दिल्ली:
मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर गुरूवार को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है. सरकार की शक्ति को सीमित करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि अब उनकी नियुक्ति प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश की एक समिति के परामर्श से की जाएगी.

न्यायमूर्ति के एम जोसेफ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए एक स्वतंत्र तंत्र की मांग करने वाली याचिकाओं पर आंशिक रूप से अनुमति दिया. पीठ ने कहा कि जहां तक मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) के पद पर नियुक्ति की बात है और चुनाव आयुक्तों का संबंध है, भारत के राष्ट्रपति द्वारा भारत के प्रधान मंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और ऐसा कोई नेता नहीं होने की स्थिति में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता के सलाह पर उनकी नियुक्ति की जाएगी . कोर्ट ने कहा कि यह तब तक कायम रहेगा जब तक कि संसद द्वारा कानून नहीं बना दिया जाता. इससे पहले केंद्र सरकार इनका चयन करती थी.

संविधान के अनुच्छेद 324 (2) में कहा गया है कि सीईसी और ईसी की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह से की जाएगी, जब तक कि संसद चयन, सेवा की शर्तों और कार्यकाल के लिए मानदंड तय करने वाला कानून नहीं बनाती. बेंच में जस्टिस अजय रस्तोगी, अनिरुद्ध बोस, हृषिकेश रॉय और सीटी रविकुमार भी शामिल थे.

न्यायमूर्ति जस्टिस अजय रस्तोगी ने कहा कि एक स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए चुनाव आयोग के कार्यालय की तटस्थता और स्वतंत्रता को बनाए रखने के महत्व को ध्यान में रखते हुए, यह आवश्यक हो जाता है कि इसे टाला जाए. चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति कार्यकारी हस्तक्षेप से मुक्त होना चाहिए. मुख्य चुनाव आयुक्तों के लिए उपलब्ध सुरक्षा का विस्तार करना समय की आवश्यकता है. न्यायमूर्ति रस्तोगी ने आगे यह भी कहा कि सीईसी को हटाने के लिए उपलब्ध सुरक्षा चुनाव आयुक्तों पर भी लागू होनी चाहिए.