लखनऊ

दिव्यांगता पेंशन के मामले में सरकार मानवीय दृष्टिकोंण अपनाए: विजय कुमार पाण्डेय

  • पी.सी.डी.ए.पेंशन मेडिकल ओपीनियन को बदल नहीं सकता : सेना कोर्ट
  • सेना कोर्ट ने दी बीस साल बाद दिव्यांगता पेंशन

लखनऊ: सेना कोर्ट लखनऊ के न्यायमूर्ति यू०सी० श्रीवास्तव और ए०आर०कार्वे की बेंच ने नायब सूबेदार चन्द्रबली बनाम भारत सरकार आदि के मामले में इक्कीस वर्ष बाद दिव्यांगता पेंशन प्रदान करते हुए चार महीने के अंदर आदेश का पालन करने का निर्देश दिया l मामला यह था कि याची 13 सितंबर,1972 को आर्मी एजूकेशन कार्पस में भर्ती होकर 28 वर्ष तक देश की सेवा की लेकिन 30 सितंबर, 2000 को आई.एच.डी.एक्यूट आई.एन.एफ.वाल एम.आई. बीमारी के कारण रिलीज मेडिकल बोर्ड द्वारा दो वर्ष के लिए 30% दिव्यांगता के साथ निष्कासित तो कर दिया लेकिन दिव्यांगता पेंशन नहीं दी, जिसके विरुद्ध उसने कई अपील की जिसे 3.5.2001, 31.05.2001 और 18.02.2008 को खारिज कर दिया l

आर्थिक तंगी और बीमारी के कारण याची न्यायालय नहीं जा सका लेकिन 2020 में बार के पूर्वमहामंत्री और अधिवक्ता विजय कुमार पाण्डेय के माध्यम से मुकदमा न. ओ.ए. 41/2021 दायर किया जिसमे याची के अधिवक्ता विजय पाण्डेय ने दलील दी कि सेना में भर्ती के समय याची मेडिकली और फिजिकली फिट था, डाक्टर द्वारा बीमारी के संबंध में कोई नोट भी नहीं लिखा था कि उसे किसी प्रकार की बीमारी है, इससे यह साफ़ जाहिर होता है कि हमारे मुवक्किल को बीमारी सेना में सर्विस के दौरान हुई और मेडिकल ओपिनियन को नकारने का कोई आधार पी.सी.डी.ए. पेंशन प्रयागराज को नहीं है क्योंकि, उन्होंने न तो याची का मेडिकल परीक्षण किया और न ही उनके पास इसकी व्यवस्था है l

याची के अधिवक्ता विजय कुमार पाण्डेय ने अपनी दलील के समर्थन में धर्मवीर सिंह बनाम भारत सरकार, बिमल किशोर चरन बनाम भारत सरकार, सच्चिदानंद सिंह बनाम भारत सरकार और मोहिंदर सिंह बनाम भारत सरकार का हवाला दिया जिसका भारत सरकार के अधिवक्ता द्वारा जोरदार विरोध किया गया लेकिन उनकी दलील को खारिज करते हुए सेना कोर्ट ने 30% की विकलांगता को 50% करते हुए चार महीने के अंदर मेडिकल बोर्ड बनाकर याची का मेडिकल करने को कहा यदि, भारत सरकार नियत समय में आदेश का पालन नहीं करती तो याची 8% व्याज का हकदार होगा l

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