लखनऊ: “भारत में हर साल दो लाख लोगों की मौत लिवर की बीमारी के कारण हो जाती है। इनमें से करीब 25000 लोगों की जान लिवर ट्रांसप्लांट कर बचाई जा सकती है लेकिन वर्तमान में हर साल करीब 1800 लिवर प्रत्यारोपण ही हो रहे हैं।” यह आंकड़े किसी आम सर्वे के नहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन के हैं । 

आज इसी विषय पर आयोजित पत्रकार वार्ता में जानकारी देते हुए हुए जेपी हॉस्पिटल के लिवर प्रत्यारोपण सर्जन डॉ. अभिदीप चौधरी ने कहा, “लिवर सिरोसिस होने का मुख्य कारण शराब है। भारत में 40 प्रतिशत लोग सिरोसिस की वजह से लिवर की बीमारी से ग्रस्त हो रहे हैं। इसी तरह लिवर को बीमार बनाने के अनेक कारणों में दूसरा सबसे बड़ा कारण “हेपेटाइटिस-सी” का संक्रमित (कालापीलिया) होना है जो उत्तरी भारत में अधिक देखने को मिलता है।”

उन्होंने यह भी कहा, “क्रोनिक लिवर होने का तीसरा प्रमुख कारण फैटी लिवर है। वर्तमान में भारत में हर छह में से एक इंसान इस बीमारी से ग्रस्त है। हालांकि डॉ. चौधरी ने यह भी कहा कि फैटी लिवर लाईलाज बीमारी नहीं है। लोग अपनी जीवनशैली में परिवर्तन कर फैटी लिवर जैसी बीमारी पर काबू पा सकते हैं, लेकिन अगर इसमें लापरवाही बरती गई तो यह बड़ी बीमारी का रूप ले लेती है। ऐसे में मरीजों के पास लिवर प्रत्यारोपण कराने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचता है।”

डॉ. अभिदीप चैधरी ने बताया, “जब लिवर की बीमारी लाईलाज अवस्था में पहुंच जाती है तो मरीजों के पास सिर्फ प्रत्यारोपण ही एक रास्ता बचता है। प्रत्यारोपण के लिए सबसे पहले परिवार के सदस्यों को दाता के रूप में प्राथिमकता दी जाती है, क्योंकि इससे एक जैसे ब्लड ग्रुप मिल जाते हैं और प्रत्यारोपण प्रक्रिया सुगमता से पूरी हो जाती है, भी-कभी ऐसा भी देखा जाता है कि कई मरीजों को दाता तो मिल जाते हैं लेकिन उनका ब्लड ग्रुप आपस में नहीं मिलता, ऐसे में दोनों के बीच लिवर का प्रत्यारोपण “एबीओ इम्कंपैटिबल ट्रांसप्लांटेशन पद्धति” से किया जाता है।”

उन्होंने कहा कि जेपी हॉस्पिटल में “एबीओ इम्कंपैटिबल ट्रांसप्लांटेशन पद्धति” द्वारा दो अलग-अलग ब्लड ग्रुप वाले लोगों के बीच सफल लिवर प्रत्यारोपण सर्जरी की गई है।डॉ. अभिदीप चौधरी ने अनुसार, “एबीओ इम्कंपैटिबल ट्रांसप्लांटेशन पद्धति” द्वारा किया गया लिवर प्रत्यारोपण सामान्य प्रत्यारोपण की तरह ही परिणाम देता है। दाता अगर लिवर का दान करता है तो कुदरती प्रक्रिया के अनुसार लिवर का आकार कुछ दिनों बाद पुनः अपने पुराने आकार जैसा हो जाता है। प्रत्यारोपण से दाता और मरीज की जीवनशैली में कोई बदलाव नहीं होता। केवल 7 से 10 दिनों में ही दाता हॉस्पिटल से अपने घर जा सकता है। दाता चाहे तो चिकित्सक द्वारा बताई गई कुछ सावधानियों को अपनाकर 6 हफ्ते में दुबारा नौकरी पर भी जा सकता है। 

 

जागरूकता अभियान के मौके पर जेपी हॉस्पिटल द्वारा लिवर से जुड़ी बीमारियों के विशेष उपचार के लिए अंजता हॉस्पिटल में ओ.पी.डी. हर माह के तीसरे रविवार को की जायेगी ।