लखनऊ: इस समय जाति आधारित जनगणना पर बहस बढ़ती जा रही है। लेकिन उत्तर प्रदेश में कोल को अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिले उस पर आम तौर पर मुख्यधारा के राजनीतिक दल चुप है। उन्हें चुप्पी तोड़नी चाहिए और कोलों को जनजाति का दर्जा देने की मांग केन्द्र सरकार से करनी चाहिए। आदिवासियों में एक बड़ी आबादी कोलों की है लेकिन जनजाति का दर्जा न मिलने की वजह से वे वनाधिकार कानून से मिलने वाले लाभ से वंचित है और अपनी पुश्तैनी जमीनों से बेदखल किए जा रहे है।

यहीं हाल जनपद चंदौली का है, जहां न केवल कोल बल्कि गोंड़, खरवार व चेरो को भी जनजाति का दर्जा नहीं मिला है और वे भी वनाधिकार कानून के लाभ से वंचित है। जमीन और जनजाति का दर्जा आदिवासियों का वैधानिक अधिकार है जिसे उन्हें मिलना ही चाहिए। जो दल सामाजिक न्याय की वकालत करते है उनकी आदिवासियों पर चुप्पी यह दिखाती है कि वे सामाजिक लोकतंत्र पर गम्भीरता का प्रदर्शन नहीं कर रहे है। वर्षो से आइपीएफ इसकी मांग कर रहा है और संघर्ष के दबाब में गोंड़, खरवार, चेरो आदि जातियों को सोनभद्र में जनजाति का दर्जा तो मिल गया और उन्हें ओबरा व दुद्धी विधानसभा चुनाव लडने का अधिकार भी मिल गया। लेकिन अभी भी आदिवासियों के साथ अन्याय जारी है जिसे समाप्त किया जाना चाहिए। जब तक कोल को जनजाति का दर्जा नहीं मिलता प्रदेश में सामाजिक न्याय का एजेण्डा पूरा नहीं होगा। कोल के जनजाति के दर्जे के सम्बंध में जनजाति कार्यमंत्रालय, भारत सरकार में भेजा गया अखिलेन्द्र प्रताप सिंह का पत्र जस का तस पड़ा हुआ है और मंत्रालय ने अभी तक इस पर निर्णय नहीं लिया है। यदि आदिवासियों के मुद्दे को हल नहीं किया जाता तो आइपीएफ विधिक कार्यवाही में भी जा सकता है। यह बयान आज आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के नेता दिनकर कपूर ने प्रेस को जारी किया।