नई दिल्ली: इशरत जहां मामले की जांच के लिए बनी एसआईटी के पूर्व प्रमुख सतीश वर्मा ने भी गृह मंत्रालय के अंडर सेक्रेटरी आरवीएस मणि के आरोपों को बेबुनियाद बताया है। आईबी को फंसाने के लिए मणि को टॉर्चर करने के उनके आरोप पर सतीश वर्मा ने कहा कि मणि झूठ बोल रहे हैं।

सतीश वर्मा के मुताबिक, मणि ने यह भी माना था कि इस मामले में पहले हलफनामे का ड्राफ्ट आईबी ने ही तैयार किया था। सतीश वर्मा ने कहा कि इशरत जहां आईबी का एक सफल ऑपरेशन था, लेकिन एनकाउंटर फर्जी था। वर्मा ने यह भी दावा किया कि डेविड हेडली और लश्कर के इशरत को शहीद बताने के दावे के बावजूद एसआईटी की जांच में उसके आतंकियों से जुड़े होने के कोई सबूत नहीं मिले।

सतीश वर्मा ने बताया, आईबी इस पूरे मामले में अंदर तक शामिल थी और आईबी के अधिकारियों ने इन लोगों को गैर-कानूनी तरीके से अपनी कस्टडी में रखा था और उसके बाद पूर्व नियोजित तरीके से इनका मर्डर किया गया और इस एनकाउंटर को सही दिखाने के लिए मणि साहब ने वो डिटेल्स लिखी थी।

उन्होंने आगे बताया कि ये जो इन्होंने टॉर्चर की बात की है कि सिगरेट से दागा तो बताना चाहता हूं कि सीबीआई की जांच में कभी भी किसी आदमी के साथ ऐसी हरकत नहीं की जाती और मान लीजिए कि अगर मैंने किया तो यह कानून अपराध होगा। भारत सरकार के अफसर हैं, उनको पता होगा कि वह मुझ पर कानूनी कार्रवाई कर सकते हैं।

इशरत 1 मई 2004 को पहली बार जावेद से मिली थी और 15 जून 2004 को मुठभेड़ में मारी गई। इन 45 दिनों में वह 10 दिन के लिए जावेद के साथ यूपी और गुजरात गई और होटल में रुकी। इसके अलावा पूरी जिंदगी में उसका कॉलेज से गैर-हाज़िर रहने का रिकॉर्ड नहीं है। वह गरीब परिवार से थी और ट्यूशन पढ़ाती थी, वहां भी उसके ग़ैर हाज़िर रहने का रिकॉर्ड नहीं है। इसलिए मेरा सवाल ये हैं कि लश्कर के एक आतंकी की ट्रेनिंग के लिए कितना समय चाहिए और दूसरा यह कि एक फ़िदायीन की ट्रेनिंग के लिए कितना समय चाहिए। यह पूरी तरह से बकवास है। सच यह है कि इशरत की मौत कोलैटरल डैमेज थी क्योंकि वह तीन संदिग्ध लोगों के साथ थी। इशरत के बारे में कोई खुफिया जानकारी नहीं थी। इसलिए उसकी मौत के बाद उसे आतंकी बताने की कोशिश शुरू हो गई। यह सब उसी मुहिम का हिस्सा था, जो कि काफी अमानवीय, असंवेदनशील और गलत बात थी।