कोच्चि। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा है कि भारतीय दंड संहिता यानि आईपीसी को 21वीं सदी की जरुरतों के अनुसार ढालने के लिए विस्तृत समीक्षा की जरुरत है। उन्होंने कहा कि प्राचीन पुलिस प्रणाली में बदलाव लाने की आवश्यकता है। प्रणब यहां आईपीसी की 155वीं वर्षगांठ के अवसर पर बोल रहे थे।

उन्होंने कहा कि पिछले 155 सालों में आईपीसी में बहुत कम बदलाव हुए हैं। अपराधों की प्रारंभिक सूची में बहुत कम अपराधों को जोडा गया और उन्हें दंडनीय बनाया गया है। अभी भी संहिता में ऐसे अपराध हैं, जो ब्रिटिश प्रशासन द्वारा औपनिवेशिक जरुरतों को पूरा करने के लिए बनाये गये थे। अभी भी कई नवीन अपराध हैं जिन्हें समुचित तरीके से परिभाषित करना और संहिता में शामिल किया जाना है।

राष्ट्रपति ने कहा कि अपराधिक कानून के लिए यह संहिता एक आदर्श कानून थी, लेकिन 21वीं सदी की बदलती जरुरतों के अनुसार उसमें विस्तृत समीक्षा की जरुरत है। JNU प्रकरण को लेकर देशद्रोह का कानून आजकल चर्चा का विषय बना हुआ है। आर्थिक अपराधों से आसन्न खतरों को रेखांकित करते हुए, प्रणब ने कहा कि इसने समावेशी समृद्धि और राष्ट्रीय विकास को अवरुद्ध किया है।

उन्होंने कहा कि पुलिस की छवि उसकी कार्रवाई पर निर्भर करती है। पुलिस को कानून लागू करने वाली इकाई की भूमिका से आगे बढना चाहिए। भारतीय दंड संहिता एक जनवरी, 1862 से प्रभावी है। इस कार्यक्रम के दौरान केरल के राज्यपाल पी. सदाशिवम, मुख्यमंत्री ओमान चांडी और प्रदेश के विधि सेवा के जुडे लोग मौजूद थे।