मथुरा से सेवानिवृतबैंक मैनेजर 72 वर्षीय जीएस पाण्डेय के लिए कोविड-19 महामारी दोहरी मार लेकर आई, कोविड के डर के बीच सेवानिवृत्ति के बाद का उनका जीवन अलग-थलग पड़ गया, अपने सभी रिश्तेदारों और पहचान वालों से दूरियां बन गईं। इस समय सामाजिक समारोहों पर रोक लगा दी गई थीं। ढेरों अन्य परिवारों की तरह पाण्डेय परिवार भी अकेलेपेन से जूझ रहा था।

मई 2020 में छात्रों पर महामारी के प्रभावों का अध्ययन किया गया। अध्ययन में पता चला कि हर 10 में से 7 किशोर मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं से जूझ रहे थे, इस दौरान 61 फीसदी छात्र अकेलेपन, 43 फीसदी छात्र अवसाद और 55 फीसदी छात्र चिंता का शिकार थे।

यह समय बेहद मुश्किल था, मथुरा के जीएस पाण्डेय ने सफलता के बेसिक ग्राफिक डिज़ाइनिंग कोर्स में अपना नाम लिखवा दिया और बाद में उनसे प्रेरित होकर उनके परिवार के कई सदस्यों ने भी ऐसा ही किया। सेवानिवृत्त बैंक मैनेजर पाण्डेय ने पिछले 12 सालों से काम नहीं किया था। अपने अनुभव के बारे में बताते हुए वे कहते हैं ‘‘अखबार में आए एक विज्ञापन से मुझे इस प्लेटफॉर्म के बारे में पता चला, शुरूआत में अपनी उम्र को देखते हुए मैं यह कोर्स नहीं करना चाहता था। लेकिन अच्छी बात यह थी कि ग्राफिक डिज़ाइनिंग कोर्स हिंदी में पढ़ाया जा रहा था और कोई भी अपने फोन की मदद से इसे आसानी से कर सकता था। मेरे पोता-पोती और परिवार के लगभग सभी सदस्य उस समय अपने फोन पर ही सभी ज़रूरी काम करते थे, मैं भी फोन के माध्यम से ही उनके साथ जुड़े रहने के लिए प्रेरित हुआ। इससे न सिर्फ मेरे समय का सदुपयोग होने लगा, बल्कि मुझे युवा पीढ़ी के साथ जुड़ने का अवसर भी मिला।’

शुरूआत में वे ये कोर्स नहीं करना चाहते थे, क्योंकि बैच में उनकी उम्र सबसे ज़्यादा थी, लेकिन टीम सफलता से बातचीत करने के बाद 72वर्षीय पाण्डेय ने यह कोर्स शुरू कर दिया, जिसे दूसरे एवं तीसरे स्तर के शहरों में युवाओं को रोज़गार उपलब्ध कराने के लिए डिज़ाइन किया गया था। बहुत ही मामूली शुल्क पर लाईव क्लासेज़, रिकॉर्डेड लेक्चर दिए जा रहे थे, साथ ही यह कोर्स हिंदी में था, ताकि अर्द्ध-शहरी और ग्रामीण भारत के लोग भी आसानी से इसे समझ सकें।

इसी बैच में सबसे कम उम्र का छात्र-बारांबंकी से 10 वर्षीय श्रेयांश श्रीवास्तव भी शामिल था, जिसने इस प्लेटफॉर्म के ज़रिए अडवान्स डिजिटल मार्केटिंग सीखी। इस तरह श्रीवास्तव, एजुकेशन प्लेटफॉर्म सफलता का सबसे कम उम्र का छात्र है, जो अब 10 वर्ष से लेकर 72 वर्ष तक के लोगों को प्रशिक्षण दे रहा है।

