सैफई (इटावा) में सारस एवं वेटलैण्ड संरक्षण एवं इसके बारे में जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से आगामी दो फरवरी से दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया जायेगा । इस संबंध में प्रमुख सचिव वन एवं पर्यावरण संजीव सरन आज मीडिया सेंटर, एनेक्सी भवन में पत्रकारों को विस्तार जानकारी दी। 

उन्होंने बताया कि सारस पक्षी विश्व की अत्यन्त लुप्तप्राय पक्षियों में से एक है एवं इनकी विश्व में पाई जाने वाली 15 में से 11 प्रजातियों के पक्षियों की संख्या निरन्तर घट रही है, जो चिंता का विषय है। सारस क्रेन जो उड़ सकने वाले पक्षियों में सर्वाधिक ऊॅचाई के होते हैं, इन लुप्तप्राय 11 प्रजातियों में से एक है। भारतवर्ष में क्रेन की 6 प्रजातियाॅ पायी जाती हैं, जिनमें सारस सर्वाधिक लोकप्रिय है। सारस क्रेन भारतवर्ष के अलावा नेपाल के तराई क्षेत्रों में , म्यांमार के कुछ क्षेत्रों में, कंबोडिया एवं वियतनाम के फ्लडप्लेन क्षेत्रों (flood plane areas or wetlands) तथा उत्तरी आस्ट्रेलिया में पाये जाते हैं। भारतवर्ष में सारस क्रेन उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, तथा उत्तरपूर्वी महाराष्ट्र में पाये जाते हैं। पक्षियों की यह प्रजाति पश्चिमी बंगाल एवं उड़ीसा से विलुप्त हो गई है। 

उत्तर प्रदेश, जहाॅ सम्पूर्ण भारतवर्ष में पाये जाने वाले सारस क्रेन पक्षियों की कुल संख्या का 60 प्रतिशत पाया जाता है, भारत की ‘‘सारस राजधानी‘‘ के रूप में  विख्यात है। सारस उत्तर प्रदेश का राज्य पक्षी है। उत्तर प्रदेश वन विभाग में सारस पक्षी के संरक्षण हेतु वर्ष 2006 में सारस संरक्षण समिति का गठन किया गया है।

विगत दो दशकों में सारस क्रेन के अध्ययन, अनुश्रवण एवं संरक्षण के प्रयास उन समस्त राष्ट्रों में किये गये हैं जहाॅ यह पाये जाते हैं। सारस क्रेन के विषय में इन विभिन्न राष्ट्रों में किये गये अध्ययन एवं संरक्षण के प्रयास के विषय में विचारों के अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर आदान-प्रदान की आवश्यकता महसूस की जा रही है। सारस संरक्षण समिति, उत्तर प्रदेश द्वारा  मुख्य मंत्री  उत्तर प्रदेश शासन के कुशल नेतृत्व में 02 एवं 03 फरवरी को सैफई, इटावा में सारस पक्षी एवं वेटलैण्ड संरक्षण पर अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया जा रहा है। सारस का भविष्य, भूमण्डल पर स्थित छोटे-बडे जल मय क्षेत्रों  के भविष्य से दृढ़ रूप से जुड़ा हुआ है, अतः सारस पर अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारम्भ विश्व वेटलैण्ड दिवस, 02 फरवरी को करने का निर्णय लिया गया है।

वेटलैण्ड एक विशिष्ट प्रकार का परिस्थितिकीय तन्त्र है तथा जैव विविधता का महत्वपूर्ण अंग है। भू व जल क्षेत्र का मिलन होने के कारण यहाॅ सारस व अन्य पक्षियों  की प्रचुरता होने से वेटलैण्ड समृद्ध पारिस्थितिकीय तन्त्र है। समान्य तथा वर्षा ऋतु में यह पूर्ण रूप से जलप्लावित हो जाते हैं। कई वेटलैण्ड वर्ष भर जलप्लावित रहते हैं। उत्तर प्रदेश में कुल 13 वेटलैण्ड पक्षी विहार के रूप में विकसित किये गये हैं। 

इस संगोष्ठी में सारस के लिए महत्वपूर्ण देश यथा भारत, नेपाल, म्यांमार, वियतनाम तथा कंबोडिया के अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के विशेषज्ञांे द्वारा भाग लिया जायेगा। इनके अतिरिक्त संगोष्ठी में  वेटलैण्ड संरक्षण के लिए विभिन्न देशों के विशेषज्ञांे, बाम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी इण्टर नेशनल क्रेन फाउण्डेशन ;  वाइल्ड फाउल ट्रस्ट  के विशेषज्ञों व प्रतिनिधियों द्वारा भी भाग लिया जायेगा। देश के विभिन्न राज्यांे में जहाॅ सारस पाये जाते हैं, के मुख्य वन्य जीव प्रतिपालकांे को भी संगोष्ठी में  भाग लेने हेतु आमंत्रित किया जा रहा है। सारस संरक्षण समिति द्वारा सारस क्रेन के विषय में एक काॅफी टेबल बुक  तैयार करायी गयी है, जिसका विमोचन भी संगोष्ठी के मध्य प्रस्तावित है। इस अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी से स्थानीय जन समुदाय, अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के विशेषज्ञांे, वन विभाग तथा प्रदेश के अन्य महत्वपूर्ण विभाग यथा सिंचाई विभाग, मत्स्य विभाग एवं राजस्व विभाग के सहयोग से सारस एवं वेटलैण्ड के संरक्षण हेतु ठोस रणनीति तैयार करने में सहायता प्राप्त होगी।