह से मालूम होता है कि मुतलक़न माल का जमा करना गुनाह नहीं है, बल्कि माल अल्लाह तआला की नेमतों में से एक बड़ी नेमत हैजिसके ज़रिए इन्सान अल्लाह तआला के हुक्म से अपनी दुनिवायी ज़रूरतों को पूरा करने की कोशिश करता है, लेकिन शरीअते इस्लामिया ने हर शख़्स को मुकल्लफ़ बनाया है कि वह सिर्फ़ जायज़ व हलाल तरीक़े से ही माल कमाये, क्योंकि कल क़यामत के दिन हर शख़्स को माल के मुताअल्लिक़ अल्लाह तआला को जवाब देना होगा किकहां से कमाया यानि वसाइल क्या थे और कहां खर्च किया यानि माल से मुताअल्लिक़ हुकू़क़ुल इबाद या हुक़ूकुअल्लाह में कोई कोताही तो नहीं की। ग़र्ज़ कि हुसूले माल के लिए कोशिश और जुस्तजु करना, नीज़ मुस्तिक़बल की ज़रूरियात को पूरा करने मे लिए माल जमा करना मज़मूम नहीं है अगर माल को जायज़ वसाइल से हासिल किया जा रहा है और हुकू़क़ की अदायगी मुकम्मल की जा रही है।
यहसबु अन्ना मालहु अख़लदह: माल की मोहब्बत में वह इस तरह मुन्हमिक हो गया कि वह आख़रत को भूल गयाऔर उसके आमाल से ऐसा महसूस होता है कि वह यह समझ रहा है कि मैं हमेशा ज़िन्दा रहूंगा, हालांकि हर चीज़ फ़ना होने वाली है, सिवाए अल्लाह की ज़ात के। हुकूमत अल्लाह ही की हैऔर उसी की तरफ़ हम सबको लौट कर जाना है। इन्सान जहाँ भी होगाएक ना एक दिन मौत उसे जा पकड़ेगी, चाहे वह मज़बूत किलों में ही क्यों ना रह रहा हो। हर शख़्स का मरना यक़ीनी है, लेकिन मौत का वक़्त और जगह सिवाए अल्लाह की ज़ात के किसी बशर को मालूम नहीं। चुनांचे कुछ बचपन में, तो कुछ उनफ़वाने शबाब में और कुछ अधेड़ उम्र में, जबकि बाक़ी बुढ़ापे में दाइए अजल को लब्बैक़ कह जाते हैं। कुछ सेहतमंद तंदरुस्त नौजवान सवारी पर सवार होते हैं लेकिन उन्हें नहीं मालूम कि वह मौत की सवारी पर सवार हो चुके हैं। लिहाज़ा हमें तौबा करके नेक आमाल की तरफ़ सबक़त करनी चाहिए। हुजूरे अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया: पांच उमूर से क़ब्ल पांच उमूर से फ़ायदा उठाया जाये। बुढ़ापा आने से क़ब्ल जवानी से। मरने से क़ब्ल ज़िन्दगी से। काम आने से क़ब्ल ख़ाली वक़्त से। गुरबत से क़ब्ल माल से। बीमारी से क़ब्ल सेहत से।
कल्ला लयुम्बज़न्ना फ़िल हुतमह: हरगिज़ नहीं! उसको तो ऐसी जगह में फेंका जायेगा जो चूरा चूरा करने वाली है। अलहुतमह: यह भी मुबालग़े का सीग़ा है, यानि चूरा चूरा कर देने वाली। यह क्या चीज़ है? यह सवाल उसकी होलनाकी बयान करने के लिए है कि यह कोई मामूली चीज़ नहीं है, बल्कि इस पूरी कायनात के पैदा करने वाले की भड़कायी हुई आग है।
जहन्नम क्या है? अल्लाह तआला फ़रमाता है: ऐ ईमान वालो! अपने आपको और अपने घर वालों को जहन्नम की आग से बचाओ जिसका ईंधन इन्सान और पत्थर हैं। (सूरह अत्तहरीम 6) इसी तरह फ़रमाने इलाही है: ना तो उनका काम तमाम किया जायेगा कि वह मर ही जायेऔर ना उनसे जहन्नम का अज़ाब हलका किया जायेगा। (सूरह फ़ातिर 36) यानि जहन्नम में ना मौत आयेगी और ना ही अज़ाब कम किया जायेगा। क़ुरआने करीम की मुतअद्दद आयात में मज़कूर है कि जहन्नमियों की ग़िजा खौलता हुआ पानी, कांटों वाला खाना, गले में अटकने वाला खाना, जख़्मों के धोवन और पीप, पिघला हुआ तांबा वग़ैरह हैं, यानि इन्तहाई तकलीफ़दह चीज़ें ही जहन्नमियों को खाने व पीने के लिए दी जायेंगी। अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाता है: जब एक दफ़ा उनकी खाल जल चुकी होगी तो हम उसकी जगह दूसरी नयी खाल पैदा कर देंगे ताकि अज़ाब चखते ही रहें। (सूरह अन्निसा 56) इसी तरह फ़रमाने इलाही है: दोज़ख़ियों को मारने के लिए लोहे के गुर्ज़ (एक किस्म का हथियार) हैं, वह लोग जब भी जहन्नम की घुटन से निकलना चाहेंगे फिर उसी में धकेल दिये जायेंगे और उनसे कहा जायेगा कि जलने का अज़ाब चखते रहो। (सूरह अलहज 21-22)
