लखनऊ: उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता, 2006 (उ0प्र0 राजस्व संहिता (संशोधन) अध्यादेश, 2015 द्वारा यथा संशोधित) का विमोचन समारोह मुख्यमंत्री निवास लखनऊ में विधानसभाध्यक्ष माता प्रसाद पाण्डेय की उपस्थिति में मुख्य अतिथि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के कर-कमलों से सम्पन्न हुआ। समारोह की अध्यक्षता राजस्व मंत्री शिवपाल सिंह यादव द्वारा की गयी। उक्त समारोह को संबोधित करते हुए मंत्री शिवपाल सिंह यादव ने कहा कि जैसे समय के साथ कई पुरानी वस्तुयें अपनी प्रासंगिकता खो देती हैं, वैसे ही समय के साथ यह आवश्यक है कि कानून भी समय की कसौटी पर खरा उतरे। उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम, 1950 निश्चित तौर पर एक कानून ही नहीं वरन् एक सामाजिक दस्तावेज है जिसने पूरे भारत में उत्तर प्रदेश की भू-सुधार एवं भू-प्रबन्धन के क्षेत्र में अपनी एक विशिष्ट पहचान स्थापित की हैै। प्रदेश में इस कानून का अपना एक विशेष महत्व है, जिसने जमींदारी प्रथा को समाप्त कर भू-सुधार किया। आजादी के बाद इस कानून ने राजस्व प्रशासन एवं राजस्व न्याय प्रणाली को एक नया आयाम प्रदान करते हुये तथा राज्य और किसानों के मध्य बेहतर समन्वय स्थापित करते हुये प्रदेश का चहुमुखी विकास किया। 

उन्होंने कहा कि समय परिवर्तनशील है और कानून को भी समय के साथ चलना चाहिये। हो सकता है कि जो कानून आज बहुत अच्छा है वह भविष्य में अपनी प्रासंगिकता को खो दे इसलिये कानून वही है जो समय के साथ समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति करे और समय के साथ समसामयिक बना रहे। राजस्व प्रशासन के क्षेत्र मेें कुछ बढ़ती हुयी समस्याओं के कारण इस बात की आवश्यकता महसूस होने लगी थी कि उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश कानून में कुछ परिवर्तन किये जायें और समय के साथ सामने आई कुछ नई समस्याओं के निदान के लिये उन्हें कानूनी उपबन्ध प्रदान किये जायें। व्यवहार मेें यह देखा गया कि राजस्व कानून बहुत क्लिष्ट है तथा इसकी कुछ प्रक्रियायें काफी जटिल और समय लेने वाली हैं। बढ़ते हुये राजस्व वादों तथा कुछ प्रक्रियात्मक कठिनाईयों के कारण प्रदेश के किसानों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा था। इसलिये यह चुनौती थी कि हम राजस्व कानूनों तथा इसकी प्रक्रियाओं का सरलीकरण करें। इस चुनौती को हमारी डाªफ्टिंग कमेटी ने बखूबी निभाया है और इसे एक बहुत ही सरल स्वरूप प्रदान किया है जिसका विमोचन आज यहां आपके समक्ष किया गया। राजस्व न्यायिक प्रक्रियाओं का सरलीकरण तथा आज के विकसित तकनीकी एवं संचार क्रान्ति के दौर में कम्प्यूटरीकरण तथा नई तकनीक के साथ इसे जोड़ना हमारी प्राथमिकताओं में से एक है। इन दोनों को नई संहिता में यथा आवश्यक स्थान दिया गया है। 

राजस्व वादों के निपटारे में होने वाली देरी की समस्या को देखते हुये नई संहिता में शपथपत्र के आधार पर ही सरसरी कार्यवाहियों को एक निर्धारित समयसीमा में तय किये जाने का प्रावधान किया गया है। हमारे सरकार की प्राथमिकता है कि हम किसानों को उनके दरवाजे पर ही उन्हें वह न्याय दें जिसके लिये वे वर्षों तहसील व जिला कचहरी के चक्कर लगाते हैं। इस दिशा में, नई राजस्व संहिता मेें ग्राम व्यथा निवारण समिति का गठन किया गया है जो ग्राम पंचायत स्तर पर तथा मौके पर पक्षों के बीच मध्यस्थता कर मामलों को सुलह-समझौते से निपटाने का प्रयास करेगी। 

आज बढ़ते हुये राजस्व वादों के शीघ्र निपटाने हेतु संहिता में अलग से राजस्व न्यायिक अधिकारियों की तैनाती का ऐतिहासिक उपबन्ध किया गया है। ऐसे राजस्व न्यायिक अधिकारियों को हम उनके वेतन का दस प्रतिशत न्यायिक भत्ता देंगें तथा इन्हें वाहन एवं अन्य सुविधायें भी उपलब्ध करायेंगे। इसी क्रम में समस्त राजस्व वादों की न्यायालय में पैरवी करने तथा उनकी निगरानी किये जाने हेतु सरकार की ओर से तहसील से लेकर राजस्व परिषद एवं उच्च न्यायालय स्तर तक स्थाई अधिवक्ता एवं नामिका अधिवक्ताओं की नियुक्ति किये जाने सम्बन्धी प्रावधान किये गये हैं। यह व्यवस्था निश्चित ही हमारे राजस्व न्यायिक प्रशासन को एक नई गति एवं नई दिशा प्रदान करेगी। 

