मुश्ताक अली अन्सारी

प्रगतिशील, वामपंथी एवं अम्बेडकरवादी दोस्तों हैदराबाद (आन्ध्र प्रदेश) के केन्द्रीय विश्वविद्यालय के खगोलशास्त्र (स्पेस साइन्स) के शोधार्थी छात्र एवं अम्बेडकर छात्र संगठन के सक्रिय कार्यकर्ता रोहित वेमुला की सांस्थानिक हत्या के खिलाफ मोदी सरकार में जारी शैक्षणिक संस्थाओं के भगवाकरण पर रोक लगाने, रोहित की हत्या को जिम्मेदार केन्द्रीय श्रम मन्त्री बन्डारू दत्तात्रेय, मानव संसाधन मन्त्री स्मृति ईरानी तथा हैदराबाद विश्वविद्यालय के कुलपति को गिरफ्तार कर जेल भेजने की मांग को लेकर देश भर के वामपंथी, छात्र युवा व अम्बेडकरवादी एवं प्रगतिशल बुद्धिजीवी आन्दोलन चला रहे हैं।

लखनऊ बी0आर0 अम्बेडकर विश्वविद्यालय के दीक्षान्त समारोह में प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ नारे लगाते हुए साहसी छात्रों ने कहा कि आज भी द्रोणाचार्य द्वारा एकलव्य का उत्पीड़न किया जा रहा है जिसका परिणाम उन्हें गिरफ्तारी के रूप में भुगतना पड़ा। दिल्ली तक में आईसा के नेतृत्व में हुए छात्रों व बुद्धिजीवियों के प्रदर्शन पर वाटर केनन से पुलिस ने हमला किया जिसमें घायलों को अस्पताल जाना पड़ा और बहुतेरे गिरफ्तार हुए।

प्रधानमन्त्री रोहित की मौत पर घडि़याली आंसू बहाकर अपराधियों को संरक्षण प्रदान कर रहे है। ब्राहमणवादी, रोहित की मौत पर राजनीति न करने की सलह दे रहे हैं जबकि उन्हीं की राजनीति और विचारधारा के कारण रोहित की मौत हुई। कारपोरेट मीडिया आन्दोलन को दिग्भ्रमित करने के लिये बाबा साहब तो जनआन्दोलनों के ही खिलाफ थे मगर इस बात को ही गायब कर दिया जाता है कि बाबा साहब के एक समय के लेख छापकर यह दुष्प्रचार कर रहे हैं कि बाबा साहब तो जनआन्दोलनों के खिलाफ थे। मगर इस बात को ही गायब  कर दिया जाता है कि बाबा साहब ने दलितों के हित में ब्राहमणवादी, विभाजनकारी ढांचे के खिलाफ लड़ने के लिये न केवल न्याय मंत्री पद त्यागा था बल्कि ये भी कहा कि पैदा तो मैं हिन्दू हुआ था मगर मरूंगा नहीं।जिस ब्राहमणवादी खांचे के खिलाफ बगावत में रोहित ने अपनी जान दी उसी के बारे में उन्होंने ब्राहमणवादी खांचे में दलितों का जीवन क्या है उसकी पीड़ा अभिव्यक्त करते हुए अपने सुसाइट नोट में लिखा ‘‘कुछ लोगों के लिये जिन्दगी हमेशा अभिशाप होती है। मेरी पैदाईश एक भयानक हादसा है’’। दलित समाज की इस स्थिति पर पर्दा डालने के लिये कारपोरेट मीडिया यह शोर मचा रहा है कि दलितों की स्थिति बहुत बदल गयी है वे सामूहिक मतदान करते हैं उत्तर भातर में उनका मत सरकार बनाने की कुन्जी है। 21वीं सदी दलितों की होगी आदि आदि 

हां निश्चय ही होगी मगर ब्राहमणवादी विभाजनकारी और उत्पीड़नकारी ढांचे में नहीं। निश्चय इसे तोड़कर, तथा कारपोरेट पूंजी को समाप्त करके। बाबा भीमराव अम्बेडर के समतामूलक समाज की स्थापना करके। यही है रोहित वेमुला की मौत पर उठ खड़े हुए लोकतान्त्रिक आन्दोलन का संदेश।

