लखनऊ: मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने केन्द्र सरकार से उत्तर प्रदेश के तेजी से विकास के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर, एक्सप्रेस-वे निर्माण, औद्योगिक विकास, कृषि, सिंचाई, प्राकृतिक आपदा, मेट्रो रेल आदि के लिए अधिकतम सहयोग का अनुरोध किया है। उन्होंने केन्द्र सरकार द्वारा 7वें वेतन आयोग की संस्तुतियों को लागू करने के फलस्वरूप प्रदेश सरकार पर आने वाले व्यय भार के 50 प्रतिशत अंश तक सहायता प्रदान करने का भी अनुरोध किया है। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश के विकास के बगैर देश का विकास सम्भव नहीं है। इसलिए उत्तर प्रदेश के पिछड़ेपन तथा भौगोलिक स्थिति को देखते हुए अधिक से अधिक केन्द्रीय सहायता उपलब्ध कराई जाए।
आज नई दिल्ली में केन्द्रीय वित्त मंत्री श्री अरुण जेटली द्वारा आहूत प्री-बजट बैठक में मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव की ओर से उपाध्यक्ष राज्य योजना आयोग श्री नवीन चन्द्र बाजपेई ने उनका वक्तव्य प्रस्तुत किया। अपने वक्तव्य में मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि जनसंख्या एवं भौगोलिक दृष्टि से उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा राज्य है। उत्तर प्रदेश को विकास के पथ पर तेजी से ले जाने के लिए राज्य सरकार द्वारा अपने सीमित संसाधनों से गम्भीर प्रयास किए गए हैं। इसके साथ ही, राज्य के विकास के लिए तमाम नीति विषयक निर्णय लिए गए हैं। कृषि विकास, खाद्य प्रसंस्करण, चीनी उद्योग विकास, अवस्थापना एवं औद्योगिक निवेश, सूचना प्रौद्योगिकी, सौर ऊर्जा आदि के लिए नई नीतियां बनाई गई हैं। सरकार द्वारा उठाए कदमों के परिणाम अब दिखाई देने लगे हैं। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश के विकास से ही देश सुनहरे भविष्य की ओर अग्रसर होगा।
श्री यादव ने 14वें वित्त आयोग की ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए कहा कि विभाज्य पूल को 32 प्रतिशत से बढ़ाकर 42 प्रतिशत किए जाने की संस्तुति को केन्द्र सरकार द्वारा स्वीकार कर लिया गया है, परन्तु साथ ही केन्द्र पुरोनिधानित योजनाओं के स्वरूप में व्यापक परिवर्तन किया गया है। राज्यों के अंश में उत्तर प्रदेश राज्य का अंश 19.677 प्रतिशत से घटकर 17.959 प्रतिशत के स्तर पर आ गया, जिससे विभाज्य पूल में हुई वृद्धि का राज्य को अपेक्षित लाभ नहीं मिला। वहीं दूसरी तरफ कतिपय केन्द्र पुरोनिधानित योजनाओं को डि-लिंक अथवा केन्द्रांश में कमी कर दी गई है। राज्यों से अपेक्षा की गई है कि विभाज्य पूल में की गई वृद्धि से इन योजनाओं का वित्त पोषण किया जाए।
गौरतलब है कि केन्द्र सरकार द्वारा संचालित अधिकांश योजनाएं जनसामान्य से जुड़ी हुई हैं। केन्द्र सरकार की तुलना में राज्य सरकार आम जनता के अधिक निकट है, जिसके कारण इन योजनाओं को समाप्त किया जाना सम्भव नहीं है। राज्य को अपने सीमित वित्तीय संसाधनों से इन योजनाओं को चलाना पड़ रहा है। 
यह भी उल्लेखनीय है कि केन्द्र पुरोनिधानित योजनाओं के परिमेयकरण हेतु गठित सबग्रुप की ड्राफ्ट रिपोर्ट पर प्रदेश सरकार द्वारा इस शर्त के साथ सैद्धान्तिक सहमति प्रदान की गई थी कि ‘सबग्रुप द्वारा की गई संस्तुतियों के परिणामस्वरूप राज्य को केन्द्र सहायतित परियोजनाओं के केन्द्रांश के रूप में होने वाले वित्तीय नुकसान की भरपाई केन्द्र सरकार द्वारा किसी अन्य रूप में अवश्य की जाएगी, ताकि राज्य सरकार द्वारा संचालित विकास कार्यों पर किसी प्रकार का प्रतिकूल प्रभाव न पड़ने पाए।’ उन्होंने इस मत पर पुनः जोर देते हुए केन्द्र सरकार से सार्थक प्रयास किए जाने की मांग की।
