11वीं पंचवर्षीय के अन्तर्गत उत्तर प्रदेश ने निर्धारित लक्ष्यों से ज्यादा प्राप्त किया

लखनऊ: उत्तर प्रदेश ने 11वीं पंचवर्षीय योजना (2007-12) के दौरान निर्धारित लक्ष्य से ज्यादा हासिल करते हुए इस अवधि में 1800 से अधिक अतिरिक्त कुटीर, लघु तथा मंझोले उद्योगों (एमएसएमई) की स्थापना करवाकर रोजगार के दो लाख अतिरिक्त अवसर उपलब्ध करवाये हैं। प्रमुख उद्योग मण्डल द एसोसिएटेड चैम्बर्स आॅफ काॅमर्स एण्ड इण्डस्ट्री आॅफ इण्डिया (एसोचैम) तथा थाॅट आर्बिटरेज रिसर्च इंस्टीट्यूट (टीएआरआई) द्वारा संयुक्त रूप से कराये गये एक ताजा अध्ययन में यह तथ्य सामने आया है।

‘उत्तर प्रदेश में कुटीर, लघु तथा मध्यम उद्योग (एमएसएमई) क्षेत्र’ शीर्षक वाले इस अध्ययन की रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘‘उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा राज्य में एमएसएमई इकाइयों के विकास पर विशेष ध्यान दिये जाने के परिणामस्वरूप 11वीं पंचवर्षीय योजना (2007-12) के दौरान प्रदेश में 1.66 लाख से ज्यादा एमएसएमई इकाइयां स्थापित हुई हैं। करीब 13 हजार करोड़ रुपये के निवेश से स्थापित इन इकाइयों से 8.5 लाख से अधिक लोगों को रोजगार मिला है।’’

एसोचैम के राष्ट्रीय महासचिव डी. एस. रावत तथा टीएआरआई के निदेशक कौशिक दत्ता ने आज लखनऊ में आयोजित प्रेस कांफ्रेंस में यह अध्ययन रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि ‘‘एमएसएमई के विकास को बढ़ावा देने के मामले में उत्तर प्रदेश ने महत्वपूर्ण प्रगति की है और उसने 11वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान निर्धारित लक्ष्य से अधिक हासिल किया है। इस पंचवर्षीय योजना के तहत प्रदेश में 1.65 लाख एमएसएमई इकाइयां स्थापित करके 6.5 लाख लोगों को रोजगार दिलाने का लक्ष्य तय किया गया था। इसके सापेक्ष प्रदेश में 1.66 लाख से ज्यादा एमएसएमई इकाइयां स्थापित हुई हैं जिनसे 8.5 लाख से अधिक लोगों को रोजगार मिला है।’’

श्री रावत ने कहा कि ‘‘उत्तर प्रदेश सरकार एमएसएमई क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिये अनुकूल माहौल तथा नीति बनाने की दिशा में बेहतर प्रयास कर रही है। विश्लेषण में पाया गया है कि उसकी कोशिश है कि एमएसएमई क्षेत्र उत्पादन, निर्यात तथा रोजगार के उच्च स्तर को प्राप्त करे।’’

एसोचैम-टीएआरआई के अध्ययन में यह भी बताया गया है कि राज्य सरकार द्वारा अवस्थापना एवं औद्योगिक निवेश नीति-2012 को लागू किये जाने से 3000 करोड़ रुपये से ज्यादा के निवेश से 45000 से अधिक एमएसएमई इकाइयां स्थापित की गयी हैं। एक अनुमान के मुताबिक इससे वर्ष 2013-14 में प्रदेश भर में करीब पांच लाख लोगों को रोजगार मिला है। हालांकि, वर्ष 2012-13 से एमएसएमई क्षेत्र में होने वाले निवेश में गिरावट आयी है। इसे आर्थिक मंदी के नतीजे के साथ-साथ निर्माण के मुकाबले कम निवेश की आवश्यकता वाले सेवा क्षेत्र पर अधिक ध्यान दिये जाने का परिणाम भी कहा जा सकता है। 