पाण्डेय ने बेसिक कोर्स के लिए नाम लिखवाया था, लेकिन बाद में उन्हें लगा कि उन्हें डिजिटल मार्केटिंग करनी चाहिए। इसलिए उन्होंने सफलता के अडवान्स्ड डिजिटल मार्केटिंग कोर्स में नाम लिखवा दिया। इसके बाद उनकी बहु किरण पाण्डेय ने सफलता के इंग्लिश-स्पीकिंग और इंटरव्यू स्किल्स कोर्स में दाखिला लिया। किरण खुद भी अंग्रेज़ी सीखना चाहती थीं और अपने 10 साल के बेटे को भी अंग्रेज़ी सिखाना चाहती थीं। इस तरह पाण्डेय का पोता भी सफलता के चैम्पियन बैच में शामिल हो गया।

‘मुझे खुशी है मुझे अपने परिवार के साथ एक ही विषय पर चर्चा करने का मौका मिलता है, आने वाले समय में भी मैं सफलता के साथ जुड़ा रहूंगा।’ जीएस पाण्डेय ने कहा।

इसी तरह आगरा के नागपाल परिवार की बात करें तो सफलता के कोर्सेज़ के कारण एक पिता और बेटी को एक दूसरे के साथ समय बिताने का मौका मिल रहा है। राकेश नागपाल ने प्लेटफॉर्म के अडवान्स्ड डिजिटल मार्केटिंग कोर्स में दाखिला लिया था, उनकी बेटी महक ऐप के चैम्पियन बैच की छात्र हैं, जो दसवीं कक्षा के लिए है। शुरूआत में वे ऑनलाईन लर्निंग से घबरा रहे थे, लेकिन फिर उन्हें लगा कि प्लेटफॉर्म के लेक्चर बेहद आसान, किफ़ायती और सुलभ हैं। साथ में पढ़ाई करते हुए नागपाल अपनी बेटी की प्रगति पर निगरानी रख पाते हैं और सुनिश्चित कर पाते हैं कि उनकी बेटी समय का सदुपयोग कर रही है।

अपने अनुभव के बारे में बात करते हुए हिमांशु गौतम, सीईओ एवं सह-संस्थापक, सफलता ने कहा, ‘‘यह देखकर अच्छा लगता है कि हमने कितनी लम्बी दूरी तय कर ली है। आज हमारे साथ सैंकड़ों प्रेरक कहानियां जुड़ी हैं। हम न सिर्फ परिवारों को एक दूसरे के साथ जुड़ने का अवसर दे रहे हैं, बल्कि उन्हें जीवन कौशल सीखने और व्यस्त रहने का मौका भी प्रदान कर रहे हैं। अपना समय बर्बाद करने के बजाए, अब लोग समय का सदुपयोग कर रहे हैं। हमें अच्छा लगता है जब ये लोग खुद हमारे पास आकर हमें अपनी प्रेरक कहानियां सुनाते हैं। हमारा परिवार लगातार बढ़ रहा है। हम भारत के दूर-दराज के इलाकों में छिपी प्रतिभा को बाहर लाना चाहते हैं, मैं इतना ही कहूंगा कि हम कुछ विशेष कामयाबी हासिल कर रहे हैं।’’

देहरादून के गुरूंग परिवार की बात करें तो भाई-बहन नमन और अदिति ने एक साथ बेसिक और अडवान्स्ड ग्राफिक डिज़ाइनिंग कोर्स में नाम लिखवाया। नमन पहले से ग्राफिक डिज़ाइनिंग में ही थे, अदिति ने अपने भाई के साथ रहने के लिए कोर्स में दाखिला ले लिया। ‘‘हमारें मेंटर दिवेश गिरी सर हमारे लिए प्रेरणा का स्रोक हैं, पहले ही दिन से उन्होंने हमें यही अहसास कराया कि हम सब एक ही परिवार की तरह हैं। हमने इस ऐप के ज़रिए रचनात्मकता, अनुशासन और व्यवस्था के गुण सीखे, जो पहले हममें नहीं थे। रोज़ाना बेसिक क्लास में हमें विभिन्न विषयों पर वीडियोज़ दिखाए जाते हैं, जिससे हमें बहुत कुछ सीखने का मौका मिलता है। रिकॉर्ड किए गए सैशन्स भी रेफरेन्स के लिए दिए जाते हैं।’ नमन ने कहा।