लेख

अन्ना, केजरी, राय, बेदी, आर बाबा ने सामाजिक आन्दोलनों को गहरी ठेस पहुंचाई है…

(पवन सिंह)

अन्ना हजारे, केजरीवाल, किरण बेदी, आंख मिचमिच व्यापारी बाबा रामदेव, कुमार विश्वास और इन सबसे ऊपर रहा भारत का महालेखाकार परीक्षक विनोद राय। विनोद राय ने ही कपोल कल्पित टूजी स्पेक्ट्रम घोटाले और कोल आवंटन घोटाले को साजिशन हवा दी और 2014 के बाद सत्ता परिवर्तन होते ही ये सारे तथाकथित घोटाले नेपथ्य में चले गये। याद करिए वो गुजिश्ता दौर जब अन्ना हजारे को आजाद भारत का दूसरा गांधी बनाने की चैनलीय और अखबारीय मुहिम को आसमां की बुलंदियों तक पहुंचाया गया था और 2014 के बाद अन्ना सिरे से गायब हो गये और उनका वह लोकपाल विधेयक भी, जिसके बारे में हुवां हुवां करते हुए देश को दुनियां का एकमात्र ईमानदार देश बन जाने का सब्जबाग दिखाया गया था। “अन्ना नहीं ये आंधी है देश का दूसरा गांधी है”..ये नारा और ये बंदा दोनों ही 2014 के बाद से गायब हो गये। चैनलों के बीच दौड़ लगाकर अन्ना के इंटरव्यू लेने की जो नूराकुश्ती आपको नजर आया करती थी वह भी 2014 के बाद से गायब हो गई। वो आंखमिचमिच बाबा देखते ही देखते बड़ा व्यापारी बन गया लेकिन आपको 35 रूपए का पेट्रोल नहीं मिला, लोकपाल लाने वाले, देश को लूट लिए जाने की खबरों को 24*7 दिखाने वाले चैनलों के एक पूरे गुच्छे के मालिक “दिन दूनी रात सौ गुनी”…की रफ्तार से मालामाल हो गये, डीएनए तलाशने वाले एक चैनल का मालिक राज्यसभा पहुंच गया और बैंकों का 1400 करोड़ रुपए भी खा गया… लेकिन राष्ट्रवाद के नाम पर आपके हाथ क्या लगा? दरअसल, अन्ना हजारे आंदोलन ने देश के सामाजिक आंदोलन को और विश्वास को गहरी ठेस पहुंचाई है। अब देश का कोई भी आम नागरिक इस तरह के किसी भी आन्दोलन से नहीं जुड़ेगा क्योंकि उसके मन में शक गहराया है कि इस तरह के आन्दोलन के पीछे का सच है क्या?

कोई भी हारें या जीतें लेकिन चंद लोगों ने भविष्य के सामाजिक आंदोलनों को जो नुकसान पहुंचाना है उसकी भरपाई आसान नहीं होगी। इन सभी लोगों ने वही किया जो हिंदी फिल्मों में साधु या सूफी का वेष धरकर विलेन या उसके गुर्गे करते हैं यानी आम आदमी के विश्वास और उनकी आस्था को धूलधूसरित करते हैं। केजरीवाल को ही ले लें, यह आदमी बात तो स्वच्छ राजनीति की करता है लेकिन यह ऊंट किस करवट बैठेगा यह किसी को नहीं पता।केजरीवाल से संबंधित कुछ मोटे-मोटे उदाहरण हैं…..यह शख्स गुजरात जाता है और अचानक बिना पूर्व समय लेकर तत्कालीन मुख्यमंत्री मोदी से मिलने चल पड़ता है। गुजरात पुलिस बड़े अदब के साथ उसे थाने पर लाती है और यह शख्स दिल्ली में खबर भिजवाता है कि गुजरात पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया है। परिणाम यह होता है कि इसके समर्थक दिल्ली के भाजपा कार्यालय पर हमला कर देते है। यह व्यक्ति गुजरात से एक या दो दिन बाद आंध्र प्रदेश जाता है तो वहां मुख्यमंत्री से मिलने की इसकी कोई ख्वाहिश नहीं होती है। यह आदमी वहां कोई हंगामा नहीं करता है।

