मैग्सेसे पुरस्कार विजेता गांधीवादी नेता संदीप पांडे काे बनारस हिंदू विश्वविद्‍यालय से बतौर गेस्ट फैकल्टी के बर्खास्त किए जाने के पीछे असल कारण नक्सली होना या राष्ट्र विरोधी होना नहीं है जैसा कि आरोप लगाया गया है बल्कि देश के शिक्षण संस्थानों के भगवाकरण अभियान का हिस्सा है।

देश की साम्प्रदायिक और फासीवादी विचारधारा ने राष्ट्रवाद के मुखौटे में (जो सदा से उसका हथियार रहा है) स्पष्ट रेखा खींच दी है जिसके अनुसार देश के नीच जाति के कहे जाने वाले वर्ग के गरीबों और मज़लूमों के साथ कारपोरेट जगत एंव राज्य की क्रूरता के खिलाफ आवाज़ उठाने वाले उनके रास्ते के सबसे बड़े कांटा हैं और वह उन्हें किसी कीमत पर बर्दाश्त नहीं करेंगे।

संदीप पांडे ने राज्य के भय अभियान की परवाह किए बिना हर तरह का जोखिम उठाते हुए आतंकवाद और माओवाद के नाम पर निर्दोशों के ऊपर किए जाने वाले अत्याचारों के खिलाफ मज़बूती से आवाज़ उठाई है।

अपनी सादगी के लिए विख्यात संदीप पांडे ने उस समय आज़मगढ़ का दौरा किया था जब पूरा मीडिया इस जनपद को ‘आतंकवाद की नर्सरी’ बताने के लिए अपनी ऊर्जा लगा रहा था। अंधविश्वास और गैर वैज्ञानिक सोच के खिलाफ उनकी सक्रियता ने साम्प्रदायिक एंव फासीवादी शक्तियों काे दुश्मन बना दिया था।

बहुमुखी प्रतिभा के धनी इस मानवतावादी को गेस्ट फैकल्टी के बतौर काम करने से रोक कर उसके जनपक्षधर अभियान को कमज़ोर करने का सपना पालने वाले अपने

मकसद में कभी कामयाब नहीं हो पाएंगे। हकीकत तो यह है कि इस बर्खास्तगी से उनको अपने मानवतावादी अभियान को गति देने और वैज्ञानिक चेतना के प्रकाश को फैलाने का पहले से ज्यादा समय मिलेगा।

संदीप पांडे लिंगभेद के खिलाफ सशक्त आवाज़ हैं। उन्होंने नारी को देवी कहने का ढोंग भले ही नहीं किया लेकिन जब भी देश की निर्भयाओं का उत्पीड़न हुआ तो वह उसके प्रतिरोध में मैदान में नज़र आए। बीएचयू प्रशासन को मालूम होना चाहिए कि जिसकी तस्वीरों से तुम्हें डर लगता है संदीप पांडे उसके लिए मैदान में लड़ता है।

Masihuddin Sanjari

Coordinator Rihai Manch

Azamgarh Division