मुख्यमंत्री ने 14वें वित्त आयोग की संस्तुतियों की ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए कहा कि अनुसार ऋण सीमा, जी0एस0डी0पी0 के 3 प्रतिशत की सीमा के अधीन ही निर्धारित की गई है, जिसमें कुछ शर्तों के साथ 0.50 प्रतिशत की लोचनीयता प्रदान की गई है। उन्होंने जोर देकर कहा कि उत्तर प्रदेश जैसे पिछड़े राज्य, जहां भौगोलिक कारणों से संसाधनों के दोहन की क्षमता भी सीमित है, में विकास हेतु ऋण के सुनियोजित उपयोग की आवश्यकता है, जिससे पूंजीगत परिव्यय में वृद्धि की जा सके। उन्होंने कहा कि राज्यों के वित्त सचिवों की विगत दिसम्बर, 2015 में आयोजित बैठक में केन्द्र सरकार द्वारा कृषि, शिक्षा तथा चिकित्सा एवं स्वास्थ्य के साथ-साथ अन्य सामाजिक क्षेत्रों में अधिक निवेश पर बल दिया गया है। राज्य सरकार इससे पूरी तरह सहमत है। किन्तु 14वें वित्त आयोग की संस्तुतियों में राज्य सरकार का प्रतिशत अंश घट जाने के कारण राज्यों को 0.50 प्रतिशत की, जो लोचनीयता प्रदान की गई है, उसको प्राप्त करने में कठिनाई हो सकती है।
श्री यादव ने कहा कि 7वें वेतन आयोग की रिपोर्ट केन्द्र सरकार को सौंपी जा चुकी है। राज्य सरकार को भी इसे भविष्य में लागू करना होगा, जिससे राज्य के वचनबद्ध व्यय में व्यापक वृद्धि होगी तथा राज्य के विकास हेतु पूंजी परिसम्पत्तियों के सृजन हेतु आवश्यक धनराशि और भी घट जाएगी। जबकि जरूरी है कि राज्यों के पास विकास के लिए पर्याप्त धन उपलब्ध रहे। उन्होंने इन परिस्थितियों में केन्द्र सरकार से अनुरोध किया कि राज्य की ऋण सीमा की छूट को बिना शर्त 3.50 प्रतिशत प्रदत्त की जाए, बशर्ते कि राज्य राजस्व अधिशेष की स्थिति में हो। 
मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार वित्तीय अनुशासन बनाए रखने के लिए हमेशा से पक्षधर रही है। इसके साथ ही, उत्तर प्रदेश के पिछड़ेपन तथा अवस्थापना सुविधाओं के विकास की अपार सम्भावनाओं को देखते हुए ऋण की आवश्यकता है। उन्होंने इस ओर ध्यान आकृष्ट कराया कि न्यू डेवलपमेन्ट बैंक (एन0डी0बी0) तथा द एशियन इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेन्ट बैंक (ए0आई0आई0बी0) द्वारा विशिष्ट परियोजनाओं के लिए सम्भवतः उचित ब्याज दर पर भविष्य में ऋण उपलब्ध कराया जाएगा, किन्तु जी0एस0डी0पी0 के 3 प्रतिशत की ऋण सीमा से राज्यों के बंधे होने के कारण और अधिक ऋण लेने की गुंजाइश नहीं रह जाती है। इन दोनों संस्थाओं से अवस्थापना विकास के लिए ऋण उपलब्ध कराने में केन्द्र सरकार महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है, बशर्ते ‘उदय योजना’ के तहत विद्युत वितरण कम्पनियों की वित्तीय पुनर्संरचना हेतु लिए जाने वाले ऋण के समान ही, ऋण सीमा से बाहर रखा जाए। 
श्री यादव ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा अपने सीमित संसाधनों से सड़क एवं पुल, सिंचाई सुविधाओं, ऊर्जा आदि में निवेश किया जा रहा है तथा पी0पी0पी0 माॅडल के आधार पर भी निवेश के प्रयास किए जा रहे हैं। प्रदेश के विकास के लिए भारत सरकार से भी इन्फ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में विशेष सहयोग की आवश्यकता है। उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश सरकार विकास कार्याें तथा पूंजी निवेश को बढ़ावा देने के दृष्टि से पूंजीगत परिव्यय में वर्ष 2013-14 एवं 2014-15 में गत वर्ष की अपेक्षा क्रमशः 26 एवं 52 प्रतिशत की पर्याप्त वृद्धि लाई गई है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि कृषकों एवं ग्रामीण क्षेत्रों के विकास