लखनऊ: फरहत बख्श कोठी के नीचे मिली गुफा लखनऊ के पर्यटन के लिए एक मील का पत्थर साबित हो सकती है। भूलभुलैया के रहस्यों और रोमांचित करने वाले इतिहास की तरह ही पर्यटकों के लिए यह  गुफा भी दर्शनीय स्थल बन सकती है।

टूरिस्ट गाइड और इतिहास के जानकार नवेद जिया बताते हैं कि फरहत बक्श कोठी के नीचे मिली गुफा छतर मंजिल तक जा रही है। उन्होंने बताया कि उनको यहां चल रही खोदाई में नाव बांधने वाले गोल कुंदे मिले हैं। इसके साथ ही इस गुफा में ऐसे 31 दरवाजे भी सामने आए हैं जो गुफा को सीधे नदी से जोड़ते हैं। ये फिलहाल बंद पड़े हैं। यह रास्ते आने-जाने के लिए इस्तेमाल हुआ करते थे। यह दरवाजे महल के 126 कमरों को कुदरती रोशनी प्रदान करते थे। ये सभी दरवाजे ऐसे बनाए गए थे कि दिन में सूरज की रोशनी से महल जगमग रहता था और रात में चांदनी की उजली रोशनी महल की खूबसूरती में चार चांद लगाती थी। 

फरहत बक्श कोठी के नीचे मिली गुफा के बाद इतिहास में दबी कई बातें सामने आने लगी हैं। इतिहासकार बताते हैं कि 1798 में फरहत बख्श कोठी, छतर मंजिल समेत लखनऊ के कई रास्ते गोमती नदी की ओर खुलते थे। उस समय नदी से ही व्यापार भी हुआ करता था। नवाब और उनकी बेगमें महल के इन्हीं गुफा (प्रवेश द्वार) से आया जाया करती थीं। ये गुफा केवल यहीं तक नहीं बल्कि शहर में बने पुराने कई महलों से जुड़ी थी। उनका दावा है कि और खुदाई की जाए तो यह गुफा जरनैल कोठी (मंडलायुक्त कार्यालय) तक मिलेगी।

1978 में गोमती किनारे बंधा बन जाने के कारण यह गुफानुमा द्वार छुप गए थे। इसके बाद मुख्य द्वार सामने आ गया था।

लखनऊ की शान कहलाने वाले महलों (छतर मंजिल और फरहत बक्श कोठी) को अंग्रेजों ने जन्नत की संज्ञा दी थी। यहां घूमने आए पर्यटक इसकी भव्यता और सुंदरता के दीवाने हो गए। उन्होंने बताया कि नवाब गाजीउद्दीन हैदर के आदेश पर इंडो यूरोपियन स्टाइल में इस भवन का निर्माण करवाया गया था। क्लाउड मार्टिन ने फरहत बक्श कोठी बनाई थी। इसके नीचे अण्डरग्राउंड कमरे बने हैं। बेसमेंट में पानी भरा रहता है। तहखानों में नाव चला करती थी जो गोमती नदी में निकलती थी। सभी बेगमें यहां से बादशाह बाग जाती थीं। फरहत बक्श कोठी के बाद नवाब सआदत अली खां ने छतर मंजिल बनाई। बताया जाता है कि यह इमारतें 1814 से पहले की बनी हैं।