अध्ययन के अनुसार उत्तर प्रदेश के एमएसएमई उद्योगों में मरम्मत तथा सर्विसिंग उद्योगों की 25 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सेदारी है। उसके बाद विविध निर्माण (15 प्रतिशत), खाद्य उत्पादों (15 प्रतिशत) तथा होजरी एवं वस्त्र (11 प्रतिशत) एवं अन्य की बारी आती है।

इसी तरह, प्रदेश के प्रमुख एमएसएमई उद्योगों में रोजगार देने के मामले में भी मरम्मत तथा सर्विसिंग उद्योग का योगदान 21 प्रतिशत है। उसके बाद खाद्य उत्पाद (14 प्रतिशत), विविध निर्माण (14 प्रतिशत) तथा होजरी एवं वस्त्र (11 प्रतिशत) एवं अन्य का स्थान है।

अध्ययन के अनुसार एमएसएमई के क्षेत्रवार संयोजन के लिहाज से देखें तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में करीब 50 प्रतिशत एमएसएमई इकाइयां स्थापित की गयी हैं। इसके अलावा पूर्वी उत्तर प्रदेश की 28 प्रतिशत जबकि मध्य क्षेत्र की भागीदारी 16 प्रतिशत है। एमएसएमई से क्षेत्रवार रोजगार अवसर के मामले में भी लगभग ऐसा ही रुझान देखा गया है।

उत्तर प्रदेश के कुल औद्योगिक उत्पाद में एमएसएमई का योगदान करीब 60 प्रतिशत है। इस तरह यह क्षेत्र कम पूंजी लागत में बड़े पैमाने पर रोजगार दिलाने में निर्णायक भूमिका निभाता है। इसके अलावा यह ग्रामीण तथा पिछड़े इलाकों में औद्योगिकीकरण को बढ़ावा देने, क्षेत्रीय असंतुलन कम करने तथा राष्ट्रीय आय तथा सम्पदा के न्यायसंगत वितरण में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।इसके अलावा, कृषि के बाद एमएसएमई क्षेत्र उत्तर प्रदेश में रोजगार देने वाला दूसरा सबसे बड़ा क्षेत्र है। पूरे प्रदेश में इससे 92 लाख से ज्यादा लोगों को रोजगार मिलता है। इनमें से 90 प्रतिशत लोग अपंजीकृत एमएसएमई इकाइयों से जुड़े हैं।

एसोचैम ने उत्तर प्रदेश सरकार को सुझाव दिया है कि वह बीमारू स्थिति में पहुंच चुकी प्रदेश की 84000 एमएसएमई इकाइयों का पुनरुद्धार करे। ऐसा इसलिये जरूरी है क्योंकि यह क्षेत्र उत्तर प्रदेश के आर्थिक विकास की रीढ़ है और यह राज्य एमएसएमई क्षेत्र के विकास के मामले में देश का अग्रणी प्रदेश है। इस राज्य में 44 लाख से ज्यादा एमएसएमई इकाइयां स्थापित हैं, जो देश में सर्वाधिक हैं। हालांकि इनमें से 42 लाख इकाइयां अपंजीकृत हैं।

इतने प्रयासों के बावजूद प्रदेश में एमएसएमई क्षेत्र के सामने कार्यगत पंूजी की कमी, प्रौद्योगिकीय सहयोग का अभाव, आंतरिक ढांचे सम्बन्धी समस्याएं, कर्ज का बड़ा बोझ, अनुप्रयुक्त संयंत्र एवं मशीनरी की मौजूदगी, संसाधनों का अभाव तथा श्रमशक्ति की कमी जैसी प्रमुख समस्याएं हैं, जो इनके विकास में बाधा बन रही हैं।

एसोचैम-टीएआरआई के अध्ययन में सुझाव दिया गया है कि प्रदेश की बीमारू एमएसएमई इकाइयों को पुनर्जीवित करने के लिये राज्य सरकार को बड़े उद्योगों, शैक्षणिक संस्थानों, इस क्षेत्र के विशेषज्ञों इत्यादि की मदद लेनी चाहिये। इससे, पहले से ही निर्मित सम्पत्ति तथा क्षमता का सदुपयोग हो सकेगा।