के लिए अनेक परियोजनाएं संचालित की जा रही हैं। इसमें भारत सरकार की सहायता से सरयू नहर राष्ट्रीय परियोजना, अर्जुन सहायक परियोजना, बाण सागर नहर परियोजना एवं मध्य गंगा नहर परियोजना, ए0आई0बी0पी0 के तहत निर्माणाधीन हैं। भारत सरकार द्वारा केन्द्रांश की धनराशि अवमुक्त न किए जाने के कारण यह परियोजनाएं प्रभावित हो रही हैं। उन्होंने इन योजनाओं को पूर्ण करने के लिए केन्द्रांश यथाशीघ्र अवमुक्त करने का अनुरोध किया। उन्होंने सरयू नहर राष्ट्रीय परियोजना का खास तौर पर उल्लेख करते हुए कहा कि यह परियोजना पिछले 35 वर्षाें से पूरी नहीं हो पा रही है, जिसके पूरे होने पर पूर्वांचल के 9 जनपदों के 14 लाख हेक्टेयर क्षेत्र की सिंचाई हो सकेेगी।
श्री यादव ने कहा कि बुन्देलखण्ड हमेशा सूखे की समस्या से जूझता रहा है। यहां की समस्याओं के समाधान के लिए राज्य सरकार अपने स्तर से हर सम्भव प्रयास कर रही है। बुन्देलखण्ड की समस्या को केन्द्र के सहयोग के बिना दूर किया जाना सम्भव नहीं है। इस सम्बन्ध में केन्द्र सरकार के कई बार अनुरोध किया जा चुका है। मौजूदा वित्तीय वर्ष में इस क्षेत्र के लिए केन्द्र सरकार द्वारा उपलब्ध कराई गई 325 करोड़ रुपये की धनराशि पर्याप्त नहीं है। उन्होंने बुन्देलखण्ड की समस्याओं को देखते हुए सिंचाई सुविधाओं, पेयजल कार्य, जल प्रबन्धन एवं सड़कों के निर्माण के लिए विशेष पैकेज देने की मांग की।
मुख्यमंत्री ने कहा कि पूर्वांचल के पिछड़ापन को दूर करने तथा अवस्थापना सुविधाओं के विकास के लिए लखनऊ-बलिया एक्सप्रेस-वे के निर्माण, जिसकी कुल लागत 18 हजार करोड़ रुपये अनुमानित है। इसके लिए उन्होंने केन्द्र सरकार से 5 हजार करोड़ रुपये की सहायता उपलब्ध कराने की मांग की है। इस एक्सप्रेस-वे के बन जाने से पूर्वांचल की जनता को रोजगार के साथ ही, एक्सप्रेस-वे के साथ-साथ व्यवसाय के अनेकों अन्य विकल्प भी उपलब्ध होंगे और इससे पूर्वांचल में खुशहाली तथा समृद्धि आएगी। उन्होंने कहा कि प्रदेश में लम्बित वादों के शीघ्र निस्तारण एवं जन सामान्य को समय से न्याय दिलाने के लिए 5,842 न्यायालय स्थापित करने का प्रस्ताव है। उन्होंने न्याय व्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए इसके लिए भारत सरकार से 50 प्रतिशत तक सहायता प्रदान किए जाने का अनुरोध किया।
श्री यादव ने कहा कि नोएडा, गाजियाबाद तथा लखनऊ में मेट्रो रेल का निर्माण किया जा रहा है। इसके अलावा, वाराणसी एवं कानपुर में मेट्रो चलाए जाने का निर्णय लिया गया है। उन्होंने केन्द्र सरकार से इन नगरों में मेट्रो परियोजनाओं हेतु राज्य सरकार को अपेक्षित सहयोग देने की अपेक्षा की। इसके साथ ही, ‘डायल 100’, ‘सर्विलान्स  योजना’ तथा ‘इन्टीग्रेटेड ट्रैफिक मेनेजमेण्ट सिस्टम’ को जनता से सीधे जुड़ी योजना बताते हुए केन्द्र सरकार से इनके लिए भी सहयोग की मांग की। 
मुख्यमंत्री ने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में शुद्ध पेयजल की आपूर्ति के लिए प्रदेश सरकार कटिबद्ध है। भारत सरकार द्वारा वित्तीय वर्ष 2015-16 में गत वर्ष की तुलना में 25 प्रतिशत ही बजट प्रावधान किया गया है, जिससे स्वीकृत एवं निर्माणाधीन ग्रामीण पाइप पेयजल योजनाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। उन्होंने इस हेतु 3 हजार करोड़ रुपये की धनराशि उपलब्ध कराने का अनुरोध किया। इसके साथ ही, वित्तीय वर्ष 2016-17 के केन्द्रीय बजट में इस हेतु 1,500 करोड़ रुपये का प्रावधान किए जाने का भी अनुरोध किया।
