लखनऊ: भारतीय जनता पार्टी ने कहा कि बेबसी का जिक्र करते मुख्यमंत्री अखिलेश यादव चीजों को बस में करने के लिए कितना समय लेंगे। प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक ने कहा कि लोकतंत्र में निर्वाचित सरकार के पास 60 माह (5 वर्ष) का समय होता है, यहां तो 48 माह बीत चुके है, हालात ये है कि घटनाओं से सबक लेने की बजाय सरकार बेबस  का परिचय दे, दूसरों पर तोहमत मढ़ मीडिया को दोषी ठहरा अपने दामन को बचाने में लगी है। उन्होंने कहा राज्य में लगातार हर्ष फायरिंग के कारण मौत के समाचार आ रहे है, पर सरकार के पास हर बार अपने तर्क है। लखनऊ में मुख्यमंत्री आवास, डीजीपी के अतिसुरिक्षत जोन में बेटी की लाश 4 दिनों तक पड़ी रही पुलिस निष्क्रिय, संवेदनहीन व शिथिल बनी रही। 

वृहृस्पतिवार को पार्टी मुख्यालय पर राज्य में कानून व्यवस्था पर हमलावर रूख अख्तियार करते हुए प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक ने कहा शामली, बागपत और अब सीतापुर में हर्ष फायरिंग के कारण र्दुघटना के समाचार है। कुर्तकों से घाटनाओं के बचाव में जुटी सरकार आखिर क्यों नहीं घटनाओं से सबक लेती। सीतापुर में द्वारचार के समय हादसा हो जाता है और पुलिस वहीं रटा-रटाया उत्तर देने में लगी है कि जांच की जा रही है। आखिर जिस प्रशासनिक अमले पर प्रभावी नियंत्रण की जिम्मेदारी है वह अपना काम क्यों नहीं कर पा रहा है।

उन्होंने लखनऊ में हुई दरिदंगी की घटना पर राज्य प्रशासन के इकबाल को लेकर सवालियां निशान खड़े करते हुए कहा कि जो समाचार है वे बयां कर रहे है ऐसी हैवानियत हुई की दिल दहल जाये। जिन्हंे गिफ्तार किया गया उनकी बातों को ही गौर किया जाये तो मुख्यमंत्री आवास और पुलिस महानिदेशक आवास के बीच 4 दिनों तक शव पड़ा रहा। आखिर इस अतिसुरिक्षत विशिष्ट क्षेत्र में अपराधियों की यह हिमाकत कि वह जघन्यतम अपराध कर वही लाश डाल जाये ? सरकार के लापरवाही का आलम ये है कि पुलिस रिकार्ड के अनुसार राजधानी लखनऊ में बीते वर्ष से अब तक 181 महिलाओं के लापता होने के समाचार है जिसमें 63 नाबालिग बेटिया है। परिजन अपनो के तालाश में थानों में भटक रहे है और पुलिस कहती है कि खोजकर बताओं तो सिपाही भेज देंगे।

श्री पाठक ने कहा राज्य में घटनाओं की फेरिस्त लम्बी है किन्तु मुख्यमंत्री की बेबशी चिंताजनक है, अपनी पहली पत्रकार वार्ता में बिजली और कानून व्यवस्था को सर्वोच्च प्राथमिकता बताने वाले मुख्यमंत्री के सामने वो कौन सी चीजें है जो उनके वश में नहीं आ रही हैं। आखिर इस बेवशी तक राज्य के प्रशासन को ले जाने के लिए वे ही तो जिम्मेदार है, राजधानी लखनऊ में मोहनलालगंज का चर्चित काण्ड रहा हो अथवा लखनऊ की बेटी के शरीक को कई टुकड़ो में काटने का प्रकरण रहा हो घटनाऐं वीभत्स रूप लेती गयी, सरकार जांच और कार्यवाही का भरोसा, नतीजा इस स्थिति तक पहुंच गया कि दुराचारी और हैवानियत करने वाले इतने बेखौफ हो गये कि उन्होंने लाश मुख्यमंत्री आवास और डीजीपी आवास के मध्य डालना मुफीद समझा।