अनुसूचित जाति के भूमिधरों को अपनी भूमि गैर-अनुसूचित जाति को विक्रय करने पर कलेक्टर की पूर्व अनुमति की अनिवार्यता इस संहिता में भी प्रावधानित की गयी है, किन्तु कलेक्टर किन परिस्थितयों में ऐसे विक्रय की अनुमति देंगें, यह संहिता में प्राविधानित कर दिया गया है। 1.26 हेक्टेयर भूमि शेष रहने पर ही अनुमति दिये जाने की पूर्व बाध्यता को समाप्त कर दिया गया है क्योंकि इस प्रावधान के कारण अनुसूचित जाति का भूमिधर किन्हीं भी आवश्यकताओं के दृष्टिगत अपनी भूमि का विक्रय नहीं कर सकता था। आप सभी अवगत होंगे कि विकास के इस दौर में अनुसूचित जातियों के भूमिधरों को उनकी भूमि का उचित विक्रय मूल्य नहीं मिल पा रहा था और साथ ही साथ उनकी भूमि के विक्रय की अनुमति को प्राप्त करने के लिये अन्य उपबन्धों का सहारा लिया जा रहा था। हम संवेदनशील हैं कि अनुसूचित जाति के भूमिधर भूमिहीन न हो जायें किन्तु आवश्यकता पड़ने पर अपनी भूमि का विक्रय कलेक्टर की पूर्व अनुमति से कर सकें। साथ ही साथ कलेक्टर अनुमति प्रदान करते समय यह सुनिश्चित करेंगे कि अनुसूचित जाति के उस विक्रेता को बाजारू मूल्य/सर्किल रेट से कम मूल्य पर न प्राप्त हो। इन दोनों में सामंजस्य रखते हुए विकास की वर्तमान परिस्थितियों के अनुसार इसका प्रावधान नई संहिता में किया गया है।

विकास के इस दौर में चरागाह, तालाब, पोखर जैसी धरोहरों को अगली पीढ़ी के लिए बचा के रखना और उन्हें सौंपना हमारा दायित्व है। सार्वजनिक प्रयोजन की भूमि एवं राज्य के विकास कार्यों के मध्य सन्तुलन बिठाते हुए इसके लिये जो प्रावधान किये गये हैं वह सराहनीय एवं विकासशील हैं। इन प्रावधानों से हमारे विकास कार्य भी प्रभावित नहीं होंगे और हम प्राकृतिक धरोहरों को भी बचा सकेंगे। 

महिला सशक्तिकरण के लिये हम तत्पर हैं और इस संहिता के माध्यम से हमने अविवाहित पुत्री को प्रथम श्रेणी का उत्तराधिकारी तथा ग्रामसभा द्वारा आवंटित भूमि में पत्नी को बराबर की हिस्सेदारी का प्रावधान किया गया है। श्रेणी-3 में दर्ज असामी पट्टादारों को असंक्रमणीय भूमिधर बनाये जाने का अधिकार, पट्टे के पात्र व्यक्तियों को उनके गृह स्थलों को जो ग्राम सभा की भूमि पर निर्मित हैं, को उनके साथ बन्दोबस्त करने का, खतौनी मेें खातेदार के हिस्से का उल्लेख एवं मिनजुमला नम्बरों का भौतिक विभाजन नक्शों मेें किया जायेगा। आबादी स्थलों का अभी तक कोई रिकार्ड नहीं है, इस संहिता में आबादी का सर्वे कर आबादी सम्बन्धी अभिलेख तैयार किये जाने का प्रावधान किया गया है। जिससे आबादी से जुड़े झगड़े कम हो जायेंगे और प्रत्येक निवासी के पास उससे सम्बन्धित अभिलेख उपलब्ध होगा। तहसील को हमने समेकित गांव निधि के माध्यम से आर्थिक रूप से सशक्त करने हेतु प्रावधान किया है। भूमि के अकृषिक होने की घोषणा केवल भूमि पर चाहरदिवारी बना लेने तथा भूमि को परती रखने मात्र से अकृषिक की घोषणा नहीं की जायेगी अपितु घोषणा के लिए यह आवश्यक है कि उस भूमि का गैर-कृषक प्रयोग हो रहा हो। अकृषिक घोषित की गयी भूमि का अभिलेख रखा जायेगा और अन्तरण और बरासत के आधार पर उसमें नामान्तरण आदेश भी पारित किया जा सकेगा। इस संहिता के माध्यम से हमने यह भी उपबन्ध किया है कि यदि कोई ऐसा भूमिधर जो कतिपय कारणों से अपनी कृषि भूमि पर खेती नहीं कर पा रहा तो वह अपने खेत को खेती करने हेतु पट्टे पर उठा सकता है। पचाॅस हजार के कम के बाकीदारों की गिरफ्तारी नही की जायेगी तथा किसी भी बकायेदार की भूमि बाजारू मूल्य से कम दर पर नीलाम नही की जायेगी।