केन्द्र सरकार द्वारा गंगा नदी को प्रदूषण किए जाने के निर्णय को एक स्वागत योग्य कदम बताते हुए श्री यादव ने कहा कि इस योजना की सफलता गंगा नदी में मिलने वाली अनेक छोटी बड़ी नदियों की स्वच्छ निर्मल धारा पर भी निर्भर करती है। राज्य सरकार का मानना है कि गंगा में मिलने वाली नदियों को प्रदूषण मुक्त किए बिना यह सम्भव नहीं है। उन्होंने इस मामले में भी गम्भीरतापर्वक विचार करने का अनुरोध करते हुए गंगा में मिलने वाली नदियों की सफाई के लिए बजट में अपेक्षित प्रावधान किए जाने की भी मांग की।
मुख्यमंत्री ने कहा कि सर्व शिक्षा अभियान, आई0सी0डी0एस0, पी0एम0जी0एस0वाई0 तथा मनरेगा के अन्तर्गत समय से भारत सरकार से धनराशि प्राप्त नहीं हो रही है, जिससे ये योजनाएं प्रभावित हो रही हैं। उन्होंने कहा कि सर्व शिक्षा अभियान योजना के अन्तर्गत भारत सरकार से लगभग 3,600 करोड़ रुपये की धनराशि प्राप्त होना शेष है। आई.सी.डी.एस. के प्रशासनिक व्यय और पुष्टाहार कार्यक्रम की पिछले साल की धनराशि बकाया है। इसी प्रकार राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन में वर्ष 2013-14 में 382 करोड़ रुपये आना शेष है। वर्ष 2014-15 में राज्य सरकार द्वारा 1,405 करोड़ रुपये व्यय किया जा चुका है, जबकि भारत सरकार द्वारा 846 करोड़ रुपये ही अवमुक्त किया गया है। उन्होंने अवशेष धनराशि का भुगतान यथाशीघ्र करने का अनुरोध किया।
श्री यादव ने राज्य में सूखे एवं ओलावृष्टि तथा असमय वर्षा तथा फरवरी, मार्च, 2015 में चक्रवाती तूफान के कारण हुई क्षति की ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए कहा कि इन दैवीय विपदा से लगभग 7,500 करोड़ रुपये की हानि हुई है, जिसके सापेक्ष केन्द्र सरकार द्वारा मात्र 2,801 करोड़ रुपये की धनराशि राज्य सरकार को उपलब्ध कराई गई है। यह मामला सीधे-सीधे किसानों से जुड़ा हुआ है। यद्यपि राज्य सरकार ने किसानों की हानि की अधिक से अधिक भरपाई की है। इसके बावजूद इस मामले में केन्द्र सरकार द्वारा भी समुचित सहयोग की आवश्यकता है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि भारत सरकार द्वारा जी0एस0टी0 व्यवस्था लागू किए जाने के उद्देश्य से केन्द्रीय बिक्री कर की दर में कमी की गई थी। इससे होने वाली राजस्व हानि की भरपाई केन्द्र सरकार द्वारा की जानी है। राज्य सरकार द्वारा महालेखाकार, उत्तर प्रदेश के सत्यापित आंकड़ों के आधार पर वर्ष 2007-08 से 2012-13 तक के क्लेम प्रेषित किए गए हैं, जिसमें 2010-11 तक के क्लेम भारत सरकार द्वारा निस्तारित किए जा चुके हैं। उन्होंने वर्ष 2011-12 एवं 2012-13 का क्लेम क्रमशः 1,392.09 करोड़ तथा 1,319.53 करोड़ रुपये केन्द्र सरकार द्वारा शीघ्र अवमुक्त किए जाने का अनुरोध किया।
श्री यादव ने 7 वें वेतन आयोग द्वारा सम्भावित वेतन/पेंशन पुनरीक्षण की ओर वित्त मंत्री का ध्यान आकृष्ट करते हुए कहा कि सम्भवतः इसे 1 जनवरी, 2016 से लागू किए जाने की सम्भावना है। वेतन आयोग की संस्तुतियों को लागू किए जाने पर शुरुआत के कुछ वर्षाें में राज्य सरकारों पर काफी वित्तीय भार पड़ता है, जिसके वित्त पोषण हेतु कभी-कभी राज्य की विकास से सम्बन्धित योजनाओं से समझौता करना पड़ता है, जिसका सीधा प्रभाव राज्य के विकास पर पड़ता है। इसको दृष्टिगत रखते हुए उन्होंने अनुरोध किया कि केन्द्र सरकार द्वारा वेतन आयोग की संस्तुतियों को लागू किए जाने के प्राथमिक वर्षाें में प्रदेश सरकार पर आने वाले व्यय भार के 50 प्रतिशत अंश तक की सहायता प्रदान की जाए।
प्री-बजट बैठक में केन्द्रीय मंत्री अरुण जेटली, केन्द्रीय वित्ता राज्य मंत्री जयनाथ सिन्हा के अलावा राज्यों के मुख्यमंत्री, वित्त मंत्री तथा भारत सरकार के अन्य वरिष्ठ अधिकारी मौजूद