यह अद्भुत जीव कांग्रेस से पूरे जीवन भर समझौता नहीं करने की कसम खाता है। यहां तक कि “छपरिया चाची” की तरह अपने बच्चों तक की कसम खाता है मगर कांग्रेस के साथ ही दिल्ली में सरकार बनाता है। केजरीवाल जी एक छोटे से घर से अपना सारा काम करने की बात करते हैं और आखिरकार खुद ही खत लिखकर बड़ा सा 40 AC वाला बंगला एलाॅट करवाते हैं। राष्ट्रवाद की बड़ी बड़ी बातें करने वाले अन्ना अब सिरे से गायब हैं। किरन बेदी गोवा की राज्यपाल हैं। कुमार विश्वास को आन्दोलन ने एक नई ऊंचाई दी, वो उस ऊंचाई को भुना रहे हैं… महालेखाकार परीक्षक विनोद राय चुपके से देश से क्षमा मांगकर गायब हो गये और उनकी क्षमा को अखबारों ने एक कोने में दो लाइन की जगह दे कर इतिश्री कर ली। चैनलों ने तो क्षमा गायब ही कर दी। बाबा अब 35 रूपए के पेट्रोल के सवाल पर धमकाने लगता है, कई बड़े पत्रकार करोड़ोंपति हो गये। अन्ना के आन्दोलन ने चंद लोगों की दुनिया ही बदल दी लेकिन करोड़ों लोग गरीबी रेखा से नीचे सरक गये। राष्ट्रवाद नफरत की खाल ओढ़े गुर्रा रहा है।

अन्ना राजनीति में शुचिता, मर्यादा और शालीनता का झंड़ा लेकर आया था। अन्ना के आन्दोलन ने उन युवाओं, महिलाओं व बुजुर्गों के मन में एक विश्वास जगाया था कि देश की सशक्त सत्ताओं को ईमानदारी से भरपूर चुनौती दी जा सकती है लेकिन इस जनान्दोलन ने आम जनमानस के विश्वास इस कदर तोड़ा है कि भविष्य में राजसत्ता के अत्याचार, भ्रष्टाचार और अन्याय के खिलाफ अगर कोई आन्दोलन खड़ा करना चाहें तो क्या फिर से ऐसे ही आम आदमी जुटेगा?..मुझे तो नहीं लगता…..मीडिया के चंद बिकाऊ पत्रकारों को मैनेज करके और एनजीओ संचालकों की भीड़ का लाभ लेकर अन्ना ने जो जनान्दोलन खड़ा किया था, वह मर गया। अन्ना हजारे एण्ड टीम ने जाने-अनजाने देश के विश्वास को जो चोट पहुंचाई है, वह बहुत भारी पड़ेगी।….. अन्ना की हरकत को देखकर बाबा भारती की कहानी याद आती है। जिन लोगों ने ये कहानी नहीं पढ़ी है उनके लिए ….”एक बाबा हुआ करते थे। उनके पास एक जबरदस्त घोड़ा था। एक डकैत ने बाबा का घोड़ा चुराने की योजना बनाई। उसने साधु का वेष धारण किया और बाबा के सामने से हो घोड़ा लेकर चंपत होने लगा। बाबा भारती ने भागते हुए डकैत से कहा कि घोड़ा ले जाओ लेकिन जिस तरह से तुमने इसे चुराया है उसका जिक्र किसी से भी नहीं करना। वरना लोगों का भिक्षुओं व साधुओं पर से विश्वास हट जाएगा।” आन्दोलन में शामिल सभी लोगों ने अपने-अपने हिस्से का लाभ ले‌ लिया शेष बची जनता वो 120 का पेट्रोल, 200 का सरसों का तेल ले रही है… नौकरियां वो रोजगार हवाएं चर गईं…बाकी सामने है और बहुत कुछ सामने आने वाला है।

अन्ना के तथाकथित लोकपाल विधेयक जनान्दोलन ने पर्दे के पीछे रहे एक संगठन की ताकत को दिखा दिया कि यह एक ऐसा संगठन है जो कुछ भी कर सकता है और इस ताकतवर संगठन का नाम है भारतीय स्वयं सेवक संघ यानी आर0एस0एस0।

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