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अबकी एक्लव्य को अंगूठा नहीं देनी पड़ी है जान

अबकी एक्लव्ये को अंगूठा नहीं देनी पड़ी है जान

सदियाँ बीती जुल्म सहते ,अब न रुकेगा ये तूफ़ान

इंसानियत और न्याय तेरी नियत में ही नहीं जानते हैं हम

पर चुपचाप सहते रहे इतना बेगैरत अब  न मान

यहाँ ये मारा वहां उसको मारा आखिर कब तक सुने

ज्याया शहीदी को कैसे करें आओ कुछ तो ले अब ठान

एक्लव्ये तो रोज मरते हैं पर इसबार ही हंगामा क्यों?

क्योंकि इस एक्लव्ये को अम्बेडकर मिशन का था ध्यान

और आने वाले एकलव्यों की खातिर अपने बच्चों की खातिर

अब निकलना ही होगा छोड़कर अपना आराम और माकन

एकलव्यों की सुरक्षा को सिस्टम दुरुस्त करना ही होगा

रुकेंगे नहीं जब तक लागू न करवा लेंगे संविधान

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