लखनऊ: “मोदी जी ! दलितों को “स्टैंड-अप-इंडिया” नहीं बल्कि ज़मीन और रोज़गार चाहिए” यह बात एस.आर. दारापुरी, राष्ट्रीय प्रवक्ता , आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट ने प्रेस नोट में कही है. उन्होंने कहा है कि 2011 की आर्थिक एवं जाति जनगणना के अनुसार भारत के कुल परिवारों में से 4.42 करोड़ परिवार अनुसूचित जाति/ जन जाति से सम्बन्ध रखते हैं.  इन परिवारों में से केवल 23% अच्छे मकानों में, 2% रहने योग्य मकानों में और 12% जीर्ण शीर्ण मकानों में रहते हैं. इन परिवारों में से 24% परिवार घास फूस, पालीथीन और मिटटी के मकानों में रहते हैं. इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि अधिकतर दलितों के पास रहने योग्य घर भी नहीं है. काफी दलितों के घरों की ज़मीन भी उनकी अपनी नहीं है. 

इसी प्रकार उपरोक्त जनगणना के अनुसार ग्रामीण क्षेत्र में 56% परिवार भूमिहीन हैं. इन में से भूमिहीन दलितों का प्रतिशत 70 से 80 % से भी अधिक हो सकता है. दलितों की भूमिहीनता की दशा उन की सबसे बड़ी कमजोरी है जिस कारण वे भूमिधारी जातियों पर पूरी तरह से आश्रित रहते हैं. इसी प्रकार देहात क्षेत्र में 51% परिवार हाथ का श्रम करने वाले हैं जिन में से दलितों का प्रतिशत 70 से 80 % से अधिक हो सकता है. जनगणना के अनुसार देहात क्षेत्र में केवल 30% परिवारों को ही कृषि में रोज़गार मिल पाता है. दलित मजदूरों की कृषि मजदूरी पर सब से अधिक निर्भरता है. दलितों की भूमिहीनता और हाथ की मजदूरी की विवशता उन की सब से बड़ी कमजोरी है. इसी कारण वे न तो कृषि मजदूरी की ऊँची दर की मांग कर सकते हैं और न ही अपने ऊपर प्रतिदिन होने वाले अत्याचार और उत्पीडन का मजबूती से विरोध ही कर पाते हैं. अतः दलितों के लिए ज़मीन और रोज़गार उन की सब से बड़ी ज़रुरत है परन्तु इस के लिए मोदी सरकार का कोई एजंडा नहीं है. इस के विपरीत मोदी सरकार भूमि अधिग्रहण करके दलितों को भूमिहीन बना रही है और कृषि क्षेत्र में कोई भी निवेश न करके इस क्षेत्र में रोज़गार के अवसरों को कम कर रही है. अन्य क्षेत्रों में भी सरकार रोज़गार पैदा करने में विफल रही है. अब मोदी सरकार दलितों को केवल “स्टैंड-अप-इंडिया” जैसी टाफी देकर बहलाने और फुसलाने की कोशिश कर रही है. उत्तर प्रदेश के दलित भाजपा की इस राजनीतिक चाल को अच्छी तरह समझ रहें हैं और वे उस के झांसे में आने वाले नहीं है.