नई दिल्ली:रिपब्लिक टीवी के एडिटर इन चीफ अर्नब गोस्वामी की 2018 के आत्महत्या के एक मामले में हुई गिरफ्तारी पर बुधवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस तरह से किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत आजादी पर बंदिश लगाया जाना न्याय का मखौल होगा। अर्नब गोस्वामी की ओर से जमानत की याचिका सुप्रीम कोर्ट में डाली गई है।

पूछे कई सवाल
इस याचिका पर दो जजों की बेंच ने सुनवाई करते हुए महाराष्ट्र सरकार की कार्रवाई पर सवाल भी उठाए। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए सुनवाई के दौरान जस्टिस धनंजय वाई चंद्रचूड और जस्टिस इन्दिरा बनर्जी की पीठ ने राज्य सरकार से जानना चाहा कि क्या गोस्वामी को हिरासत में लेकर उनसे पूछताछ की कोई जरूरत थी।

निजी स्वतंत्रता के हनन की बात
इससे दो दिन पहले बॉम्बे हाई कोर्ट ने गोस्वामी के गिरफ्तारी और केस को दोबारा खोले जाने के खिलाफ याचिका में राहत देने से इनकार कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार से पूछा क्या अर्नब गोस्वामी के मामले में हिरासत में लेकर पूछताछ किए जाने की जरूरत है। कोर्ट ने कहा, ‘हम व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मुद्दे से निपट रहे हैं। अगर किसी की निजी स्वतंत्रता का हनन हुआ तो वह न्याय पर आघात होगा।’

कम से कम मैं तो उनका चैनल नहीं देखता
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, ‘उनकी जो भी विचारधारा हो, कम से कम मैं तो उनका चैनल नहीं देखता लेकिन अगर सांविधानिक न्यायालय आज इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करेगा तो हम निर्विवाद रूप से बर्बादी की ओर बढ़ रहे होंगे।’

नागरिकों की आजादी सुनिश्चित करना ज़रूरी
भारतीय लोकतंत्र में असाधारण सहनशक्ति है। महाराष्ट्र सरकार को इन सबको (टीवी पर अर्नब के ताने) नजरअंदाज करना चाहिए। ये कोई मुददे नहीं होते जिस पर चुनाव लड़ा जाता है। आपको (महाराष्ट्र) लगता है कि वे जो कहते हैं उससे चुनाव में कोई फर्क पड़ता है। क्या आप इन आरोपों के कारण व्यक्ति को उसकी व्यक्तिगत आजादी से वंचित कर देंगे। अगर राज्य सरकार किसी शख्स को ऐसे निशाना बनाएगी तो उन्हें जान लेना चाहिए कि नागरिकों की आजादी सुनिश्चित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट है। हम लगातार ऐसे मामले देख रहे हैं जहां हाई कोर्ट लोगों को जमानत नहीं दे रहा और उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करने में नाकाम रहा है।