नई दिल्ली: सियाचिन ग्लेशियर हिमालय पर्वत की कराकोरम रेंज में स्थित है, ये दुनिया का सबसे ऊंचा और ठंडा युद्धस्थल है और यहां 21 हजार फुट से भी ज्यादा ऊंचाई पर सेना की चैकियां मौजूद हैं। 5 हजार 400 मीटर की ऊंचाई पर इस  77 किलोमीटर लम्बे ग्लेशियर पर टिके रहने के लिए भारतीय सैनिकों को अपनी शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक सीमाओं से भी आगे निकल कर मातृभूमि की रक्षा करनी होती है।

गणतंत्र दिवस मनाने और दुनिया के सबसे खतरनाक युद्ध क्षेत्र में तैनात भारतीय सैनिकों की बहादुरी और बलिदान का सम्मान करने के लिए डिस्कवरी चैनल 26 जनवरी को रात 9 बजे रिवील्ड: सियाचिन कार्यक्रम को दिखाएगा।

एक घंटे के इस विशेष कार्यक्रम रिवील्ड: सियाचिन में दर्शक दुनिया के इस सबसे चरम मोर्चे को देखेंगे और ये भी जानेंगे कि सियाचिन ग्लेशियर को सुरक्षित और शांतिमय बनाए रखने के लिए क्या कुछ करना होता है। कार्यक्रम में दिखाया जाएगा कि सैनिक उस युद्ध क्षेत्र की बेहद मुश्किल चुनौतियों का सामना कैसे करते हैं जहां तापमान शून्य से भी 60 डिग्री नीचे पहुंच जाता है।

इस कार्यक्रम के बारे में अपने विचार व्यक्त करते हुए राहुल जौहरी, एग्ज़ीक्यूटिव वाइस प्रैजि़डैंट और जनरल मैनेजर – साउथ एशिया, डिस्कवरी नैटवक्र्स एशिया पैसिफि़क ने कहा – ‘रिवील्ड: सियाचिन’  मातृभूमि को अपने शौर्य और बलिदान के जरिये बचाने वाले हर भारतीय सैनिक को समर्पित है। ये प्रोग्राम उन सैनिकों के अनुभवों को दर्शकों के लिए पेश करेगा जो इस मोर्चे पर मौजूद हैं, और साथ ही कुछ ऐसे हैरान करने वाले तथ्य भी प्रस्तुत करेगा जिनके जरिये दर्शक समझ पाएंगे कि आखिर सियाचिन दुनिया का सबसे मुश्किल इलाका क्यूं है?’

भारतीय सेना के लिए सियाचिन के पहले सर्वेयर कर्नल नरेन्द्र कुमार के अनुसार ‘सियाचिन ग्लेशियर मेरे लिए, और यहां अपनी कार्य अवधि के दौरान मातृभूमि की सेवा करने वाले सभी भारतीय सैनिकों के वास्ते सबसे अविस्मरणीय अनुभवों में से एक रहेगा। भारतीय सेना इस क्षेत्र में अपनी स्थायी सैन्य उपस्थिति कायम रखती है और वह प्रकृति से लगातार जूझती रहती है।  21 हजार फुट की ऊंचाई पर बर्फीली पहाड़ी चोटियों पर आॅक्सीजन पाना भी अपने आप में किसी संघर्ष से कम नहीं। ये कार्यक्रम दर्शकों को उन हैरतअंगेज तथ्यों के बारे में बताएगा जो इतनी ऊंचाई वाली जगह पर जिंदा रहने से जुड़े सघन प्रशिक्षण, बचाव की प्रणालियों और एक्सकेवेशन से जुड़ी महारतों के लिए आवश्यक होते हैं और सैनिकों को इन्हें सीखना होता है।