कोलकाता। ‘कुछ हिंदू समूह अब मुस्लिम कट्टरपंथियों की तरह बर्ताव कर रहे हैं और यदि ऐसे कुछ तत्वों को छोड़ दिया जाए, तो भारतीय समाज हमेशा सहिष्णु रहा है। यह मेरा खुद का अनुभव और तर्जबा है।’ यह कहना है जाने-माने गीतकर, लेखक व शायर जावेद अख्तर का। वे मंगलवार को कोलकाता में एक साहित्य समारोह में बोल रहे थे।

इस मौके पर उन्होंने कहा कि ‘मैंने 1975 में मंदिर में एक हास्य दृश्य दिखाया था। मैं आज ऐसा नहीं करूंगा, लेकिन 1975 में भी मैं मस्जिद में ऐसा दृश्य नहीं दिखाता, क्योंकि वहां असहिष्णुता थी। अब दूसरा पक्ष उसकी तरह व्यवहार कर रहा है।’ उन्होंने असहिष्णुता पर एक परिचर्चा में कहा, ‘अब वे इस जमात में शामिल हो रहे हैं, यह त्रासदीपूर्ण है। हिंदू मत कहिए। यह गलत नुमांइदगी है। ये कुछ हिंदू समूह हैं।’ हालांकि उन्होंने आमिर खान अभिनीत हिंदी फिल्म ‘पीके’ का उदाहरण देते हुए कहा कि हिंदुओं ने ही इस फिल्म को बॉक्स ऑफिस पर सफल बनाया। मुझे यह समझ नही आता कि कोई भी व्यक्ति अपनी सफलता की वजहों को कैसे भूल सकता है।

अख्तर ने कहा, ‘मुझे वाकई इस बात को लेकर संदेह है कि यदि आप किसी इस्लामी देश में मुस्लिम प्रतीकों को लेकर फिल्म बनाएंगे, तो क्या वह सुपरहिट होगी। शायद नहीं, लेकिन भारत में ऐसी फिल्में सुपरहिट होती हैं।’ उन्होंने कहा, ‘हम विवादों की स्थिति में अतिवादी रुख अपना लेते हैं।’ अख्तर ने कहा, ‘कुछ लोगों का कहना है कि समाज में असहिष्णुता खतरे के स्तर पर पहुंच गई है। मुझे इस बात पर भरोसा नहीं है। कुछ लोग हैं जो कहते हैं कि कोई असहिष्णुता नहीं है। मुझे उन पर भी भरोसा नहीं है। असलियत इस दोनों स्थितियों के बीच है। सच्चाई यह है कि भारतीय समाज हमेशा ये सहिष्णु था और है। समाज के कुछ ऐसे वर्ग हैं, जो हमेशा भिड़े रहते हैं।’ हालांकि उनके अनुसार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला देश में कोई नया चलन नहीं है।

अख्तर ने कहा, ‘अभिव्यक्ति की आजादी पर हमेशा किसी न किसी तरह का हमला होता रहा है। हम एक लेख में और सम्मेलन में कोई बात कह सकते हैं, लेकिन आप एक डॉक्यूमेंट्री और एक फीचर फिल्म में वही बात नहीं कह सकते। यह हमेशा से ऐसा ही रहा है।’कुछ लेखकों की ‘पुरस्कार वापसी मुहिम के बीच उन्होंने अपना साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा, ‘क्योंकि मैं जानता हूं कि यह पुरस्कार मुझे लेखकों ने दिया है, तो मुझे इसे क्यों लौटाना चाहिए? अवॉर्ड लौटाने का सवाल ही नहीं उठता।’ अख्तर ने कहा कि लेखक इस जूरी का हिस्सा होते हैं, न कि पुलिसकर्मी या नौकरशाह।