हुजू़रे अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया: जहन्नम को एक हज़ार साल तक धौंका गया तो उसकी आग सुर्ख़ हो गयी। फिर एक हज़ार साल तक धौंका गया तो उसकी आग सफ़ेद हो गयी। फिर एक हजार साल तक धौंका गया तो उसकी आग सियाह हो गयी। चुनांचे जहन्नम अब सियाह अंधेरी वाली है। (तिर्मिज़ा, इब्ने माजा) हुजू़रे अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया: जहन्नमियों में सबसे हलका अज़ाब उस शख़्स पर होगा जिसकी दोनो जूतियां और तसमे आग के होंगे, जिनकी वजह से हांडी की तरह उसका दिमाग़ खोलता होगा। वह समझेगा कि मुझे सबसे ज़्यादा अज़ाब हो रहा है, हालांकि उसको सबसे कम अज़ाब होगा। (बुख़ारी व मुस्लिम) हुजू़रे अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया: तुम्हारी यह आग (जिसको तुम जलाते हो) दोज़ख के अज़ाब का सत्तरवां हिस्सा है। सहाबा ने अर्ज़ किया कि जलाने को तो यही बहुत है। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया: हाँ, उसके बावजूद दुनिया की आग से जहन्नम की आग जलाने में 69 दर्जा बढ़ी हुई है। (बुख़ारी व मुस्लिम)
जहन्नम ऐसा मौज़ूअ है कि इस मौजू़अ पर सैंकडों किताबें तहरीर की गयी हैं। मैंने सिर्फ़ चंद बातें क़ुरआन व हदीस की रोशनी में तहरीर की हैं। इन्तहाई तकलीफों की जगह जहन्नम से बचने का एक ही तरीक़ा है कि अपनी दुनियावी ज़िन्दगी अल्लाह के अहकाम और नबी के तरीक़े के मुताबिक़ गुज़ारने की कोशिश करें, जैसा कि शायर मश्रिक अल्लामा इकबाल रहमुतल्लाह अलैइह ने कहा है:
अमल से ज़िन्दगी बनती है जन्नत भी जहन्नम भी
यह ख़ाकी अपनी फ़ितरत में ना नूरी है ना नारी है
अल्लती तत्तालिउ अलल अफ़इदह: इन मज़कूरा गुनाहों के मुर्तकबीन को ऐसी आग में डाला जायेगा जो दिलों तक जा चढ़ेगी। वैसे तो आग की ख़ासियत यही है कि वह इन्सान के आज़ा को जला देती है, लेकिन इस आग का ख़ास मिज़ाज यह होगा कि वह पहले उन दिलों को पकड़ेगी जो माल की मोहब्बत में आख़रत को भूल गये थे। इन्सान के ज़रिए बनायी गई नई टेक्नालाजी की मदद से कुछ आलात से मख़सूस काम लिये जाते हैं, ख़ालिक़े कायनात ने जहन्नम में एक ऐसी ख़ास आग बनायी है जिसका सबसे पहला हमला उन दिलों पर होगा जिनमें लोगों के लिए बुग़्ज़ व इनाद और माल की ऐसी मोहब्बत जगह कर गयी थी कि वह अल्लाह और उसके रसूल की इतब्बा से माने बनी। कुछ मुफ़स्सरीन ने इस आयत की तफ़सीर इस तरह बयान फ़रमायी है कि दुनिया की आग जब इन्सान के बदन को लगती है तो दिल तक पहुंचने से क़ब्ल ही इन्सान की मौत वाक़े हो जाती है, लेकिन आख़रत में मौत तो आती नहीं तो वह दिल तक पहुंचेगी।

इन्नहा अलइहिम मूअसदतुन फ़ी अमदिम मुमद्ददह: लम्बे लम्बे सुतूनों का मतलब यह है कि आग के इतने बड़े बड़े शोले होंगे जैसे सुतून होते हैं और दोज़खी उसमें बंद होंगे। अल्लाह तआला हम सब के लिए जहन्नम से निजात का फैसला फ़रमा।
इस सूरह में हमारे लिए दर्स यह है कि दीगर गुनाहों के साथ हमें तीन गुनाहों से हमेशा बचना चाहिए। हम्ज़ लम्ज़ और नाजायज़ वसाइल से माल जमा करना। हम्ज़ और लम्ज़ के मुताअद्दद मायने हैं: ग़ीबत करना, ऐब जोई करना, ताना देना, बुरा भला कहना और किसी शख़्स की तौहीन करना वग़ैरह। चूंकि इन गुनाहों का ताल्लुक़ बज़ाहिर हुक़ूकुल इबाद से है, लिहाज़ा इन गुनाहों से बिल्कुल इजतनाब करें, अपने किये हुए गुनाह पर शर्मिन्दा होंऔर आइन्दा ना करने का पुख़्ता इरादा करके अल्लाह तआला से माफ़ी मांगे। मुतअल्लिक़ा शख़्स से पहली फ़ुर्सत में अगर मामला साफ़ कर लिया जाये तो इसी में दोनों जहां की ख़ैर व आफ़ियत व इज़्ज़त व कामयाबी पोशीदा है।