जहां तक रोहित की आत्महत्या या संस्थानिक हत्या का प्रश्न है। इस पर विचार करना आवश्यक है। रोहित खगोल शास्त्र के एक मेधावी शोध छात्र थे उनकी इच्छा कार्ल सागन की तरह विज्ञान लेखक बनने की थी वे सितारों के रहस्यों  को सुलझाने में लीन थे इसलिये वे कहते हैं ‘हमें विज्ञान, कुदरत और सितारों से मुहब्बत है मगर सबसे ज्यादा मुहब्बत इंसानों से की है। उनकी यही मुहब्बत उन्हें अम्बेडकर स्टूडेन्ट एसोसिएशन का सक्रिय कार्यकर्ता बना देती है उन्होंने देखा कि न केवल समाज में दलितों और मुसलमानों का नरसंहार हो रहा है बल्कि उच्च शैक्षणिक संस्थाओं के भगवाकरण के जरिये दलितों पर हमले हो रहे हैं। उन्होने देखा कि आई0आई0.टी0 मद्रास में अम्बेडकर पेरियार स्टडी सर्किल की मान्यता रद्द करके उसे देशद्रोही घोषित कर दिया गया। भगवा व्रिगेड ने डा0 नरेन्द्र दाभोलकर, कामरेड पंसारे प्रोफेसर कुलवर्गी और अखलाक की हत्या कर दी है तो इसके खिलाफ उठने वाली साहित्यकारों, बुद्धिजीवियों वैज्ञानिकों की आवाज में आवाज मिलाकर वह खड़ा हो गया। दिल्ली विश्वविद्यालय में मुजफ्फरनगर अभी बाकी है डाक्यूमेन्टरी फिल्म के प्रदर्शन को जब भगवा व्रिगेड ने बाधित किया तो उसने उसके खिलाफ हैदराबाद में प्रतिवाद आयोजित किया और जब याकूब  मेनन को फांसी हुई तो उसने दुनिया के सारे मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की तरह इसका विरोध किया और हर तरह की फांसी पर रोक लगाने की मांग की। जैसा कि खुद उसने अपने सुसाइट नोट में खुलेआम घोषणा की कि वह सबसे बढ़कर इंसानों से प्यार करता है। उसके यही लोकतांत्रिक कारनामे भगवा व्रिगेड के लिये अपराध बन गये।

वे उसे अपने रास्ते से हटाना चाहते थे वे उसे भी अन्य की तरह गोली मरवा सकते थे मगर इसके खिलाफ होने वाले प्रतिवाद से वे भयभीत थे। इसलिये उन्होंने उसकी हत्या का ऐसा रास्ता चुना जिसमें सांप भी मर जाये और लाठी भी न टूटे। उन्होंने अपने अनुभव से देखा कि अब तक उच्चशैक्षणिक संस्थाओं में चरम उत्पीड़नकारी स्थितियों में 25 में से 23 दलित छात्रों ने ही आत्महत्याएं की हैं इसलिये उसे उत्पीडि़त करने का रास्ता चुना गया इसमें सचेतन भूमिका निभायी केन्द्रीय श्रम मन्त्री बंडारू दत्तत्रेय, केन्द्रीय मानवसंसाधन मंत्री स्मृति रानी, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और कुलपति ने। उसके  विज्ञान लेखक बनने के सपने को चूर-चूर करने के लिये उसे उग्रवादी, जातिवादी और राष्ट्रद्रोही घोषित कर उस सहित उसके पांच साथियों को निलम्बित कर दिया गया। उसका मेस, हास्टल व कैम्पस में सामाजिक बहिष्कार हुआ इसके प्रतिवाद में कुलपति को लिखे अपने पत्र में उसने कहा कि अगर कुलपति राजनीतिक कारणों से सजा भोग रहे छात्रों के अधिकारों की रक्षा नहीं कर सकते तो उन्हें हर दलित छात्र के कमरे में आत्महत्या करने के लिये लटकने वाली एक रस्सी का इंतजाम कर देना चाहिए। इस तरह वह उनका विरोध करते हुए भी उनके षडयन्त्र की बलिवेदी का शिकार हो गया। इसलिये हत्या की साजिश रचने वाले भगवागिरोह के खिलाफ कार्यवाही की मांग को लेकर चल रहा आन्दोलन लोकतांत्रिक है। हमें इसमें पूरी ऊर्जा से सरीक होना चाहिए और विस्तारित करना चाहिए। 

लेखक स्वतंत्र पत्रकार और लखीमपुर मे ब्लाक सोशल आडिट कोआर्डिनेटर है