मोहम्मद आरिफ नगरामी

आजाद हिन्दुस्तान के पहले वजीरे तालीम इमामुलहिन्द मौलाना अबलकलाम आजाद का 135 वां यौमेे पैदाईग्श कल 11 नवम्बर को पूरे मुल्क मेें बहत ही अकीदत और एहतेराम के साथ मनाया जायेगा। मोैलाना आजाद और 11 नवम्बर 1988 को मुसलमानों के मुकद्दसतरीन शहर मकर्रमा मेें पैदा हुये थे, मौलाना आजाद के वालिद मुहतरम हिन्दुस्तानी थे। और वाल्दा मुहतरमा अरबी थीं। मौलाना आजाद ने अरबी उर्दू और फारसी के साथ साथ इस्लामी उलूम का भी मुताला किया। अपनी नौजवानी मेें भी मौलाना आजादने मिस्र सीरिया, ईराक और तुकी्र का दौरा कर लिया था। जहों वह वतनियत और इन्केलाबी अफकार व ख्यालात से मुतअस्सिर हुये। 1920 में मौलाना आजाद महात्मा गांधी के राब्ते मेें आये मौलाना आजाद का शुमार तहरीक अदमे एतेमाद के अहम मन्सूबासाजोें मेें होता हैं 1933 मेें कांग्रेस पार्टी का सबसे नौजवान सदर बनने का सेहरा आपके हीसर है। हिनदुस्तान की खशकिस्मती ही कहीजायेगी कि मौलाना आजाद की शक्ल ेमें पहला वजीरे तालीम मिला ओर तकरीबन दस साल की मुदंदत मेें पूरी आजादी और गैरजानिबदारानाा अंदाज मेें अपनी जिम्म्ेदारियां निभायीं मौलाना आजाद हिनदू मस्लिम इत्तेहाद के जबर्दस्त हामी थे। वह कहा करते थे कि अगर एक फरिश्ता आसमान से उतरे और कहे कि हिन्दुस्तान को अंग्रेजो की गंुलामी से नेजात मिल सकती है मगर शर्त यह है कि हिन्दुस्तान हिन्दू मुस्लिम इत्तेहाद से दस्तबर्दार हो जाये तो मैं आजादी नहीं लॅॅगा क्योंकि अगर आजादी मिलनेमेें ताखीर हुयी तो हिन्दुस्ूतान का नुकसान होगा। लेकिन अगर हमारा इत्तेहाद जाता रहा तो आलमी इन्सानियत का नुकसान होगा। मौलाना आजाद की जात कई कई सिफात की मजहर थी। अकल व दानिश उलूम व मआरिफ व फहेम व इदराक के क्या क्या जौहर उनमेेे पिनहां थे और उनकी शख्सियत के जलाल व जमाल के कितने नक्श मंजरे आम पर आ सके उसका इल्म शायद खुद मौलाना आजाद को भी न हुुआ हो उनकी जामे और अजीब व गरीब शख्सियत होने का सबूत है। मौलाना ने भी कुदरत की उन फैयाजियों का पूरे फख्र के साथ इन अल्फाज में एतेराफ किया। मजहबे उलूम व फनून, अदब व निशा शायरी की कोई वादी ऐसी नहीं जिसकी बेशुमार राहेें मब्दा,फैयाज,मुझपर न खोल दी हो और हर आन और हर लेहजा नई नई बख्शिशों से दामन माला माल न हुआ हो। मौलाना आजाद एक बडे आलिम मुफस्सिर और इल्मे कलाम के माहिर होने के साथ साथ सियासी हालात के मद्रदोजज्र पर भी उन्होंने गहरी नजर रखी। जिन्दिगी के इब्तेदाई दौर मेें यकीनन सियासत से उनकी गैरमामूली दिलचस्पीहुयी, उनके अदबी तखलीकात का सबब बनीं। क्योंकि इस दौर मेें मौलाना आजाद ने जो कुछ खिा उस मेें सियासत का उन्सुर ज्यादा था। लेकिन उनकी अदबी हैसियत भी अपनी जगह मुसल्ल्म है। मौलाना आजाद ने 1912 मेें अलहिलाल और 1916 मेें अल्बलाल जारी किया। ओर उन दो रिसालों के जरिये उर्दू सहाफत को मेराजे कमाल तक पहुंचाया।

मौलाना की हिन्दुस्तान की मकबूलियत और शोहरत का एक दूसरा सबब उनकी बेपनाह कुव्वते गोयाई और सेहरे खिताबात थे जिसके मुजाहिरे खिलाफत अन्जुमन, हिमायते इसलाम, जमीअत उलमा कांग्रेस, जमीअत अहले हदीस, के इजलासों ओर अल्लामा रशीद मिस्री के तरजुमान के मौके पर बाराहा हाजिर हुये। हिन्दस्तान के बाहर शायद दुनिया के बाहर शायद दुनिया के किसी मुलक के ऐसे शोा बयानऔर तूूफानखेज मुकर्रिर पैदा किये होें जो मौलाना आजादकी हमसरी का दावा कर सकेें।

मौलाना आजाद की जिन्दिगी सिवाये आखिरी चंद सालों के बडी हंगामाखेज गुजरी उनकी तखलीकात का बडा हिस्सा ंजंग की सउबतोें की नजर हो कर जाया हो गया। ताहम जो कुछ महफूज रहा उनमेें से तजकिरा ओर तर्जुमाने र्कुआन उनकी ऐसी मुस्तकिल तसानीफ हैैं जो मंजरे आम पर आ चुकी है। उनकी तफसील तर्जुमाने र्कुआन मेें सूरे फातिहा की तफसीर असहाबे कहफ, ओर सिकन्दर जुलकरनैन की शख्सियतों के तारीखी तअयुन को न सिर्फ सराहा गया बल्कि उसको एक इत्त्ेहाद से भी ताबीर किया गया। मौलाना आजाद केखुतूत गुबारे खातिर, और कारवाने ख्याल खुद उनकी जिन्दिगी मेें मुतअदिद बार शाया हुये।

मुल्क को आजाद कराने तालीमी पसमांदगी को दूर करने मआशी, समाजी,सनअती ओर जरई सेक्टर मेें जो आज खुशहाली देखी जा रही है वह सब कुछ मौलाना आजाद तालीमी पालिसियो के बाइस है। मौलानाआजाद जैसी शख्सियत सदियों मेे पैदा होती है।